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एकोनचत्वारिंशः सर्गः
दोधकवृत्तम्
योजनभूरिसहस्त्रनभोगं भोगकरत्वमिवाचलनाथम् । नाथ ! परं स्नपनासनमिद्धमिद्धमतिः कुरुते क उदारः ॥ १० ॥
ईदृशमीश विभुत्वममानं मानधनामरमानवमान्यम् । मान्यतमोऽन्यतमो भुवि नो को नाकमवोऽपि जिनैति यथा त्वम् ॥१३॥ शैशव एव जनातिगसत्त्वः सस्वहितो भुवनत्रयनूतः । नूतनमक्तिभरेण नतानां तानवमानससौख्यकरें स्त्वम् ॥ १२॥ कामकरीन्द्रमृगेन्द्र नमस्ते क्रोधमहाहिविराज नमस्ते । मानमहीधरवज्र नमस्ते लोभमहावनदाव नमस्ते ॥ १३ ॥ ईश्वरताधरधीर नमस्ते विष्णुतया युत देव नमस्ते । अहं दचिन्त्यपदेश नमस्ते ब्रह्मपदप्रतिबन्ध नमस्ते ॥१४॥ सत्यवचोनिवहैः सुरसंघा इत्यमिनुस्य जिनं प्रणिपत्य । तारकमुप्रभवाद्वरमेकं याचितवन्त इनं वरबोधिम् ॥ १५ ॥
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सस्यसे परिपूर्ण एवं अत्यन्त रक्षणीय भूमिको रक्षा करनेवाले हैं । हे सबके रक्षक भगवन् ! इस तरह आप अनन्त गुणोंके धारक हैं । हे नाथ! आपके गुणोंकी अभिलाषासे हम आपके प्रति नम्रीभूत हैं - आपको नमस्कार करते हैं ||९|| हे नाथ ! यह अनेकों हजार योजन ऊँचा पर्वतोंका राजा सुमेरु पर्वत भी मानो आपके योगका साधन हो गया। सो आपके सिवाय प्रचण्ड बुद्धको धारण करनेवाला ऐसा कौन महापुरुष है जो इसे श्रेष्ठ तथा देदीप्यमान स्नानपीठ बना सकने को समर्थ है ॥१०॥
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हे ईश ! यह आपका ऐश्वयं अपरिमित है, मानरूपी धनके धारक बड़े-बड़े देव तथा मनुष्योंके द्वारा माननीय है । हे जिनेन्द्र ! इस संसार में स्वर्ग में उत्पन्न होनेवाला भी ऐसा कौन दूसरा माननीय पुरुष है जो आपके समान ऐश्वर्यको प्राप्त कर सके ॥ ११॥ हे भगवन् ! बाल्यकाल में भी आप लोकोत्तर पराक्रमके धारक हैं, प्राणियोंके हितकारक हैं, तीनों लोकोंके द्वारा स्तुत हैं तथा आप नूतन भक्तिके भारसे नम्रीभूत मनुष्योंके लिए शारीरिक और मानसिक सुखके करनेवाले हैं ||१२|| हे प्रभो ! आप कामरूपी गजराजको नष्ट करनेके लिए सिंहके समान हैं इसलिए आपको नमस्कार हो । आप क्रोधरूपी महानागको वश करनेके लिए पक्षिराज —- गरुड़ के समान हैं इसलिए आपको नमस्कार हो । आप मानरूपी पर्वतको चकनाचूर करने के लिए वज्रके समान हैं अतः आपको नमस्कार हो और आप लोभरूपी महावनको भस्म करने के लिए दावानल के समान हैं इसलिए आपको नमस्कार हो ||१३|| आप ईश्वरताके धारण करने में धीर-वीर हैं अतः आपको नमस्कार हो । हे देव ! आप विष्णुतासे युक्त हैं अतः आपको नमस्कार हो । आप अर्हन्तरूप अचिन्त्य पदके स्वामी हैं अतः आपको नमस्कार हो और आप ब्रह्मपदको प्राप्त करनेवाले हैं अतः आपको नमस्कार हो ||१४|| इस प्रकार सत्य वचनोंके समूहसे देवोंने भगवान्की स्तुति कर उन्हें प्रणाम किया तथा भयंकर संसारसे पार करनेवाले भगवान् से उन्होंने यही एक वर मांगा कि हे भगवन् ! हम लोगोंको उत्तम बोधिकी प्राप्ति हो ॥ १५ ॥
१. ना पुरुषः भट: किनामधेय इत्यर्थः । २ नाकभुवोऽपि ग. । ३. मानव म. ४. शारीरिक मानसिकसौख्यविधायकः । ५. क्रोधमहानागगरुड़ । ६. ब्रह्मपथप्रतिबन्ध म., ग.
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