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द्विषष्टितमः सर्गः
पुण्योदयात्पुरा प्राप्तावुन्नतिं यौ जनातिगाम् । चक्रादिरनसंपन्नौ बलिनौ बलकेशवौ ||१|| पुण्यक्षयात्तु तावेव रत्नबन्धुविवर्जितौ । प्राणमात्रपरीवारौ शोकमारवशीकृतौ ॥२॥ प्रस्थितौ दक्षिणामाशां जीविताशावलम्बिनौ | क्षुत्पिपासापरिश्रान्तौ यात सत्काङ्क्षिणौ पथि ॥३॥ उद्दिश्य पाण्डवान् यान्तौ मथुरां दक्षिणामुमौ । हस्तवप्रं पुरं प्राप्तौ तत्रोद्याने हरिः स्थितः || ४ || गतोऽन्नपान मानेतुं कृतसंकेतकोऽग्रजः । वस्त्रसंवृतसर्वाङ्गः प्रविष्टश्व ततः पुरम् ||५|| अच्छदन्तो नृपस्तत्र धार्तराष्ट्रोऽवतिष्ठते । पृथिव्यां प्रथितो धन्वो यदुरन्धदुरन्तधीः ॥ ६ ॥ जनैर्जनितसंघट्टेः रूपपाशवशीकृतैः । प्रविश्य तत्पुरीं वीरो दृश्यमानः सविस्मयैः ||७|| "कण्टकं कुण्डलं चापि दत्वा कस्यचिदापणे । अन्नपानमुपादाय निर्गच्छन् वीक्ष्य रक्षकैः ॥८॥ विज्ञाय बलदेवोऽयमिति राज्ञे निवेदितः । ततस्तेन वधायास्य प्रेषितं सकलं बलम् ||९ ॥ संघभूपुरद्वारे सैन्यस्य बलरोधिनः । बलेन संज्ञयाहूतः कृष्णश्च द्रुतमागतः ॥ १० ॥ "अन्नपानं सुसंस्थाप्य गजस्तम्भं बलोऽग्रहीत् । कृष्णस्तु परिघं घोरं किंचित्कुपितमानसः ॥११॥
जो बलदेव और कृष्ण पहले पुण्योदयसे लोकोत्तर उन्नतिको प्राप्त थे, चक्र आदि रत्नोंसे सहित थे, बलवान् थे, बलभद्र एवं नारायण-पदके धारक थे वे ही अब पुण्य क्षीण हो जाने से रत्न तथा बन्धुजनोंसे रहित हो गये, प्राणमात्र ही उनके साथी रह गये और शोकके वशीभूत हो गये ॥ १-२ ॥
केवल जीवित रहनेकी आशा रखनेवाले दोनों भाई दक्षिण दिशा की ओर चले । वहाँ वे भूख-प्याससे व्याकुल हो मार्गमें किसी उत्तम आश्रयकी इच्छा करने लगे ||३|| पाण्डवोंको लक्ष्य कर वे दक्षिण मथुराकी ओर जा रहे थे कि मार्ग में हस्तवप्र नामक नगर में पहुँचे । वहाँ कृष्ण तो उद्यानमें ठहर गये और बलदेव संकेत कर तथा वस्त्र से अपना समस्त शरीर ढँककर अन्न पानी लेने के लिए नगर में प्रविष्ट हुए ॥ ४-५ ॥ उस नगर में अच्छदन्त नामका राजा रहता था, धृतराष्ट्र के वंशका था, जो पृथिवीमें प्रसिद्ध धनुर्धारी और यादवोंके छिद्र ढूँढनेवाला था ॥ ६॥ वीर बलदेवने ज्यों ही उस नगर में प्रवेश किया त्यों ही उनके रूप-पाशसे वशीभूत हुए लोगों के झुण्ड के झुण्ड आश्चर्यसे चकित हो उन्हें देखने लगे ॥ ७ ॥ बलदेवने बाजारमें किसीके लिए अपना कड़ा और कुण्डल देकर उससे अन्नपान - खाने-पीनेकी सामग्री खरीदो और उसे लेकर जब वे नगर के बाहर निकल रहे थे तब राजाके पहरेदारोंने देखकर तथा 'यह बलदेव है' इस प्रकार पहचान कर राजाके लिए खबर कर दी । फिर क्या था, राजाने उनके वधके लिए अपनी समस्त सेना भेज दी ॥८- ९॥
नगरके द्वारपर बलदेवको रोकनेवाली सेनाकी बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी । बलदेवने संकेत से कृष्णको बुलाया और वे शीघ्र ही वहाँ आ गये ||१०|| बलदेवने अन्न-पानको किसी जगह अच्छी तरह रखकर हाथी बाँधनेका एक खम्भा लिया तथा कृष्णने कुछ क्रुद्धचित्त हो भयंकर अर्गल उठाया ॥ ११ ॥
१. प्राप्तामुन्नति म. । २. यत्काङ्क्षिणी म., ख., ङ. । ३. याती ख., ङ, म. । ४. ' स तत्पुरं ' ख. । ५. कण्ठकं म. । ६. अन्नं पानं च सुस्थाप्य म । अन्नं पानं च संस्थाप्य ख. ।
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