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'इत्युपपिपि दीर्घमित्या
नोऽवतिष्ठते ॥१०
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हरिवंशपुराणे दूरतस्तमथ तत्र दृष्टवान् संवृताङ्गममितोऽम्बरेण सः। आस्त एव भुवि यत्र शायितः सूरशौरिरिति दीर्घनिद्रया ॥८॥ सुप्त एव सुखनिद्रया हरिः सुप्रबोधमुपगच्छतु स्वयम् । इत्युपेक्ष्य हरिबोधरं तदा तत्प्रबोधनमसौ प्रतीक्षते ॥९॥ वीर ! किं स्वपिषि दीर्घमित्यलं स्वापमुज्झ पिब तोयमिच्छया । इत्युदीर्णमधुरस्वरः पुनः सन्निरुद्धवचनोऽवतिष्ठते ॥१०॥ सीरिणा क्षतजगन्धतस्ततः कृष्णसंवरणवाससोऽन्तरे। संप्रवेशनिजनिर्गमाकुला प्रैक्षि तीक्ष्णमुखकृष्णमक्षिका ॥१॥ संकटोद्घटिततन्मुखो हरिं वीक्ष्य वान्तजनकान्तजीवितम् । हा हतोऽस्मि मृत एव तृष्णया विष्णुरिस्युपरि तस्य सोऽपतत् ॥१२॥ मोहमूढमनसोऽस्य मूर्छया प्राप्तयोपकृतमप्यनिष्टया। स्नेहपाशदृढबन्धनो हली प्राणहानमकरिष्यदन्यया ॥१३॥ बोधमाप्य परितः परामृशन् केशवस्य वपुरात्मपाणिना। पश्यति स्म चरणवणव्रजं तीव्र गन्धरुधिरारुणक्षमम् ॥१४॥ सुप्त एव विषमेषुणा हरिः विद्ध एष चरणेन केनचित् । दुष्प्रबोधहरिमारकोऽत्र कोऽपूर्वमद्य मृगयाफलं श्रितः ॥१५॥
wwwwwwwww तदनन्तर वस्नके द्वारा सब ओरसे जिनका शरीर ढंका था ऐसे कृष्णको बलदेवने दूरसे देखा। देखकर वे सोचने लगे कि मैं शूरवीर कृष्णको जिस भूमिमें सुला गया था यह वहां गहरी नींदमें सो रहा है ॥ ८॥ पास आनेपर उन्होंने विचार किया कि अभी यह सुखनिद्रासे सो रहा है इसलिए स्वयं ही जगने दिया जाये। इस प्रकार कृष्णको जगानेको उपेक्षा कर वे स्वयं ही उनके जागनेकी प्रतीक्षा करने लगे ॥९॥ जब कृष्ण बहुत देर तक नहीं जगे तब बलदेवने कहा, 'वीर ! इतना अधिक क्यों सो रहे हो? बहुत हो गया, निद्रा छोड़ो और इच्छानुसार जल पिओ'। इस प्रकार मधुर स्वरमें एक-दो बार कहकर वे पुनः वचन रोककर चुप बैठ रहे ॥१०॥
तदनन्तर बलभद्रने देखा कि तीक्ष्ण मुखवाली काली एक मक्खी रुधिरकी गन्धसे कृष्णके ओढ़े हुए वस्त्रके भीतर घुस तो गयो पर निकलनेका मार्ग न मिलनेसे व्याकुल हो रही है ॥ ११ ॥ यह देख उन्होंने शीघ्र ही कृष्णका मुख उघाड़ा और उन्हें निष्प्राण देख 'हाय मैं मारा गया' यह कहकर वे एकदम चीख पड़े। 'हाय-हाय ! यह कृष्ण प्याससे मर ही गया है' यह सोच वे उनके शरीरपर गिर पड़े ॥ १२ ॥ कृष्णके मोहसे जिनका मन अत्यन्त मोहित हो रहा था ऐसे बलदेवको तत्काल मूर्छा आ गयी। यद्यपि मूर्छाका आना अनिष्ट था तथापि उस समय उसने इनका बड़ा उपकार किया। अन्यथा स्नेहरूपी पाशसे दृढ़ बंधे हुए बलदेव अवश्य ही प्राण त्याग कर देते ॥ १३ ॥ सचेत होनेपर वे अपने हाथसे चारों ओर कृष्णके शरीरका स्पर्श करने लगे। उसी समय उन्होंने तीव्र गन्धसे युक्त रुधिरसे लाललाल पैरका घाव देखा ॥ १४ ।। और देखते ही निश्चय कर लिया कि सोते समय ही किसीने तीक्ष्ण बाणसे इसे पैरमें प्रहार किया है। जिनका जागना कठिन है ऐसे कृष्णको मारनेवाला
१. सूरिसौरि म.। २. इत्यपेक्ष्य म.। ३. प्रतीक्ष्यते म.। ४. सन्निरुध्य वचनो म., क., ङ.। ५. माकुला: म.। ६. मक्षिका: म., ड.। ७, संघटोद्घटित-म., घ.। ८. एव म. ।
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