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चतुस्त्रिशः सर्गः
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एकादिपूपवासेषु पञ्चान्तेपु यथाक्रमम् । अन्तयोः कृतयोरादौ शेषमङ्गसमुद्भवे ।।५।। कल्पितश्चतुरस्रोऽयं प्रस्तारः पञ्चमङ्गकः । सर्वतोऽप्युपवासाश्च गण्याः पञ्चदशात्र हि ॥५३॥ पञ्चभिर्गणितास्ते स्युः संख्यया पञ्चसप्ततिः । ताडिताः पञ्चभिः पञ्च पारणाः पञ्चविंशतिः ॥५४।। सर्वतोमदनामायमुपवासविधिः कृतः । विधत्ते सर्वतोमद्रं निर्वाणाभ्युदयोदयम् ॥५५॥ पञ्चादिषु नवान्तेषु मदोत्तरवसन्तकः । विधिस्तत्रोपवासास्तु पञ्चत्रिंशत्सम परम् ॥५६॥ सप्तान्तेष्वेकपूर्वेषु प्रस्तारे सप्तमङ्ग के । आद्ययोः कृतयोरन्ते सर्वभङ्गेष्वनुक्रमम् ॥५७।। अष्टाविंशतिरिष्टास्ते सर्वतः सप्तपारणाः । स महासर्वतोभद्रः सर्वतोभद्रसाधनः ॥५८॥ पञ्चाद्या यत्र रूपान्ता द्वयाद्यास्ते चतुरन्तकाः। व्याद्या रूपान्तकाः स त्रिलोकसारः स्मृतो विधिः ।।५९॥
सर्वतोभद्र-पाँच भंगका एक चौकोर प्रस्तार बनावे और एकसे लेकर पांच तकके अंक उसमें इस तरह भरे कि सब ओरसे गिननेपर पन्द्रह-पन्द्रह उपवासोंकी संख्या निकल आवे। इन पन्द्रह उपवासोंमें पाँच भंगोंका गुणा करनेसे उपवासोंकी संख्या पचहत्तर और पांच पारणाओंमें पांच भंगोंका गणा करनेसे पारणाओंको संख्या पचीस निकलती है। यह सर्वतोभद्र नामका उपवास है तथा इसकी विधि यह है कि एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा और पांच उपवास एक पारणा। इसी प्रकार आगेके भंगोंमें भी समझना चाहिए। यह सर्वतोभद्र व्रत सो दिन में होता है और निर्वाण तथा स्वर्गादिककी प्राप्तिरूप समस्त कल्याणोंको प्रदान करता है॥५२-५५॥
वसन्तभद्र-एक सोधी रेखामें पाँचसे लेकर नो तक अंक लिखे। उन सबका जोड़ पैंतीस होता है। इस प्रकार वसन्तभद्र व्रतमें ३५ उपवास होते हैं। उनका क्रम यह है कि पांच उपवास एक पारणा, छह उपवास एक पारणा, सात उपवास एक पारणा, आठ उपवास एक पारणा और नौ उपवास एक पारणा। इस व्रतमें उपवासोंके ३५ और पारणाओंके ५ इस तरह चालीस दिन लगते हैं ॥५६॥ सर्वतोभद्रयन्त्र
वसन्तभद्रयन्त्र उपवास १
उपवास ५ ६ ७ ८ ९ पारणा १ १ १ १ १ पारणा १ १ १ १ १ उपवास ४ पारणा १११११ उपवास २ पारणा उपवास ५ पारणा ११ १११ उपवास ३ पारणा १ १ १ १ १
महासर्वतोभद्र -सात भंगोंवाला एक चौकोर प्रस्तार बनावे। उसमें एकसे लेकर सात तकके अंक इस रीतिसे लिखे कि सब ओरसे संख्याका जोड़ अट्ठाईस-अट्ठाईस आवे। एक-एक भंगमें अट्ठाईस-अट्ठाईस उपवास और सात-सात पारणाएँ होती हैं। सातों भंगोंको मिलाकर एक सौ छियानबे उपवास और उनचास पारणाएं होती हैं। इसके उपवास और पारणाओंकी विधि पहलेके समान जानना चाहिए। यह महासर्वतोभद्र नामका व्रत कहलाता है तथा सब प्रकारके कल्याणोंका करनेवाला है। इसमें दो सौ पैंतालीस दिन लगते हैं ॥५७-५८।।।
त्रिलोकसारविधि-जिसमें नोचेसे पाँचसे लेकर एक तक, फिर दोसे लेकर चार तक और उसके बाद तीनसे लेकर एकतक बिन्दु रखी जावें वह त्रिलोकसार विधि है। इसका प्रस्तार
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