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चतुःपञ्चाशः सर्ग: क वार्धिनम्बू दुममण्डिता क्षितिः क धातकीखण्डधरा दुरासदा।
गतागतादर्थगतिस्तथापि तु प्रसिद्धयति प्राक्तनजैनधर्मतः ॥७५।। इत्यरिष्टनेमिपुराणसंग्रहे हरिवंशे जिनसेनाचार्यकृतो द्रौपदीहरणाहरणदक्षिणमथुरानिवेशवर्णनो
नाम चतुःपञ्चाशः सर्गः ॥५४॥
गौतम स्वामी कहते हैं कि देखो, कहां तो लवणसमुद्र और जम्बू वृक्षसे सुशोभित जम्बूद्वीपकी भूमि और कहाँ अत्यन्त दुर्गम धातकीखण्डकी भूमि ? फिर भी पूर्वकृत जैनधर्मके प्रभावसे वहाँ यातायातके द्वारा कार्यको सिद्धि हो जाती है ।।७५।।
इस प्रकार अरिष्टनेमिपुराणके संग्रहसे युक्त, जिनसेनाचार्य रचित हरिवंशपुराणमें द्रौपदीका हरण, पुनः उसका ले आना तथा दक्षिण-मथुराके बसाये जानेका वर्णन
करनेवाला चौवनवाँ सर्ग समास हुला ||५||
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