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द्वापञ्चाशः सर्गः
अन्येद्युर्द्युद्युमणिद्योतद्योतिते भुवनोदरे । संनद्वौ निर्गतौ योद्धुं बलैर्मागध माधवौ ॥ १ ॥ विधाय पूर्ववद् ब्यूहौ बलद्वयमधिष्ठितम् । नानाराजन्यविन्यासमन्योन्यं हन्तुमुद्यतम् ॥२॥ रथस्थो मागधो युद्धे हंसकं निजमन्त्रिणम् । अन्तिकस्थमिति प्राह यादवानभिवीक्ष्य सः ॥३॥ प्रत्येकं नाम चिह्नाद्यैर्यदूनां चश्व हलक । किमन्यैरत्र निहतैरित्युक्ते संजगाविति ॥४॥ फेनपुञ्जप्रतीकाशैर्हयैः काञ्चनदामभिः । रथोऽर्करथवदृश्यः कृष्णस्य गरुडध्वजः ॥५॥ शुकवर्णसमैरश्वैर्युक्तोऽयं स्वर्णशृङ्खलैः । अरिष्टनेमिवीरस्य वृषकेतुर्महारथः ॥ ६॥ कृष्णदक्षिणपाश्र्वेश्वरिष्टवर्णैस्तुरङ्गमैः । रथस्तालध्वजो राजन् बलदेयस्य राजते ॥७॥ कृष्ण हयैर्युक्तो भ्राजतेऽयं महारथः । अनीकाधिपतेरत्र कपिकेतूपलक्षितः ॥ ८ ॥ नील केसर बाला ग्रैर्हयै है मपरिष्कृतैः । रथो युधिष्टिरस्यायं पाण्डवस्य विराजते ॥९॥ शशाङ्कविशदैरश्वै मातरिश्वजवैर्वृतः । गजध्वजयुतो माति सव्यसाचिरथो महान् ॥१०॥ नीलोत्पलनिभैरेप युक्तो ययुभिरीक्ष्यते । रथो वृकोदरस्यापि मणिकाञ्चनभूषणः ॥ ११ ॥ शोणवर्णैर्हयैर्भाति समुद्रविजयस्य हि । मध्ये यादवसैन्यानां महासिंहध्वजो रथः ॥१२॥ अक्रूरस्य कुमारस्य रथोऽसौ कदलीध्वजः । सबलैर्वाजिभिर्भाति रुक्मविद्रुममास्वरः ॥१३॥
दूसरे दिन जब संसारका मध्य भाग सूर्यके प्रकाशसे प्रकाशित हो गया तब जरासन्ध और कृष्ण युद्ध करनेके लिए तैयार हो अपनी-अपनी सेनाओंके साथ बाहर निकले ||१|| तदनन्तर जो पहले के समान व्यूहों की रचना कर स्थित थीं और जिनमें अनेक राजा लोग यथास्थान स्थित थे ऐसी दोनों सेनाएँ परस्पर एक दूसरेका घात करने के लिए उद्यत हुईं ||२|| युद्ध के मैदान में आकर रथपर बैठा जरासन्ध, यादवोंको देखकर अपने समीपवर्ती हंसक मन्त्रीसे बोला कि हे हंसक ! यादवों में प्रत्येकके नाम-चिह्न आदि तो बता. जिससे में उन्हींको देखूं अन्य लोगोंके मारने से क्या लाभ है ? इस प्रकार कहनेपर हंसक बोला- ॥३-४॥
हे स्वामिन्! जिसमें सुवर्णमयी सांकलोंसे युक्त फेनके समान सफेद घोड़े जुते हुए हैं और जिसपर गरुड़की ध्वजा फहरा रही है ऐसा यह सूर्यके रथके समान देदीप्यमान कृष्णका रथ दिखाई दे रहा है ||५|| जो सुवर्णमयी साँकलोंसे युक्त तोते के समान हरे रंगके घोड़ोंसे युक्त है तथा जिसपर बेलकी पताका फहरा रही है ऐसा यह शूर-वीर अरिष्टनेमिका रथ है || ६ || हे राजन् ! जो कृष्णकी दाहिनी ओर रीठाके समान वर्णवाले घोड़ोंसे जुता हुआ है तथा जिसपर तालकी ध्वजा फहरा रही है ऐसा यह बलदेवका रथ सुशोभित हो रहा है ||७|| इधर यह कृष्णवर्णके घोड़ोंसे युक्त एवं वानरको ध्वजासे सहित जो बड़ा भारी रथ दिखाई दे रहा है वह सेनापतिका रथ है || ८|| उधर सुवर्णमयी सांकलोंसे युक्त, गरदनके नीले-नीले बालोंवाले घोड़ोंसे जुता हुआ यह पाण्डु राजाके पुत्र युधिष्ठिरका रथ सुशोभित हो रहा है ||९|| जो चन्द्रमाके समान सफेद एवं वायुके समान वेगशाली घोड़ोंसे जुता हुआ है तथा जिसपर हाथीकी ध्वजा फहरा रही है ऐसा यह बड़ा भारी अर्जुनका रथ है ||१०|| जो नील कमलके समान नीले-नीले घोड़ोंसे युक्त है तथा जिसपर मणिमय और सुवर्णमय आभूषण सुशोभित हैं ऐसा यह भीमसेनका रथ है ॥ ११ ॥ वह यादवोंकी सेना के बीच में लाल रंगके घोड़ोंसे जुता हुआ तथा बड़े-बड़े सिंहोंकी ध्वजासे युक्त समुद्रविजयका रथ सुशोभित हो रहा है || १२|| वह कुमार अक्रूरका रथ सुशोभित है जो कदलीकी १. मुद्यतो म । २. अश्वः ।
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