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हरिवंशपुराणे
अनुष्टुप्
द्वौ द्वौ चैकादयः शस्ताः पञ्चपर्यवसानकाः । हीने ह्युभयतः षष्टिः सिंहनिष्क्रीडिते विधौ ॥७८॥ त एक चाष्टपर्यन्ता नवं च शिखराः पुनः । मध्यमेऽप्युपवासाः स्युखि पञ्चाशं शतं स्फुटम् ॥७९॥
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सिंहनिष्क्रीडित विधि - सिंहनिष्क्रीडित व्रत जघन्य, मध्यम और उत्कृष्टके भेदसे तीन प्रकारका है, उनमें हीन अर्थात् जघन्य सिंहनिष्क्रीडित व्रतका क्रम इस प्रकार है। एक ऐसा प्रस्तार बनावे जिसमें एक से लेकर पाँच तकके अंक दो दो वार आ जावें तथा वे पहलेके अंकोंमें दो-दो अंकोंकी सहायता से एक-एक बढ़ता और घटता जाय इस रीतिसे लिखे जावें । पुनः पाँचसे लेकर एक तक के अंक भी दो-दो बार पूर्वोक क्रमसे लिखे जावें । समस्त अंकोंका जोड़ करनेपर जितनी संख्या हो उतने उपवास और जितने स्थान हों उतनी पारणाएँ जानना चाहिए। इस व्रतके प्रस्तारका आकार यह है
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इसमें पहले एक उपवास एक पारणा और दो उपवास एक पारणा करना चाहिए। फिर दो में से एक उपवासका अंक घट जानेसे एक उपवास एक पारणा, दोमें एक उपवासका अंक बढ़ जाने से तीन उपवास एक पारणा, तोनमें एक उपवासका अंक घट जानेसे दो उपवास एक पारणा, तीनमें एक उपवासका अंक बढ़ जानेसे चार उपवास एक पारणा, चारमें से एक उपवासका अंक घट जानेसे तीन उपवास एक पारणा, चारमे एक उपवासका अंक बढ़ जानेसे पांच उपवास एक पारणा, पाँच में से एक उपवासका अंक कमा देनेपर चार उपवास एक पारणा, चारमें एक उपवासका अंक बढ़ा देनेपर पाँच उपवास एक पारणा होती है । यहाँपर अन्तमें पाँचका अंक आ जानेस पूर्वार्ध समाप्त हो जाता है । आगे उलटी संख्यास पहले पाँच उपवास एक पारणा करनी चाहिए | पश्चात् पांचमे से एक उपवासका अंक कमा देनेपर चार उपवास एक पारणा, चार में एक उपवासका अक बढ़ा देनेपर पाँच उपवास एक पारणा, चारमें से एक उपवासका अंक घटा देनेपर तीन उपवास एक पारणा, तीनमें एक उपवासका अंक बढ़ा देनेपर चार उपवास एक पारणा, तीन में से एक उपवासका अंक घटा देनेपर दो उपवास एक पारणा, दोमें एक उपवासका अंक बढ़ा देनेसे तोन उपवास एक पारणा, दोमें से एक उपवासका अंक घटा देनेपर एक उपवास एक पारणा, फिर दो उपवास एक पारणा और एक उपवास एक पारणा करना चाहिए। इस जघन्य सिंहनिष्क्रीडित व्रतमें समस्त अंकोंका जोड़ साठ होता है इसलिए साठ उपवास होते हैं और स्थान बोस हैं इसलिए पारणाएं बीस होती हैं । यह व्रत अस्सी दिनमें पूर्ण होता है ॥७८॥ मध्यम सिंहनिष्क्रीडित विधि - मध्यम सिंहनिष्क्रीडित व्रत में एकसे लेकर आठ अंक तकका प्रस्तार बनाना चाहिए और उसके शिखरपर नौ अंक लिखना चाहिए। उसके बाद उलटे क्रमसे एक तकके अंक लिखना चाहिए । यहाँ भी जघन्य निष्क्रीडितके समान दो-दो अंकों की अपेक्षा एक-एक उपवासका अंक घटाना-बढ़ाना चाहिए। इस रीतिसे लिखे हुए समस्त अंकों का जितना जोड़ हो उतने उपवास और जितने स्थान हों उतनी पारणाएँ समझनी चाहिए। इस तरह इस व्रतमें एक सो त्रेपन उपवास और तैंतीस पारणाएं होती हैं। यह व्रत एक सौ छियासी दिन में पूर्ण होता है । इसका प्रस्तार इस प्रकार है - ॥ ७९ ॥
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