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हरिवंशपुराणे
हयैस्तित्तिरकल्माषैः सत्यकस्य महारथः । महानेमिकुमारस्य कौमुदैर्वाजिमी रथः ॥ १४ ॥ चामीकरबृहद्दण्डपताकाध्वजभूषितः । 'शुकतुण्डनिभैरश्वै मजस्यैष महारथः ॥ १५॥ अश्वैः कनकपृष्ठ्यैर्यो युक्तैर्माति महारथः । असौ जरत्कुमारस्य मृगकेतोर्विराजते ॥१६॥ शुक्लः सोमसुतस्यैष सिंहलस्य विराजते । काम्बोजैर्वाजिभिर्युक्तो रथोऽश्वरथमास्वरः ॥ १७॥ अश्वैरारक्तस बलैर्मरुराजस्य राजते । रथः काञ्चनचित्राङ्गः शंशुमाराकृतिध्वजः ॥१८॥ रथः पद्मरथस्यैष पद्माभैस्तुरगैर्युतः । शोमते रणशूरस्यं बलानामग्रतः स्थितः ॥ १९ ॥ 3 पारावतनिभैः पत्रैः सारणस्य त्रिहायनैः । तपनीयच्छदैर्माति रथोऽसौ पुष्करध्वजः ॥ २० ॥ शशलोहितसंकाशैर्वाजिभिः पञ्चहायनैः । रथो नग्नजितः सूनोर्मेरुदत्तस्य काशते ॥२१॥ वाजिभिः पञ्चवर्णैर्यो रथो भाति रविप्रभः । विदूरथकुमारस्य जवनः कलशध्वजः ॥२२॥ सर्ववर्ण निभैरश्वैर्यादवानां तरस्विनाम् । न शक्यन्ते रथाः प्रोक्तुं शतशोऽथ सहस्रशः ॥२३॥ अस्माकं नृपवीराणां रथान् वेत्सि यथायथम् । कुमाराणां च सर्वेषां नानाचिह्नान्महारथान् ॥२४॥ क्षत्रियैर्बहुभिर्युक्तो नानादेशसमागतैः । शोभते भवतो व्यूहो रिपुसेनाभयंकरः ॥ २५ ॥ तदाकर्ण्य निजं प्राह सारथिं मगधेश्वरः । यादवान् प्रति शोघ्रं त्वं रथं नोदय सारथे ! ॥ २६॥ नोदितेऽथ रथे तेन लग्नश्छादयितुं नृपेट् । यादवानमितः सर्वान् शरासारैर्निरन्तरैः ॥२७॥
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ध्वजा सहित है, बलवान् घोड़ोंसे युक्त है तथा सुवर्ण और मूँगाओंसे देदीप्यमान हो रहा है ||१३|| तीतरके समान मटमैले घोड़ोंसे युक्त रथ सत्यकका है और कुमुदके समान सफेद घोड़ोंसे जुता रथ महानेमिकुमारका है ॥ १४॥ जो सुवर्णमय विशाल दण्डकी पताकासे शोभित है तथा तोतेकी चोंचके समान लाल-लाल घोड़ोंसे युक्त है ऐसा यह भोजका महारथ है ।। १५ ।। जो सुवर्णमय पलान से युक्त जुते हुए घोड़ोंसे सुशोभित है ऐसा वह हरिणकी ध्वजाके धारक जरत्कुमारका रथ सुशोभित हो रहा है ॥ १६ ॥ | वह जो काम्बोजके घोड़ोसे युक्त, सूर्यके रथके समान देदीप्यमान सफेद रंगका रथ सुशोभित हो रहा है वह राजा सोमके पुत्र सिंहलका रथ है ॥ १७॥ जो सुवर्णमय आभूषणों से चित्र-विचित्र शरीरके धारक कुछ-कुछ लाल रंगके घोड़ोंसे जुता हुआ है तथा जिसपर मत्स्यकी ध्वजा फहरा रही है ऐसा यह मरुराजका रथ सुशोभित हो रहा है ||१८|| यह जो कमलके समान आभावाले घोड़ोंसे जुता, सेनाओंके आगे स्थित है वह रणवीर राजा पद्मरथका रथ सुशोभित है ॥ १९ ॥ वह जो सुवर्णमयी झूलोंसे युक्त कबूतरके समान रंगवाले तीन वर्षके घोड़ोंसे जुता, एवं कमलकी ध्वजासे सहित रथ सुशोभित हो रहा है वह सारणका है ||२०|| जो सफेद और लाल रंगके पांच वर्षके घोड़ोंसे जुता है ऐसा वह नग्नजित् के पुत्र मेरुदत्तका रथ प्रकाशमान है ||२१|| जो पांच वर्णके घोड़ोंसे जुता है, सूर्यके समान देदीप्यमान है और जिसपर कलशकी ध्वजा फहरा रही है ऐसा यह कुमार विदूरथका वेगशाली रथ सुशोभित है ||२२|| इस प्रकार बलवान् यादवोंके रथ सब रंगके घोड़ोंसे सहित हैं तथा वे सैकड़ों या हजारों की संख्या में हैं, उनका वर्णन नहीं किया जा सकता ||२३|| अपने पक्षके शूर-वीर राजाओं तथा समस्त राजकुमारोंके नाना चिह्नोंसे युक्त रथोंको आप यथायोग्य जानते ही हैं ||२४|| नाना देशोंसे आये हुए अनेक क्षत्रियोंसे युक्त आपका यह व्यूह अत्यन्त शोभित हो रहा है तथा शत्रु सेना के लिए भय उत्पन्न कर रहा है ||२५||
यह सुनकर जरासन्धने अपने सारथिसे कहा कि हे सारथि ! तू मेरा रथ शीघ्र ही यादवों की ओर ले चल ||२६|| तदनन्तर सारथिने रथ आगे बढ़ाया और जरासन्ध लगातार
१. शुकदण्ड- म । २. मनुराजस्य क., मेरुराजस्य म । ३. पारावती म । ४. बृहद्ध्वजः म ख 1 ५. रथान् म. ।
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