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हरिवंशपुराणे
स्वालक्षणवती लक्ष्मीरिव वक्षःस्थलाश्रिता । बालेयं वासुदेवस्य भविष्यति भविष्यतः ॥ ५१ ॥ षोडशानां सहस्राणां विष्णोः स्त्रीगुणसंयुजाम् । अन्तरन्तः पुरस्त्रीणां प्रभुत्वमियमेष्यति ॥५२॥ इत्यादिश्य तदा यातः सिद्धादेशो महामुनिः । कथा चान्तर्हिता विष्णोः कियन्संचिदनेहसम् ॥ ५३ ॥ पुनर्जन्मकथेवेयं नारदेन कथा कृता । यदि सत्यमिदं सर्वं सत्यं वेद्मि मुनेर्वचः ॥ ५४ ॥ एवं पुनः शिशुपालाय बाले ! बान्धवतां युजे । सुप्रभुत्वभृता भ्रात्रा रुक्मिणा' किल दयसे ॥५५ ॥ विवाहसमयस्तेऽपि प्रत्यासन्नस्तु वर्तते । अद्य श्वो वा त्वदर्थं च शिशुपालः किलैष्यति ॥५६॥ विदर्भपतिपुत्री तन्निशम्य वचनं जगौ । कथमस्य मुनेर्वाक्यमन्यथा भवति क्षितौ ॥५७॥ तन्मदीयमभिप्रायं कथंचिदपि सत्वरम् । द्वारिकापतये यत्नात् प्रापयेति स मत्प्रियः ॥ ५८ ॥ इति श्रुत्वा मनोज्ञात्वा कन्यकायाः पितृष्वसा । विससर्ज रहस्येनं लेखमाप्तेन सत्वरम् ॥ ५९ ॥ स्वन्नामग्रहणाहारप्रीणितप्राणधारिणी । हरे ! काङ्क्षति ते रक्ता रुक्मिणी हरणं श्वया ॥ ६० ॥ शुक्लाष्टम्यां हि माघस्य यदि माधव ! रुक्मिणीम् । त्वमेत्य हरसि क्षिप्रं तवेयमविसंशयम् ॥ ६१ ॥ अन्यथा तु वितीर्णायाश्चैद्याय गुरुबान्धवैः । स्वद्लाभे मवेदस्याः शरणं मरणं हरे ! ॥६२॥ नागवल्यपदेशेन बाह्योद्यानस्थितामिमाम् । तदवश्यं त्वमागत्य स्वीकुरुष्व कृपापरः ॥६३॥ लेखार्थमिति तवार्थमधिगम्य स माधवः । सावधानमनास्तस्थौ रुक्मिणीहरणं प्रति ॥ ६४ ॥
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उत्तम लक्षणोंसे युक्त है अतः लक्ष्मीके समान होनहार नारायण श्रीकृष्णके वक्षःस्थलका आलिंगन प्राप्त करेगी । कृष्णके अन्तःपुरमें स्त्रियोंके योग्य गुणोंसे युक्त सोलह हजार रानियां होंगी, उन सबमें यह प्रभुत्वको प्राप्त होगी - उन सबमें प्रधान बनेगी।' इस प्रकार कहकर अमोघवादी मुनिराज उस समय चले गये और कुछ समय तक कृष्णकी चर्चा अन्तर्हित रही आयी । परन्तु आज नारदने पुनर्जन्मको कथाके समान यह कथा पुनः उठायी है । यदि यह सब सत्य है तो में समझती हूँ कि मुनिराजके उक्त वचन सत्य ही निकलेंगे । परन्तु हे बाले ! विचारणीय बात यह है कि तेरा भाई रुक्मी जो अत्यधिक प्रभावको धारण करनेवाला है वह तुझे बन्धुपनेको धारण करनेवाले शिशुपालके लिए दे रहा है । तेरे विवाहका समय भी निकट है और आज-कलमें तेरे लिए शिशुपाल यहाँ आनेवाला है ॥४९-५६॥
फुआके ऐसे वचन सुन रुक्मिणीने कहा कि मुनिराजके वचन पृथिवीपर अन्यथा कैसे हो सकते हैं || ५७॥ इसलिए आप मेरे अभिप्रायको किसी तरह शीघ्र ही प्रयत्न कर द्वारिकापतिके पास भेज दीजिए। वही मेरे पति होंगे ॥५८॥ कन्याके यह वचन सुनकर तथा उसका अभिप्राय जानकर फुआने शीघ्र ही एक विश्वासपात्र आदमीके द्वारा गुप्त रूपसे यह लेख श्रीकृष्ण के पास भेज दिया || ५९ || लेखमें लिखा था कि हे कृष्ण ! रुक्मिणी आपमें अनुरक्त है तथा आपके नामग्रहणरूपी आहारसे सन्तुष्ट हो प्राण धारण कर रही है । यह आपके द्वारा अपना हरण चाहत है । हे माधव ! यदि माघ शुक्ला अष्टमीके दिन आप आकर शीघ्र ही रुक्मिणीका हरण कर ले जाते हैं तो निःसन्देह यह आपकी होगी । अन्यथा पिता और बान्धवजनोंके द्वारा यह शिशुपाल के लिए दे दी जायेगी और उस दशा में आपकी प्राप्ति न होनेसे मरना ही इसे शरण रह जायेगा अर्थात् यह आत्मघात कर मर जायेगी । यह नागदेवकी पूजाके बहाने आपको नगरके बाह्य उद्यान में स्थित मिलेगी सो आप दयालु हो अवश्य ही आकर इसे स्वीकृत करें ।। ६०-६३॥ इस प्रकार लेखके यथार्थं भावको ज्ञात कर कृष्ण, रुक्मिणीका हरण करने के लिए सावधानचित्त हो गये ॥ ६४ ॥
१. रुक्मिणी म. । २. दीयते म. ।
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