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षत्रिंशः सर्गः शुभपरिमलसद्यस्तापहैयङ्गवीनस्फुटसुरससुसूपव्यञ्जनक्षीरदध्ना'। विरचितमणिभूमौ हेमपान्यां सहेतौ मृदुविशदसुसिक्थं शालिमक्तं हि भुक्त्वा ॥२७॥ "सुमृदुसुरभिगन्ध्युद्वर्तितास्यस्वपाणी स्वकरकिसलयौ तौ दिग्धदिव्यानुलिप्तौ ।
[स्वकरकिसलयात्तोदिग्धदिव्यानुलेपौ] दलितहरितपूगैलादिताम्बूलरागप्रविततमुखरागाद्भासमानाधरोष्टौ ॥२८॥ विविधकरणदक्षी मल्लविद्यानवद्यौ कृतचलनसुवेषौ नीलपीताम्बराभ्याम् । बृहदुरसि विधायोदारसिन्दूरधूलीरभिनववनमालामालतीमुण्डमालौ ॥२९॥ स्थिरमनसि विधाय ध्वंसनं कंसशत्रोश्चलचरणनिघातैर्धारिणी क्षोमयन्तौ । 'सममरमतिघोरैमलवेषैः सवर्गः पुरममि मथुरां तौ चेलतुर्गापवर्गः ॥३०॥ अभिपतदुरगेन्द्र रासमं दूरसन्तं पथि हि पुरनिवेशे विघ्नयन्तं बृहध्वम् । विवृतवदनरन्धं चापतन्तं दुरन्तं कुतुरगमवधीत्तं केशवः केशिनं सः ॥३१॥ नगरमभिविशन्तौ द्वारितौ वारणेन्द्रावविरतमदलेखामण्डितापाण्डुगण्डौ । युगपदरिनियोगादापतन्तौ विदित्वा तुतुषतुरिव दृष्टा युद्धरङ्गादिमल्लौ ॥३२॥
साथ-साथ अपने घर आ गये ॥२६॥ घरपर दोनों साथ-साथ मणिजटित भूमिमें गये और वहाँ उन्होंने साथ-ही-साथ, जिसके सीथ अत्यन्त कोमल और उज्ज्वल थे ऐसा शालिधानका भात, शुभ सुगन्धित एवं तत्काल तपाये हुए धीसे स्वादिष्ट दाल, शाक, दूध और दहीके साथ जोमा। जोमनेके बाद अत्यन्त कोमल और सुगन्धित चन्दनादि द्रव्योंके चूर्णसे कुल्ला किया, हाथों में उन्हींका उद्वर्तन किया, अपने कर-किसलयमें लेकर गाढ़ा-गाढ़ा सुन्दर लेप लगाया, कटी हुई हरी सुपारी तथा इलायची आदिसे युक्त पान खाया। पानकी लालीसे उनके मुखकी स्वाभाविक लाली और भी अधिक बढ़ गयी जिससे उनके अधर तथा ओठ अत्यन्त सुन्दर दिखने लगे ॥२७-२८|| तदनन्तर जो नाना आसनोंके लगाने में चतुर थे, मल्लविद्याके निर्दोष ज्ञाता थे, नीलाम्बर और पीताम्बर धारण कर जिन्होंने चलनेके योग्य सुन्दर वेष धारण किया था, लम्बेचौड़े वक्षस्थलपर उत्तम सिन्दूरकी रज लगाकर जिन्होंने नूतन वनमाला और मालतीका सेहरा धारण किया था, और जो अपने दृढ़ मनमें वैरी कंसके मारनेका निश्चय कर चंचल चरणोंके आघातसे पृथिवीको कम्पित कर रहे थे ऐसे दोनों भाई, अतिशय भयानक मल्लोंके वेगसे युक्त एवं अपने-अपने वर्गके लोगोंसे सहित गोपोंके साथ शोघ्र ही मथुराकी ओर चले ।।२९-३०॥ मार्गमें कंसक भक्त एक असुरने नागका रूप बनाया, दूसरेने कटु शब्द करनेवाले गधाका और तीसरेने दुष्ट घोड़ेका रूप बनाया तथा नगर-प्रवेशमें विघ्न डालते हुए सबके-सब मुंह फाड़कर सामने आये परन्तु कृष्णने उन सबको मार भगाया ॥३१॥
नगरमें प्रवेश करते हुए दोनों भाई जब द्वारपर पहुंचे तो शत्रुकी आज्ञासे उनपर एक साथ चम्पक और पादाभर नामक दो हाथी हूल दिये गये। उन हाथियों के भूरे रंगके गण्डस्थल, निरन्तर झरती हुई मदको रेखाओंसे सुशोभित थे। उन हाथियोंको सामने आते जानकर दोनों भाई ऐसे सन्तुष्ट हुए जैसे युद्धकी रंगभूमिमें आगत प्रथम मल्लोंको देखकर ही सन्तुष्ट हो रहे
१. हैयङ्गवीनं म.। २. दध्नः म.। ३. भुक्तम् ग.1 ४. २८-२९ श्लोकयोः स्थाने ख पुस्तके एवं पाठः-सुमदुसुरभिगन्ध्युदर्तनोद्वतितास्यस्वकर किसलयो 'ती मल्लविद्यानवद्यौ। कृतचलनसूवेषौ नीलपीताम्बराम्यां बृहदुरसि विधायोदारसिन्दूरधूलीः ।। अभिनववनमालामालतीमुण्डमालो दरदलितसुबिम्बोद्भासमानाधरोष्ठो। ५. पलित म.। ६. समम् अरम् इतिच्छेदः । ७. वारितो म.।
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