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हरिवंशपुराण
अनेकरथलक्षास्ते शस्त्रास्त्रेषु कृतश्रमाः । धार्तराष्ट्रवधं युद्धे समाधाय व्यवस्थिताः || १२७ || पृष्ठे चन्द्रयशा भूपः सिंहलो वर्वरोऽपि च । कम्बोजाः केरलाश्चापि कुशला द्रमिलास्तथा ।। १२८ ॥ रथषष्टिसहस्रस्तु शान्तनः समवस्थितः । पक्षिणो रक्षिणो ह्येते स्थिता विक्रमशालिनः ॥ १२९ ॥ अशितश्चापि भानुश्च तोमर ः समरप्रियः । संजयोऽकल्पितश्चापि मानुर्विष्णु बृंहध्वजः || १३०|| शत्रुंजयो महासेनो गम्भीरो गौतमोऽपि च । वसुधर्मादयश्चापि कृतवर्मा प्रसेनजित् ॥ १३१ ॥ "दृढवर्मा च विक्रान्तश्चन्द्रवर्मा च पार्थिवः । एते गणसहायास्तु कुलं रक्षन्ति शाङ्गिणः ।। १३२ ।। visit गरुडन्यूहो वसुदेवेन निर्मितः । महारथकृतोत्साहश्चक्रव्यूहं बिमित्सति ॥ १३३ ॥
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शालिनीच्छन्दः
चक्रव्यूहे दुर्विगाहे कृतेऽपि व्यूहे व्यूहे पक्षिराजेऽपि दक्षः । युद्धे जेता नायकः कश्चिदेको धर्मात्प्रायादर्जिता ज्जैनमार्गे ॥ १३४ ॥
इत्यरिष्टनेमिपुराण संग्रहे हरिवंशे जिनसेनाचार्यकृतो चक्रगरुडव्यूहवर्णनो नाम पञ्चाशत्तमः सर्गः ॥ ५०॥
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भर देनेवाले अनुवीयं स्थिति थे । ये सभी कुमार अनेक लाख रथोंसे युक्त थे, शस्त्र और अस्त्रों में परिश्रम करनेवाले थे, तथा युद्धमें कौरवोंके वधका निश्चय किये हुए थे ।। १२४ - १२७॥ इनके पीछे राजा चन्द्रयश, सिंहल, वर्वर, कम्बोज, केरल, कुशल ( कोसल ) और द्रमिल देशोंके राजा तथा शान्तन साठ-साठ हजार रथ लेकर स्थित थे। इस प्रकार ये बलशाली राजा उस गरुड़की रक्षा करते हुए स्थित थे । १२८ - १२९ ॥ इनके सिवाय अशित, भानु, युद्धका प्रेमी तोमर, संजय, अकल्पित, भानु, विष्णु, बृहद्ध्वज, शत्रुंजय महासेन, गम्भीर, गौतम, वसुधर्मादि, कृतवर्मा, प्रसेनजित्, दृढवर्मा, विक्रान्त और चन्द्रवर्मा आदि राजा अपनी-अपनी सेनाओंसे युक्त हो श्रीकृष्ण के कलकी रक्षा करते थे ॥१३०-१३२ ।। जिसके भीतर स्थित महारथी राजा उत्साह प्रकट कर रहे थे, ऐसा यह वसुदेवके द्वारा निर्मित गरुड़व्यूह, जरासन्धके चक्रव्यूहको भेदने की इच्छा कर रहा था ॥ १३३ ॥ | गौतम स्वामी कहते हैं कि दोनों पक्षके चतुर मनुष्योंने उस ओर यद्यपि दुःखसे प्रवेश करने योग्य चक्रव्यूह और इधर गरुड़-व्यूहकी रचना को थी तथापि जिनेन्द्र प्रदर्शित मार्गमें चलकर संचित किये हुए धर्मके प्रभावसे युद्ध में कोई एक नायक ही विजयी होगा ऐसा मैं समझता हूँ ॥ १३४ ॥
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इस प्रकार अरिष्टनेमि पुराणके संग्रहसे युक्त, जिनसेनाचार्य रचित हरिवंशपुराण में चक्रव्यूह और गरुड़व्यूहका वर्णन करनेवाला पचासवाँ सर्ग समाप्त हुआ ||५० ॥
१. धार्तराष्ट्रा वधं म., ग । २. दृढवर्या म. । ३ दृढसहायस्तु म । ४. तर्कयामि ।
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