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षष्टितमः सर्गः
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'चूतो गजपुरं मित्रा पार्थिवश्च सुदर्शनः । संमेदो रोहिणी चारो दुरितं दारयन्तु वः ॥१९॥ मिथिला रक्षिता कुम्भो जिनेन्द्रो मल्लिरश्विनी । अशोकश्च तरुः सोऽदिरशोकाय भवन्तु वः ॥२०॥ पद्मावतो सुमित्रोऽस्तु कुशागानगरं भुदे। चम्पकः श्रवणक्ष च सोऽद्रिवों मुनिसुव्रतः ॥२०११ सिथिला विजयो वा वकुलो नमिरश्विनी । नमयन्तु महामानं संमेदश्च महीधरः ॥२०२॥ नेमिः सूर्यपुरं चित्रा मुद्रविजयः शिवा । ऊर्जवन्तो जयं तेऽमी मेषशृङ्गो दिशन्तुः वः ॥२०॥ वाराणसी च वर्मा च विशाखा च धवाहिपः । अश्वसेननृपः पाश्र्वः सम्मेदश्च मुदेऽस्तु वः ॥२०४॥ शालः कुण्डपुरं वीरः सिद्वार्थः प्रियकारिणो । उत्तराफाल्गुनी पावा पापानि घ्नन्तु वः सदा ॥२०५॥ चैत्यवृक्षस्नु कीरस्य द्वात्रिंशद नुरुच्छुितः । देहात्सेधाच्च शेषाणां स द्वादशगुणो मतः ॥२०६॥ सपाश्वशोऽनुराधायां ज्येष्टासु च शशिप्रमः । श्रयानपि धनिष्टासु वासुपूज्योऽश्विनीषु सः ॥२०७॥ भरणीषु जिगे मल्लिौर: स्वातिषु सिद्धिमाक् । जन्मनक्षत्रवर्गेषु शेषाणां परिनिर्वृतिः ॥२०॥ शान्तिन्थ्वरनामानस्तीर्थकृञ्चक्रवर्तिनः । शेषास्तीर्थकराः सर्वे पृथिवीपतयो नृपाः ॥२०१॥ चन्द्राम एव चन्द्राभः सुविधिः शङ्खसत्प्रमः । प्रियङ्गमञ्जरीपुञ्जवर्णः सुपार्वतीर्थ कृत् ॥२१०॥ मेघश्यामवपुः श्रीमान् पार्श्वस्तु धरणस्तुतः । पद्मगर्भनिभाभश्च पद्मप्रभजिनाधिपः ॥२१॥
और कुन्थुनाथ भगवान् ये तुम्हारे पापोंको नष्ट करें ।।१९८।। आम्र वृक्ष, हस्तिनापुर नगर, मित्रा माता, सुदर्शन राजा पिता, सम्मेद शिखर निर्वाणक्षेत्र, रोहिणी नक्षत्र और अरनाथ जिनेन्द्र ये सब तम्हारे पापको खण्डित करें ॥१९९|| मिथिला नगरी, रक्षिता माता, कुम्भ पिता, मल्लिनाथ जिनेन्द्र, अश्विनी नक्षत्र, अशोक वृक्ष और सम्मेद शिखर निर्वाण क्षेत्र ये सब तुम्हारे अशोकशोक दूर करनेके लिए हों ॥२००|| पद्मावती माता, सुमित्र पिता, कुशाग्र नगर, चम्पक वृक्ष, श्रवण नक्षत्र और सम्मेद शिखर पर्वत ये सब तुम्हारे हर्षके लिए हों ॥२०१।। मिथिला नगरी, विजय पिता, वप्रा माता, वकुल वृक्ष, नमिनाथ जिनेन्द्र, अश्विनी नक्षत्र और सम्मेद शिखर पर्वत महामानी मनुष्य को आपके समक्ष नम्रीभूत करें ॥२०२।। नेमिनाथ भगवान्, सूर्यपुर नगर, चित्रा नक्षत्र, समद्रविजय पिता, शिवा माता, ऊर्जयन्त पर्वत और मेषशृंग ( मेढ़ासिंगी) वृक्ष ये सब तुम्हारे लिए जय प्रदान करें ॥२०३।। वाराणसी नगरी, वर्मा माता, विशाखा नक्षत्र, धव चैत्यवृक्ष, असेन राजा पिता, पार्श्वनाथ जिनेन्द्र और सम्मेद शिखर निर्वाणक्षेत्र ये सब तुम्हारे आनन्दके लिए हों ।।२०४|| शाल वृक्ष, कुण्डपुर नगर, वीर जिनेन्द्र, सिद्धार्थ पिता, प्रियकारिणी माता, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, और पावापुरी निर्वाणक्षेत्र ये सब सदा तुम्हारे पापोंको नए करें ॥२०५।।
___भगवान् महा रीरका चैत्यवृक्ष बत्तीस धनुष ऊंचा होगा और शेष तीर्थंकरोंके चैत्यवृक्षोंकी ऊंचाई उनके शरीर की ऊँचाईसे बारहगुनी मानी गयी है ।।२०६।। सुपार्श्वनाथ भगवान् अनुराधा नक्षत्र में, चन्द्रप्रभ ज्येष्ठा नक्षत्र में, श्रेयोनाथ धनिष्ठा नक्षत्रमें, वासुपूज्य अश्विनी नक्षत्रमें, मल्लि
क्षत्र में, महावीर स्वाति नक्षत्र में निर्वाणको प्राप्त हए हैं और शेष तीर्थंकरोंका निर्वाण अपने-अपने जन्म नक्षत्रों में ही हुआ है ।।२०७-२०८|| शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ ये तीन तीर्थ कर तथा चक्रवर्ती हुए तथा शेष सब तीर्थंकर सामान्य राजा हुए ।।२०९|| चन्द्रप्रभ भगवान् चन्द्रमाके समान आभावाले, सुविधिनाथ शंखके समान कान्तिके धारक, सुपाश्वनाथ प्रियंगवृक्षको मंजरी के समूहके समान हरितवर्ण, धरणेन्द्र के द्वारा स्तुत श्रीमान् पार्श्वजिनेन्द्र मेघके समान श्यामल शरीर, पद्मप्रभ जिनराज पद्मगर्भके समान लालवर्ण, वासुपूज्य जिनेन्द्र रक्त पलाश
१. भूतो क., ङ.। २. प्रतिष्ठासु म. ।
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