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चतुःषष्टितमः सर्गः
षष्ठायैरुपवासभेदविधिभिर्निष्टाभिमुख्यैः स्थित
ज्येष्ठाद्यैर्विजहार योगिभिरिलां जैनागमाम्भोधिमिः || १४६ ||
इत्यरिष्टनेमिपुराणसंग्रहे हरिवंशे जिनसेनाचार्यकृतो युधिष्ठिरादिपञ्चपाण्डवप्रव्रज्या वर्णनो नाम चतुःषष्टितमः सर्गः ॥ ६४॥
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थे । उन्होंने भालेके अग्रभागसे दिये हुए आहारको ग्रहण करनेका नियम लिया था, क्षुधासे उनका शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया था और छह महीने में उन्होंने इस वृत्ति परिसंख्यात तपको पूरा कर हृदयका श्रम दूर किया था । युधिष्ठिर आदि मुनियोंने भी बड़ी श्रद्धा के साथ वेला तेला आदि उपवास किये थे । इस प्रकार मुनिराज भीमसेनने जैनागमके सागर युधिष्ठिर आदि मुनियोंके साथ पृथिवीपर विहार किया || १४६ ||
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इस प्रकार अरिष्टनेमि पुराणके संग्रहसे युक्त, जिनसेनाचार्य रचित हरिवंशपुराणमें युधिष्ठिर आदि पाँच पाण्डवों की दीक्षाका वर्णन करनेवाला चौंसठवाँ पर्व समाप्त हुआ ||६४ ||
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