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चतुश्चत्वारिंशः सर्गः
भामायास्तनुजः श्रीमान् भानुभामण्डलद्युतिः । भानुर्नाम्ना महिम्नासौ ववृधे बालभानुबत् ॥१॥ भानुना वर्धमानेन भानुभानुनिभौजसा । सूनुना सत्यमामाया मानशैलः प्रवर्धितः १२॥ अन्यदा नारदोऽवादि कृष्णेन भगवन् ! कुतः । आगतोऽस्यधुनास्यं ते कथयत्यधिको मुदम् ॥॥ सोऽवोचदक्षिणश्रेण्यामस्ति जम्बूपुरे खगः । जाम्बवः शिवचन्द्रास्य चन्द्रास्या वल्लभा तयोः ॥४॥ विश्वक्कृतयशाः पुत्रो विश्वक्सेन इतिश्रुतिः । कन्या जाम्बवती नाम्ना श्रीरिव स्वयमागता ॥५॥ जाह्नवीमवतीणां तु सखीभिः स्नातुमुद्यताम् । चन्द्रलेखामिवोदारां कान्ततारामिरावृताम् ॥६॥ गङ्गाद्वारगेतामङ्गतुङ्गच्छन्नपयोधराम् । हर वीर पराशक्यां जाम्बर्वस्येव वाहिनीम् ॥७॥ इति नारदवाक्येन सस्नेहेन हरिस्तदा । प्रोद्दीपितः समुत्तस्थौ घृतेनेव हुनाशनः ॥८॥ अनावृष्टिबलोपेतस्तं प्रदेशमितोऽचिरात् । प्रारब्धमजनकोडामपश्यत्कन्यको हरिः ॥०॥ सहसा कन्ययादर्शि हरिरिन्दीवरतिः । ततोऽङ्गजेन तौ विद्धौ शरैः पञ्चभिरेकदा ॥१०॥ दोामालिङ्गय तां गाः सुखामोलितलोचनाम् । आमीलितेक्षणो जह हेपितश्रीरसिद्वियम् ॥१५॥
रानी सत्यभामाका जो पुत्र था वह श्रीमान् तथा सूर्यके प्रभामण्डलके समान देदीप्यमान था इसलिए उसका भानु नाम रखा गया। वह भानु प्रातःकालके सूर्यके समान अपनी महिमासे बढ़ने लगा ॥१॥ सूर्यको किरणोंके समान तेजका धारक भानु ज्यों-ज्यों बढ़ता जाता था त्यों-त्यों सत्यभामाका मानरूपी पर्वत बढ़ता जाता था ॥२॥ तदनन्तर किसी समय नारद कृष्णकी सभामें आये तो कृष्णने उनसे पूछा-भगवन् ! इस समय कहाँसे आ रहे हैं ? आपका मुख किसी बड़े भारी हर्षको प्रकट कर रहा है॥३॥ नारदने कहा-विजयार्ध पर्वतको दक्षिणश्रेणीमें एक जम्बपूर नामका नगर है। उसमें जाम्बव नामका विद्याधर रहता है, उसकी शिवचन्द्रा नामकी चन्द्रमुखी भार्या है। उन दोनोंके सब ओर यश को फैलानेवाला विश्वक्सेन नामका पुत्र तथा जाम्बवती नामको कन्या है। जाम्बवती क्या है मानो स्वयं आयी हुई लक्ष्मी ही है ॥४-५॥ वह इस समय सखियोंके साथ स्नान करने के लिए गंगा नदीमें उतरो है और सुन्दर ताराओंसे घिरी चन्द्रमाकी कलाके समान उत्तम जान पड़ती है। वह गंगाके द्वारमें स्थित है तथा ऊंचे उठे वस्त्राच्छादित स्तनोंसे युक्त है। वह जाम्बव नाम पर्वतसे निकली नदीके समान है एवं दूसरेके लिए प्राप्त करना अशक्य है अथवा अपने पिता जाम्बवकी सेनाके समान दूसरेके लिए वश करना अशक्य है ॥६-७॥
___इस प्रकार स्नेहसे युक्त नारदके इन वचनोंसे श्रीकृष्ण उस समय उस प्रकार उत्तेजित हो उठे जिस प्रकार कि घोसे अग्नि उत्तेजित हो उठती है ॥८॥ वे *अनावृष्टि और उसकी सेनाको साथ ले शीघ्र ही उस स्थानकी ओर चल पड़े। वहाँ जाकर उन्होंने स्नान-क्रीड़ाको प्रारम्भ करनेवाली जाम्बवतोको देखा ।।९। उसी समय सहसा नील कमलके समान कान्तिके धारक श्रीकृष्णपर कन्या जाम्बवतीकी दृष्टि भी जा पड़ी। तदनन्तर कामदेवने एक ही साथ अपने पाँचों बाणोसे दोनोको वेध दिया ॥१०॥ अवसर देख श्रीकृष्णने श्री, रति और ह्रीदेवीको लज्जित करनेवाली जाम्बवतीका दोनों भुजाओंसे गाढ़ आलिंगन किया। तदनन्तर जिनके नेत्र कुछ-कुछ निमीलित हो रहे थे ऐसे श्रीकृष्ण, स्पर्शजन्य सुखसे निमीलित नेत्रोंवाली उस कन्याको हर १. सूर्यकिरणतुल्यतेजसा । २. गङ्गाद्वारवती ख.। ३. तुङ्गवत्तपयोधरां म.। ४. जाम्बवो नाम पर्वतः तस्य वाहिनी नदी तामिव । * अथवा अनावृष्टि और बलदेवको साथ ले।
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