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षष्टितमः सर्ग:
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त्रयोऽशीतिश्च नवतिः पञ्चमिः साष्टसप्ततिः। द्वाभ्यां च सप्ततिः षष्टिश्चत्वारिंशच संयुताः ॥४८३॥ षटसु कालेषु पल्याष्टमागे शेषे तृतीयके । भूतिः कुलकराणां च ततोऽपि वृषमस्य तु ॥४८४॥ जन्म क्रमेण शेषाणां जिनानां चक्रवर्तिनाम् । हलिनां वासुदेवानां तुर्य काले विनिश्चितम् ॥४५॥ व्यब्दाष्टमासमासार्धशेषयोरिह कालयोः । तृतीयतर्ययोः सिद्धिः प्रसिद्धा वृषवीरयोः ॥४८६॥ वीरनिर्वाणकाले च पालकोऽत्राभिषिच्यते । लोकेऽवन्तिसुतो राजा प्रजानां प्रतिपालकः ॥४८७॥ षष्टिवर्षाणि सद्राज्यं ततो विषयभूभूजाम् । शतं च पञ्चपञ्चाशद्वर्षाणि तदुदीरितम् ॥४८८॥ चत्वारिंशत्पूरूढानां भूमण्डलमखण्डितम् । त्रिंशत्तु पुष्पमित्राणां षष्टिर्वस्वग्निमित्रयोः ॥४८९॥ शतं रासभराजानां नरवाहनमप्यतः । चत्वारिंशत्ततो द्वाभ्यां चत्वारिंशच्छतद्वयम् ॥४९॥ भद्रवाणस्य तदाज्य गुप्तानां च शतद्वयम् । एकविंशश्च वर्षाणि कालविनिरुदाहृतम् ॥१९॥ द्विचत्वारिंशदेवातः कल्किराजस्य राजता । ततोऽजितंजयो राजा स्यादिन्द्रपुरसंस्थितः ॥४९२॥ कौमार्य मण्डलेशत्वे विजये राज्यसंयमे । चक्रयादीनां यथायोग्यमितः कालो निरूप्यते ॥४९३॥
क्रमसे बानबे वर्ष, चौबीस वर्ष, सत्तर वर्ष, अस्सी वर्ष, सौ वर्ष, तेरासी वर्ष, पंचानबे वर्ष, अठहत्तर वर्ष, बहत्तर वर्ष, साठ वर्ष और चालीस वर्ष है ।।४८२-४८३।। छह कालोंमें-से जब तृतीय कालमें पल्यका आठवां भाग बाकी रहा था तब क्रमसे चौदह कुलकरों और उनके बाद वृषभदेवका जन्म हुआ था। शेष तीर्थंकरों, चक्रवतियों, बलभद्रों और नारायणोंका जन्म चौथे काल में निश्चित है ।।४८४-४८५।। जब तीसरे कालमें तीन वर्ष साढ़े आठ माह बाकी रहे थे तब भगवान् ऋषभदेवका मोक्ष हुआ था और जब चौथे कालमें तीन वर्ष साढ़े आठ माह शेष रहे थे तब महावीरका मोक्ष होगा ।।४८६।।
जिस समय भगवान् महावीरका निर्वाण होगा उस समय यहाँ अवन्तिपुत्र पालक नामके राजाका राज्याभिषेक होगा। वह राजा प्रजाका अच्छी तरह पालन करेगा और उसका राज्य साठ वर्ष तक रहेगा। उसके बाद तद्-तद् देशोंके राजाओंका एक सौ पचपन वर्ष तक राज्य होगा ||४८७-४८८।। फिर चालीस वर्ष तक पुरुढ राजाओंका अखण्ड भूमण्डल होगा। तदनन्तर तीस वर्ष तक पुष्पमित्रका, साठ वर्ष तक वसु और अग्निमित्रका, सौ वर्ष तक रासभ राजाओंका, फिर चालीस वर्ष तक नरवाहनका, फिर दो सौ बयालीस वर्ष तक कल्कि राजाका राज्य होगा। उसके बाद अजितंजय नामका राजा होगा जिसकी राजधानी इन्द्रपुर नगर होगी ||४८२-४९२।। अब इनके आगे चक्रवर्ती आदिकी, कूमार अवस्था, मण्डलेश्वर दशा, दिग्विजय, राज्य और संयममें जो काल व्यतीत हुआ है उसका यथायोग्य निरूपण किया जाता है ॥४२३||
दोणि सया वीसजुदा वासाणं ताण पिंड परिमाणं । तेसु अतीदे णस्थि हु भरहे एक्कारसंगधरा ॥ १४८९ ॥ पढमो सुभद्दणामो जसभद्दो तह य होदि जसबाहू । तुरिमो य लोहणामो एदे आयारअंगधरा ॥ १४९० ।। सेसेक्करसंगाणं चोदसपुत्राणमेक्कदेसघरा। एक्कसयं अटारसवासजुदं वासजुदं ताण परिमाणं ।। १४९१ ।।
-ति. प. अधिकार ४. १. साष्टसप्तभिः म. । २. सप्तभिः म. । ३. अष्टाष्टमास-म. ।
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