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शब्दानुक्रमणिका
इस स्वन्धमें हरिवंशपुराणमें आगत व्यक्तिवाचक, भौगोलिक पारिभाषिक और कुछ साहित्यिक शब्दोंका अर्थ अवगत कराया गया है। व्यक्तिवाचकके आगे कोष्ठकमें ( व्य), भौगोलिकके आगे ( भौ) और पारिभाषिक शब्दके आगे (पा) दिया गया है । साहित्यिक शब्द = चिह्न देकर खाली छोड़ दिये गये हैं।
दोन ६०वें सर्गमें आगत तीर्थंकरोंसे सम्बद्ध शब्द संकलित नहीं है क्योंकि उनका विवरण पृथक स्तम्भमें दिया गया है। इसी प्रकार अन्तिम सर्गमें वर्णित आचार्य-परम्पराके नाम भी संगृहीत नहीं हैं क्योंकि उनका प्रस्तावनामें उल्लेख कर दिया गया है । इस ग्रन्थमें एक-एक शब्द अनेकों स्थानों पर प्रयुक्त हुआ है परन्तु उनका एक बार ही उल्लेख किया जा सका है। शब्दों के आगे सर्ग और इलोकोंके अंक दिये गये हैं। समानता रखनेवाले वे ही शब्द पुनरुक्त किये गये हैं जिनका भिन्न अर्थ होता है।
[अ] अकम्पन (व्य) कृष्णका पुत्र
४८१७० अङ्गारक (भौ) देशका नाम
१११६८ अग्निमतिदक्षिणा २२।६९ अङ्गारक (व्य) ज्वलनवेगकी
विमला रानीसे उत्पन्न पुत्र
१९।८३ अधर्म (पा) जीव और पुद्गल
की स्थितिमें कारण एक
द्रव्य ७२ अधर्मास्तिकाय (पा) जीव
और पुद्गलके ठहरने में
सहायक द्रव्य ४/३ अधिकारिणी (पा) एक क्रिया
५८१६७ अधित्यका = पर्वतका ऊपरी
मैदान २०३३ अकम्पन (व्य) भगवान् महा
वीरका अष्टम गणधर ३।४३ अकम्पन (व्य) सात सौ मुनियों
के प्रमुख आचार्य २०१५
अतिथिसंविभाग (पा) शिक्षा-
व्रतका भेद ५८।१५८ अतिदारुण (व्य) एक भीलका
पुत्र २७।१०७ अतिदुःषमा (पा) अवसर्पिणीका ___ छठा काल ७१५९ अजित (व्य) जरासन्धका पुत्र
५२।३५ अजित (व्य) द्वितीय तीर्थकर
१३।२६ अटट (पा) चौरासी लाख अट
टाङ्गोंका एक अटट ७।२८ अटटाङ्ग (पा)चौरासी लाख वर्षों
का एक अटटाङ्ग ७।२८ अटनप्रिय = घूमनेका शौकीन
१९।३६ अग्निभूति (व्य)पुत्रविशेष६४।६ अग्निमति (व्य) भगवान ऋषभ
देवका गणधर १२१५७ अग्निमित्र(व्य)भगवान् ऋषभ
देवका गणधर १२।५८ अग्निल। (व्य) सोमदेव ब्राह्मण
की स्त्री ४३११००
अतिनिरुद्ध (भौ)पांचवीं पृथिवी
के प्रथम प्रस्तारसम्बन्धी तम इन्द्रककी पश्चिम दिशा
में स्थित महानरक ४.१५६ अजितसेन (व्य) जरासन्धका
एक दूत ५०।३२ अजितशत्रु (व्य) जरासन्धका
पुत्र ५२।३५ अजितजय = कृष्णका धनुष
३५७२ अजितञ्जित = चक्रवर्तीका रथ
१११४ अञ्जनमूलक (भौ) रत्नप्रभाके
खर भागका ग्यारहवाँ पठल
४/५३ अजनमूलकूट ( भौ ) मानु
पोत्तरकी पश्चिमदिशाका
एक कूट ५।६०४ अजितसेना (व्य) अरिजयपुरके
राजा अरिजयको स्त्रो
३४।१८ अतिमुक्तक (व्य) एक मुनि
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