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हरिवंशपुराणे कुलमणिभूषणनगनुलेपनोद्भासितं प्रयोज्य शुमपर्वतं विभुमरिष्टनेम्याख्यया । सुरासुरगणास्ततः स्तुतिभिरिस्थमिन्द्रादयः परीत्य परितुष्ट्रवुर्जिनमिनं सुपृथ्वीश्रियाम् ॥५५॥ इत्यरिष्टनेमिपुराणसंग्रहे हरिवंशे जिनसेनाचार्यकृती जन्माभिषेकवर्णनो
नामाष्टत्रिंशः सर्गः ॥३८॥
तदनन्तर इन्द्र आदि समस्त सुर और असुरोंके समूहने उत्तम वस्त्र, मणिमय आभूषण, माला तथा विलेपनसे सुशोभित, कल्याणके पर्वत, एवं अतिशय विशाल लक्ष्मीके स्वामी श्री जिनेन्द्र देवका अरिष्टनेमि नाम रखकर उनकी प्रदक्षिणा दी और उसके बाद नाना प्रकारको स्तुतियोंसे उनका स्तवन किया ।।५५।।
इस प्रकार अरिष्टनेमि पुराणके संग्रहसे युक्त, जिनसेनाचार्य रचित हरिवंश पुराणमें भगवान के
जन्माभिषेकका वर्णन करनेवाला अड़तीसवाँ सर्ग समाप्त हआ ॥३८॥
१. जिनमिति म.। २. श्रियम् म., ग. ।
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