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षष्टितमः सर्गः
वाक्यं त्रिकालविषयार्थनिरूपणार्थ माकर्ण्य कर्ण सुखमित्थमिनस्य भूपाः । कृष्णादयो हरिरविप्रमुखाश्च देवा नत्वा जिनं स्वपदमीयुरूपात्ततस्वाः ||५७०४ ॥
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इत्यरिष्टनेमिपुराणसंग्रहे हरिवंशे जिनसेनाचार्यकृतौ त्रिषष्टिपुरुष जिनान्तरवर्णनो नाम षष्टितमः सर्गः ॥ ६०॥
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इस प्रकार भगवान् नेमिनाथकी कर्णोको सुख उपजानेवालो एवं त्रिकालविषयक पदार्थोंका वर्णन करनेवाली दिव्यध्वनि सुनकर कृष्ण आदि राजा तथा इन्द्र और सूर्य आदि देव, धर्मके यथार्थं तत्त्वको ग्रहण कर एवं नेमि जिनेन्द्रको नमस्कार कर अपने-अपने स्थानपर चले गये ॥ ५७४ ।।
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इस प्रकार अरिष्टनेमिपुराणके संग्रहसे युक्त, जिनसेनाचार्य रचित हरिवंशपुराण में शठ शलाकापुरुषों का चरित्र तथा तीर्थकरों के अन्तरालका वर्णन करनेवाला साठवाँ सर्ग समाप्त हुआ ॥ ६० ॥
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