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हरिवंशपुराणे
यामिनीषु मनीषिभ्यां हैमनीषु हिमानिलाः । सेहिरे प्रतिमास्थाभ्यां देहच्छायाग्जिनीप्लुषः ॥२१०॥ अनुप्रेक्षामिरुद्धाभिर्धर्मचारित्रशुद्धिभिः । चक्रतुः संवरं धीरौ परोषहजयेन च ॥ २११ ॥ स्वाध्याय ध्यानयोगस्थौ बैय्यावृत्यक्रियोद्यतौ । रत्तत्रयविशुद्धया तौ दृष्टौ दृष्टान्ततां गतौ ॥ २१२ ॥ बहुवर्षसहस्राणि संचितोरुतपोधनौ । मधुकैटभयोगीशौ शल्यदोषविवर्जितौ ॥ २१३ ॥ अन्ते संमेदमारुह्य प्रायोपगमनेन तौ । मासक्षपणयोगेन समाराध्योज्झिताङ्ग कौ ॥ २१४ ॥ आरणाच्युतकल्पे ताविन्द्रसामानिकौ प्रभू । देवीदेवसहस्राणां 'जातौ प्रत्येकमीश्वरौ ॥ २१५ ॥ द्वाविंशतिपयोराशिप्रमाणपरमायुषौ । बुभुजाते सुखं सम्यक् सम्यग्दर्शन मावितौ ॥ २१६ ॥ अवतीर्यं मधुर्जातो रुक्मिणीकुक्षि भूमणिः । कृष्णस्य मारते पुत्रो नाम्ना प्रद्युम्न इत्यसौ ॥२१७॥ कैटभोऽपि दिवइच्युत्वा भ्रातास्यैव भविष्यति । जाम्बवत्यां महादेव्यां शम्बः कृष्णनिमद्युतिः ॥२१८॥ जन्मान्तरमहाप्रीत्या परस्परहितोद्यतौ । धीरौ चरमदेहौ तौ शम्बप्रद्युम्नसुन्दरौ ॥ २१९ ॥ कान्ताविरह संतापादार्तध्यानपरायणः । भ्रान्त्वा संसारकान्तारं चिरं वटपुरप्रभुः || २२० ॥ मनुष्यभावमापन्नः स भूत्वाऽज्ञानतापसः । धूमकेतुरिवोद्दीप्तो धूमकेतुरभूत्सुरः ।। २२१ ।।
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के लिए वे विहार बन्द कर वृक्षोंके नीचे विराजमान रहते थे। उस समय धैर्यरूपी कवचको धारण करनेवाला उनका शरीर युद्धमें बाणोंकी पंक्तिके समान जलकी धाराओंसे खण्डित नहीं होता था । भावार्थ - वर्षा योगके समय वे वृक्षोंके नीचे बैठते थे और जलकी अविरल धाराओंको बड़े
के साथ सहन करते थे || २०९ || हेमन्त ऋतुकी रात्रियों में वे प्रतिमा योगसे विराजमान रहकर शरीर की कान्तिरूपी कमलिनीको जलानेवाली तुषार वायुको बड़ी शान्तिसे सहन करते थे || २१०|| वे दोनों धीर, वीर, मुनिराज, उत्तम अनुप्रेक्षाओं, दशधर्मों, चारित्रको शुद्धियों और परीषह जयके द्वारा संवर करते थे || २११ || वे स्वाध्याय, ध्यान तथा योग में स्थित रहते थे, वैयावृत्त्य करने में उद्यत रहते थे और रत्नत्रयकी विशुद्धता के द्वारा दृष्टान्तपनेको प्राप्त देखे गये थे || २१२ || इस प्रकार अनेक हजार वर्षं तक जिन्होंने तपरूपी विशाल धनका संचय किया था और जो शल्यरूपी दोषसे सदा दूर रहते थे ऐसे मधु और कैटभ मुनिराज अन्तमें सम्मेदाचलपर आरूढ़ हुए और वहां एक महीने का प्रायोपगमन संन्यास लेकर उन्होंने समाधिपूर्वक शरीरका त्याग किया ।। २१३-२१४॥ शरीर त्यागकर वे आरण और अच्युत स्वर्गमें हजारों देव-देवियोंके स्वामी इन्द्र और सामानिक देव हुए || २१५ || वहां बाईस सागर प्रमाण उत्कृष्ट आयुको धारण करनेवाले वे दोनों सम्यग्दृष्टि देव स्वर्गके उत्तम सुखका उपभोग करने लगे || २१६॥
उनमें जो मधुका जीव था वह स्वर्गसे च्युत हो भरत क्षेत्रमें कृष्ण नारायणकी रुक्मिणी रानीके उदररूपी भूमिका मणि बन प्रद्युम्न नामक पुत्र हुआ || २१७ || और जो कैटभका जीव था वह भी स्वर्गसे च्युत हो कृष्णकी जाम्बवती पट्टरानी में कृष्णके समान कान्तिको धारण करनेवाला प्रद्युम्नका शम्ब नामका छोटा भाई होगा || २१८ || प्रद्युम्न और शम्ब दोनों ही भाई अत्यन्त धीरवीर चरमशरीरी एवं सुन्दर थे और दूसरे जन्मसम्बन्धी महाप्रीतिके कारण परस्पर एक दूसरेके हित करने में उद्यत रहते थे ॥ २१९ ॥
वटपुरका स्वामी राजा वीरसेन चन्द्राभाके विरहजन्य सन्तापसे आतंध्यान में तत्पर रहता हुआ चिर काल तक संसाररूपी अटवीमें भ्रमण करता रहा || २२० || अन्तमें मनुष्य पर्यायको प्राप्त कर वह अज्ञानी तापस हुआ और आयुके अन्तमें मरकर धूमकेतु - अग्नि के समान प्रचण्ड धूमकेतु नामका देव हुआ || २२१||
१. याती म. ।
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