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षष्टितमः सर्गः
"पादः कुमारकालः स्यादायुषो वृषमस्य सः । न्यूनः संयमकालस्य राज्यकालस्ततोऽपरः ॥३३०॥
कुन्थु और अर ये तीन स्वयं तीर्थंकर तथा चक्रवर्ती हुए हैं। सुभौम चक्रवर्ती अरनाथ और मल्लिनाथके अन्तराल में, पद्म चक्रवर्ती, मल्लि और मुनिसुव्रत के अन्तरालमें, हरिषेण चक्रवर्ती सुव्रत और नमिनाथ के अन्तरालमें, जयसेन चक्रवर्ती नमिनाथ और नेमिनाथके अन्तरालमें तथा ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती नेमिनाथ और पार्श्वनाथके अन्तरालमें हुए हैं । यहाँ जो चक्रवर्ती तीर्थंकरोंके समक्ष न होकर अन्तराल में हुए है उनके ऊपर तीर्थंकरोंके कोष्ठक में शून्य रखे गये हैं और जो तीर्थंकरोंके समक्ष हुए हैं उनके ऊपर लीथंकरोंके कोष्ठक में एक लिखा गया है। जिन तीर्थंकरोंके समक्ष चक्रवर्ती हुए हैं उनके नीचे चक्रवर्तीके कोष्ठकमें दोका अंक लिखा गया है और जिनके समक्ष अभाव रहा है उनके नीचे शून्य रखा गया है । इसी प्रकार नारायणोंके विषयमें जानना चाहिए अर्थात् पहलेसे लेकर दशम तीर्थंकर तक तो कोई भी नारायण नहीं हुआ पश्चात् ग्यारहवें से पन्द्रहवें तक पाँच नारायण हुए। तदनन्तर अर और मल्लिनाथके अन्तराल में, मल्लि और मुनिसुव्रत के अन्तराल में, सुव्रत और नमिके अन्तरालमें और नेमिनाथके समय में नारायण हुए । जहाँ नारायणों का अभाव है वहाँ कोष्ठकों में शून्य और जहाँ सद्भाव है, वहाँ तीनका अंक लिखा गया है ||३१९ - ३२९||
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भगवान् वृषभदेवकी आयु चौरासी लाख पूर्वकी थी । उसका एक चतुर्थं भाग अर्थात् बीस लाख पूर्वका कुमारकाल था । शेष संयमके कालको घटाकर जो बचता है वह राज्यकाल था । भावार्थ - भगवान् वृषभदेवने बीस लाख पूर्व कुमारकाल बिताया, त्रेसठ लाख पूर्व राज्य किया, एक हजार वर्षं तप किया और एक हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व केवलीकाल व्यतीत किया ||३३०||
अह पउमचक्कवट्टी मल्ली मुणि सुव्वयाण विच्चाले । सुव्वयणमाण मज्झे हरिसेणो णाम चक्कहरो ॥ १२८५॥ जयसेणचक्कवट्टी पनि मिजिणाणमंतरालम्मि । तह बह्मदत्तणामो चक्कवई मिपासविच्चाले ॥१२८६॥
सहिय तीस कोट्ठा कादव्वा तिरिय रूव पंत्तीए । उड्डणं वे कोट्ठा कादूणं पढमकोट्टे सु ॥ १२८७ ।। पण्णरजिनिदा निरंतरं दोसु सुष्णया तत्तो । तीसु जिणा दो सुण्णा इगि जिण दो सुण्ण एक्क जिणे ॥ १२८८ ॥ दो सुष्णा एक्क जिणो इगि सुण्णो इगि जिणो य इगि सुण्णो । दोण्णि जिणा इदि कोट्ठा निद्दिट्ठा तित्थकत्ताणं ॥ १२८९ ।। दो कोट्ठेसु चक्की सुण्णं तेरससु चक्किणो छक्के । सुण्ण तिय चक्कि सुष्णं दो सुष्णं चक्कि सुण्णो य ।।१२९०॥ चक्की दो सुण्णाई छक्खंडवईण चक्कवट्टीणं । एदे कोट्ठा कमसो संदिट्ठी एक्क दो अंका ।।१२९१।। बलदेववासुदेवप्पडिसत्तूणं जाणावणट्टं संद्दिट्ठी --
पंच जिणि वंदति केसवा पंच अणुपुवीए । सेयंस साभिपहृदि तिविट्टपमुहा य पत्तेक्कं ।। १४१४॥ अरमल्लि अंतराले णादव्वो पुंडरीअणामो सो । मल्लिमुनिसुव्वयाणं विचाले दत्तणामो सो ॥। १४९५ ॥ सुन्वयमि सामीण मज्झे नारायणी समुप्पण्णो । णेमि समयम्मि किष्णो एदे व वासुदेवा य ।। १४१६ ।। दस सुण्णा पंच केसव छस्सुण्णा केसि सुष्ण केसीओ । तिय सुण्ण मेक्क केसी दो सुष्णं एक्क केसि तिय सुण्णं ।। १४१७ ।। तिलोयपण्णत्ति ४ अधिकार ।
१. पढमे कुमारकालो जिणरिसहे बीस पुव्वलक्खाणि । अजिआदिअर जिणंते सगसग आडस्स पादेगो ।। ५८३ ॥ तत्तो कुमार कालो एगसयं सगसहस्स पंचसया । पणुवीतसयं तिसया तीसं तीसं च छक्कस्स ।। ५८४ ।। त्र. प्र., च. अ. ।
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