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हरिवंशपुराणे अजितन्धरोऽनन्तस्य धर्मस्याजितनाभिकः । पीठाख्यः शान्तितीर्थेऽभूत् सुतो वीरस्य सत्यकेः ॥५३६॥ भीमाबलेस्तनूत्सेधः पन्चचापशतान्यतः । तान्यर्धपञ्चमान्येकं दशहानिस्त पञ्चसु ॥५३७।। अष्टाविंशतिरन्यस्य चतुर्विंशतिरप्यतः । सप्तैवारत्न योऽन्त्यस्य वपुरुत्सेध इष्यते ॥५३८।। पूर्वाण्यायुस्त्रयोऽशीतिलक्षास्त्वेकसप्ततिः । द्वे लक्षे चैकलक्षा च लक्ष्यालक्ष्यविचक्षणः ॥५३ ।। लक्षाश्चतुरशीतिश्च षष्टिः पञ्चाशदेव च । चत्वारिंशच्च वर्षाणां विंशतिर्लक्षया क्रमात् ॥५४॥ आयुरेकादशस्यापि वर्षाण्येकान्नसप्ततिः । अभिन्नदशपूर्वाणां रुद्राणां रौद्रकर्मणाम् ॥५४१॥ त्रयः कालास्तु सर्वेषां रुद्राणां क्रमशः स्थिताः । कौमारः संयमोपेतो गृहीतोज्झितसंयमः ॥५४२॥ कालस्त्रिभागशेषेण चतुर्णा संयमाधिकः । समा द्वयोस्त्रयोऽप्यन्ये कौमाराधिक इष्यते ॥५४३॥ संयमाधिक एकस्य कौमारोऽन्यस्य साधिकः । दशमस्यापि रुद्रस्य संयमाधिक एव सः ॥५४४॥ वर्षाणि सप्त कौमार्य विंशतिः संयमेऽष्टमिः। एकादशस्य रुद्रस्य चतुस्त्रिंशदसंयमे ॥५४५॥ द्वयोस्तु सप्तमी पृथ्वी पन्चानां षष्ठयधिष्ठितिः । एकस्य पञ्चमी भूमिश्चतुर्थी तु द्वयोस्ततः ॥५४६॥ तृतीयान्त्यस्य निर्दिष्टा यथोदिष्टा इमाः पुनः। भूर्यसंयममाराणां रुद्राणां जन्मभूमयः ॥५४७॥
अजितन्धर, धर्मनाथके तीर्थमें अजितनाभि, शान्तिनाथके तीर्थमें पीठ नामका रुद्र हुआ है तथा महावीरके तीर्थमें सत्यकिपुत्र रुद्र होगा ॥५३४-५३६।।
भीमावलीके शरीरको ऊंचाई पाँच सौ धनुष, जितशत्रुको साढ़े चार सौ धनुष, रुद्रकी सो धनुष, विश्वानलको नब्बे धनुष, सुप्रतिष्ठकको अस्सी धनुष, अचलकी सत्तर धनुष, पुण्डरीककी साठ धनुष, अजितन्धरको पचास धनुष, अजितनाभिकी अट्ठाईस धनुष, पीठकी चौबीस धनुष, और सत्यकिपुत्रकी सात धनुष मानी जाती है ।।५३७-५३८॥
इन रुद्रोंकी आयु क्रमसे तेरासी लाख पूर्व, इकत्तर लाख पूर्व, दो लाख पूर्व, एक लाख पूर्व, चौरासी लाख वर्ष, साठ लाख वर्ष, पचास लाख वर्ष, चालीस लाख वर्ष, बीस लाख वर्ष, दस लाख वर्ष और उनहत्तर वर्ष है। ये सभी रुद्र दश पूर्वके पाठी होते हैं और रोद्र कार्यके करनेवाले हैं ।।५३९-५४१।।
इन सभी रुद्रोंके क्रमसे तीन काल होते हैं-१ कुमारकाल, २ संयमकाल और ३ गृहीत संयमको छोडकर असंयमी होनेका काल ॥५४२॥ इनमें चारका संयमकाल विभाग शेषसे कुछ अधिक था अर्थात् कुमारकाल और असंयमकालसे कुछ अधिक था, दोके तीनों काल बराबर थे, सातवेंका कुमारकाल, आठवेंका असंयमकाल, नौवेंका कुमारकाल, और दसवेंका संयमकाल अधिक था। ग्यारहवें रुद्रका कुमारकाल सात वर्षका, संयमकाल अट्ठाईस वर्षका और असंयमकाल चौंतीस वर्षका होगा। ॥५४३-५४५।। ।
इनमें प्रारम्भके दो रुद्र सातवीं पृथिवी, पाँच रुद्र छठी पृथिवी, एक पांचवीं पृथिवी और दो चौथी पृथिवी गये हैं तथा अन्तिम रुद्र तीसरी भूमिमें जावेगा। उन रुद्रोंके जीवन में असंयमका भार अधिक होता है। इसलिए उन्हें नरकगामी होना पड़ता है ।।५४६-५४५॥
१. ज्ञातव्या (ङ. टि.)। २. 'दशलक्षाप्रमितम्' इति सर्वहस्तलिखितप्रतिषु 'लक्षया' इत्यस्योपरि अंकैलिखितम् । तेसोदी द्वणिसत्तरि दोणि एक्कं च पुग्वलक्खाणि । चुलसीदी सद्विपण्णा चालिस वस्साणि लक्खाणि ॥१४४६॥ बीस दस चेव लक्खा वासा एक्कूणसत्तरी कमसो। एक्कारसरुद्दाणं पमाणमउस्स रिद्दिटुं ।।१४४७।। ३. तूर्यसंयम-ख, तूर्य-ङ चतुर्थव्रतधारिणां नारदानाम् (ङ. टि.)। +यह विषय ति. प. में तीनों कालोंके अलग-अलग अंक देकर स्पष्ट किया गया है (चतुर्थ अधिकार गाथा १४४८ से १४६७ गाथा तक)।
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