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अष्टचत्वारिंशः सर्गः अथ शम्बस्य संमृति सुभानोश्च यथाक्रमम् । कथयामि यथावृत्तं शृणु श्रेणिक हारिणीम् ॥१॥ देवः कैटभपूर्तोऽसौ पूर्वमतोऽच्युतोद्भवः । हरये हारिणं हारं ददौ भामासुतार्थिने ॥२॥ प्रदोषसम्ये हारं तं प्रशस्न प्रयोगतः । सत्यारूपधरां भुक्त्वा लेभे जाम्बवती हरेः ॥३॥ कैटमश्च तदा च्युत्वा पुण्यादप्रच्युतोदयः । धितो जाम्बवतीगर्भ सागता च निजं गृहम् ।।४।। हरि सत्यापि संग्राप्ता संग्रामसदनोदया। रमिता च दधे गर्भ सा स्वर्गच्युतसर्मकम् ॥५॥ वर्धते स्म ततो हर्षों गर्भयोर्वर्धमानयोः । पितृमातृसबन्धूनां सिन्धूनामिव चन्द्रयोः ॥६॥ पूर्णपु नवमासेपु शम्बं जाम्बवती सुतम् । सुपुवे सत्यमामापि सुभानुं भानुमास्वरम् ।।७।। हश प्रद्यम्नशम्वाभ्यां रुक्मिणी जाम्बवत्यपि । मामा भानुसुमानुभ्यां श्रिताभ्यामुदयश्रियम् ॥८॥ हरेरण्यास्वपि स्त्रीपु जाताः पुत्रा यथायथम् । यदूनां हृदयानन्दाः सत्यसत्त्वयशोऽधिकाः ॥९।। दशम्यः क्रीडासु सर्वासु कुमारशतसेवितः । जित्वा सुभानुमाक्रम्य विक्रमी रमतेतराम् ॥१०॥ रुक्मिणी शैक्मिणेयाय वैदर्मी रुक्मिणः सुताम् । ययाचे न ददौ कन्यां सोऽपि पूर्वविरोधतः ॥११॥ गन्ना मातङ्गवेषेण शम्बप्रद्युम्नसंवरौ । बलादाहरतां कन्यां रुक्मिणं परिभूय तौ ॥१२॥
अथानन्तर गौतम गणधरने कहा कि हे श्रेणिक ! अब मैं आगमानुसार क्रमसे शम्ब तथा सुभानु कुमारकी मनोहर उत्पत्तिका वर्णन करता हूँ तुम सुनो ॥१॥
राजा मधुका भाई कैटभ जिसका पहले वर्णन आ चुका है, अच्युत स्वर्गमें देव हुआ था। जब उसकी वहांकी आयु समाप्त होनेको आयी तब वह सत्यभामाके लिए पुत्रकी इच्छा रखनेवाले श्रीकृष्णके लिए एक सुन्दर हार दे गया ॥२॥ सायंकालके समय प्रद्युम्नके प्रयोगसे सत्यभामाका रूप धारण कर रानी जाम्बवतीने कृष्णके साथ उपभोग कर वह हार प्राप्त कर लिया ।। ३ ॥ पुण्यके उदयसे उसी समय अखण्ड अभ्युदयको धारण करनेवाला कैटभका जीव स्वर्गसे च्युत हो जाम्बवतोके गर्भ में आ गया। गर्भ धारण कर रानी जाम्बवती अपने घर आ गयी ।। ४ ।। तदनन्तर सत्यभामा भी कृष्णके पास पहुंची और कामके उदयको प्राप्त हो श्रीकृष्णके साथ रमण कर उसने भी स्वर्गसे च्युत किसी शिशुको गर्भमें धारण किया ।।५।। तदनन्तर दोनों रानियोंका गर्भ बढ़ने लगा और जिस प्रकार चन्द्रमाओंके बढ़नेपर समुद्रोंका हर्ष बढ़ने लगता है उसी प्रकार उन दोनों रानियोंके गर्भके बढ़नेपर माता-पिता तथा कुटुम्बी जनोंका हर्ष बढ़ने लगा ॥६॥ तदनन्तर नौ माह पूर्ण होनेपर रानी जाम्बवतीने शम्ब नामक पुत्रको और रानी सत्यभामाने सूर्यके समान देदीप्यमान सुभानु नामक पुत्रको उत्पन्न किया ।।७।। इधर अभ्युदयको प्राप्त प्रद्युम्न और शम्बसे रुक्मिणी तथा जाम्बवती हर्षको प्राप्त हुई उधर भानु और सुभानुसे सत्यभामा भी अत्यधिक हर्षित हुई ।।८।। कृष्णको अन्य स्त्रियों में भी यथायोग्य अनेक पुत्र उत्पन्न हुए जो यादवोंके हृदयको आनन्द देनेवाले तथा सत्य, पराक्रम और यशसे अत्यधिक सुशोभित थे ।।९।। सैकड़ों कुमारोंसे सेवित पराक्रमी शम्ब, समस्त क्रीड़ाओंमें सुभानुको दबा देता था और उसे जीतकर सातिशय कोड़ा करता था ।।१०॥
रुक्मिणीके भाई रुक्मीकी एक वैदर्भी नामकी कन्या थी। रुक्मिणीने उसे माँगा परन्तु रुक्मीने पूर्व विरोधके कारण उसके लिए वह कन्या न दी ॥११॥ यह सुन शम्ब और प्रद्युम्न दोनों भीलके वेषमें गये और रुक्मीको पराजित कर बलपूर्वक उस कन्याको हर १. स्वबन्धूनां म. ।
कविता
लिए
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