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हरिवंशपुराणे
अन्योन्याह्वानपूर्वं ते योद्धुं लग्ना यथायथम् । 'राजानः क्रोधसंभारभ्रूमङ्गविषमाननाः ॥ १५ ॥ गजा गजैः समं लग्नास्तुरङ्गास्तुरगैः सह । रथा रथैः समं योद्धुं पत्तयः पत्तिभिः सह ॥ १६ ॥ ज्वार रथनिर्घोषैर्गजानां गर्जितेन च । मटानां सिंहनादैश्व दलन्तीव दिशो दश ॥ १७ ॥ ततः परबलं दृष्ट्वा प्रबलं स्वबलाशनम् । नेमिपार्थबलाधीशा वृषहस्तिकपिध्वजाः ॥ १८ ॥ ताक्ष्य केतुमनोभिज्ञाः स्वयं योद्धुं समुद्यताः । ऊरीकृत्य सुसन्नाहाचक्रव्यूहस्य भेदनम् ॥१९॥ दध्मौ नेमीश्वरः शङ्खं शाक्रं शत्रुभयावहम् । देवदत्तं पृथापुत्रः सेनानीश्च बलाहकम् ॥२०॥ शङ्खाना निनदं श्रुत्वा ततो व्याप्तदिगन्तरम् । स्वसैन्येऽभून्महोत्साहः परसैन्ये महामयम् ॥ २१ ॥ मध्यं बिभेद सेनानीर्ने मिर्द क्षिणतः क्षणात् । अपरोत्तरदिग्भागं चक्रव्यूहस्य पाण्डवः ॥ २२ ॥ सेनानीः परसेनान्या नेमिनाथोऽपि रुक्मिणा । पार्थो दुर्योधनेनासौ सधैर्येण पुरस्कृतः ॥ २३ ॥ महायुद्धमभूत्तस्य ततस्तेषां यथायथम् । 'सगन्धबलयुक्तानां पञ्चायुधविवर्षिणाम् ॥२४॥ नारदोऽप्सरसां संधै रेण नमसि स्थितः । मुञ्चन् पुष्पाणि तुष्टात्मा ननर्त कलहप्रियः ॥ २५ ॥ निपात्य शरवर्षेण रुक्मिणं चिरयोधनम् । रिपुराजसहस्राणि नेमिश्चिक्षेप संयुगे ॥ २६ ॥ समुद्रविजयाद्याश्च भ्रातरस्तत्सुतास्तथा । यथायथं रणे प्राप्ता निन्युर्मुत्युमुखं रिपून् ॥२७॥ रामकृष्णसुतैः संख्ये निःसंख्यशरवर्षिभिः । यथेष्टं क्रीडितं मेवैः पर्वतेष्विव वैरिषु ॥ २८ ॥ पाण्डवानां सपुत्राणां धृतराष्ट्रसुतैः सह । कदनं यद् बभूवात्र तत्कः कथयितुं क्षमः ॥२९॥
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सामने आ गयीं ॥१४॥ क्रोधकी अधिकतासे भौंहे टेढ़ी हो जानेके कारण जिनके मुख विषम हो रहे थे ऐसे दोनों पक्षके राजा परस्पर एक-दूसरेको ललकारकर यथायोग्य युद्ध करने लगे ||१५|| हाथी हाथियों के साथ, घोड़े घोड़ोंके साथ, रथ रथोंके साथ और पैदल पैदलोंके साथ युद्ध करने लगे ॥ १६ ॥ उस समय प्रत्यंचाओंके शब्द, रथोंकी चीत्कार, हाथियोंकी गर्जना और योद्धाओं के सिंहनादसे दशों दिशाएं फटी-सी जा रही थीं ॥१७॥
तदनन्तर शत्रुसेनाको प्रबल और अपनी सेनाको नष्ट करती देख, बेल, हाथी और वानरकी ध्वजा धारण करनेवाले नेमिनाथ, अर्जुन और अनावृष्टि, कृष्णका अभिप्राय जान स्वयं युद्ध करनेके लिए उद्यत हुए और चक्रव्यूहके भेदन करनेका निश्चय कर पूर्ण तैयारीके साथ आगे बढ़े ।। १८-१९।। भगवान्ने शत्रुओंको भय उत्पन्न करनेवाला अपना शाक ( इन्द्रप्रदत्त ) नामक शंख फूँका, अर्जुनने देवदत्त और सेनापति अनावृष्टिने बलाहक नामका शंख बजाया ||२०|| तदनन्तर इन शंखोंके दिगन्तव्यापी शब्द सुनकर अपनी सेनामें महान् उत्साह उत्पन्न हुआ और शत्रुकी सेना में महाभय छा गया || २१|| सेनापति अनावृष्टिने चक्रव्यूहका मध्य भाग, भगवान् नेमिनाथने दक्षिण भाग और अर्जुनने पश्चिमोत्तर भाग क्षण भरमें भेद डाला ||२२|| सेनापति अनावृष्टिका जरासन्धके सेनापति हिरण्यनाभने, भगवान् नेमिनाथका रुक्मीने और धैर्यशाली दुर्योधनने अर्जुनका सामना किया ||२३|| तत्पश्चात् अहंकारपूर्ण सेनासे युक्त एवं पाँचों प्रकारके शस्त्र बरसानेवाले उन वीरों का यथायोग्य महायुद्ध हुआ ||२४|| अप्सराओंके समूहके साथ आकाशमें दूर खड़ा कलहप्रिय नारद पुष्पवर्षा करता हुआ हर्षसे नाच रहा था || २५ || भगवान् नेमिनाथने चिरकाल तक युद्ध करनेवाले रुक्मीको बाण-वर्षासे नीचे गिराकर हजारों शत्रुराजाओं को युद्ध में तितर-बितर कर दिया ||२६|| इसी प्रकार समुद्रविजय आदि भाइयों तथा उनके पुत्रोंने युद्ध में पहुँचकर शत्रुओंको मृत्युके मुख में पहुंचाया ||२७|| युद्ध में असंख्यात बाणोंकी वर्षा करनेवाले बलदेव और कृष्णके पुत्रों, पर्वतोंपर बहुत भारी जलवर्षा करनेवाले मेघोंके समान शत्रुओंके बीच इच्छानुसार क्रीड़ा की ||२८|| पुत्रों सहित पाण्डवों का धृतराष्ट्र के पुत्रोंके साथ जो युद्ध हुआ था उसे कहने के लिए कौन
१. राजानं म. । २. समालग्ना म. । ३. बलाहकः । ४. संबन्ध म., क., ग. । ५. युद्धे ।
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