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हरिवंशपुराणे रूपान्तान्यपि षोडशप्रभृतयो रन्ध्र 'त्रिकं द्वय कर्क
यत्रषा कनकोवली प्रकुरुते लोकान्तिकत्वं फलम् ॥७॥ द्विध्ने संकलिते हि षोडशगते त्रिनात्मकोच्चैश्चतुः
पञ्चाशत् त्रिकयोज्ययोजितचतुःशल्याश्चतुस्त्रिंशता । द्विध्नैकादश षोडशान्वितचतुस्विंशद्दिनैः साशन -
वर्ष द्वादशवासरैरमिहिताः पञ्चेह मासा विधौ ॥७५।। एकद्वित्रिचतुर्द्विकानि सहितैस्ते षोडशैकादिभि
विज्ञेयानि सितं चतुर्द्विकयुतं त्रिंशद्विकान्यादरात् । एकान्ता खलु षोडशादय इह ह्यष्टौ द्विकान्येव त विदयकोऽपि च यत्र ते प्रकथिता रत्नावलीयं परा ॥७६॥
स्रग्धरावत्तम् षटपञ्चाशदद्विकोत्थे द्विकपरिगुणिते मिश्रिते षोडशोत्थ
द्वासप्तत्या द्विशत्याशनिरसनगणो गण्यते मिश्रितेऽस्मिन् ।
जोड़ देनेपर जितनी संख्या हो उसमें चौवनके तिगुने एक सौ बासठ और मिला दें। ऐसा करनेसे चार सौ चौंतीस उपवास निकल आते हैं और अठासी स्थान होनेसे अठासी पारणाएँ होती हैं। इस कनकावली विधिमें एक वर्ष पाँच मास और बारह दिन लगते हैं ।।७४-७५।।
दूसरे प्रकारको रत्नावलीविधि-जिसमें रत्नोंके हारके समान एक प्रस्तार बनाकर बायीं ओर पहले बेलाका सूचक दो बिन्दुओंका एक द्विक लिखे, फिर दो बेलाओंके सूचक दो द्विक लिखे, फिर तीन बेलाओंके सूचक तीन द्विक लिखे, फिर चार बेलाओंके सूचक चार द्विक लिखे। इसके आगे एक उपवासको सूचक एक बिन्दु लिखे, उसके बाद दो उपवासोंकी सूचक दो बिन्दुएं बराबरीपर लिखे। तदनन्तर इसके आगे इसी प्रकार तीन आदि उपवासोंकी सूचक सोलह तक बिन्दुएं रखे। फिर वे बायीं ओरसे दाहिनी ओर गोलाकार. बढ़ते हुए बत्तीस बेलाओंके बत्तीस द्विक लिखे और उनके नीचे चार बेलाओंके सूचक चार द्विक लिखे। तीस द्विकके ऊपर सोलह आदि उपवासोंके सूचक सोलहसे लेकर एक तक बराबरीपर सोलह पन्द्रह आदि बिन्दुएँ रखे। और उसके आगे आठ बेलाओंके सूचक आठ द्विक, तीन बेलाओंके सूचक तीन द्विक, दो बेलाओंके सूचक दो द्विक तथा एक बेलाका सूचक एक द्विक लिखे। इस व्रतमें छप्पन द्विकके द्विगुणित एक सौ बारह तथा दोनों ओरकी षोडशियोंके दो सौ बहत्तर इस प्रकार सब मिलाकर तीन सौ चौरासी उपवास और अठासी स्थानोंके अठासी भुक्तिकाल होते हैं। यह व्रत एक वर्ष तीन माह और बाईस दिनमें पूरा होता है तथा रत्नत्रयरूपी तेजको बढ़ानेवाला है अर्थात् इस व्रतके फलस्वरूप रत्नत्रयमें निर्मलता आती है। इसकी विधि इस प्रकार है-एक बेला एक पारणा, एक बेला एक पारणा, इस क्रमसे दश बेला दश पारणा, फिर एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा इस क्रमसे सोलह उपवास तक बढ़ाना चाहिए। फिर एक बेला एक पारणा इस क्रमसे तीस बेला तीस पारणा, फिर षोडशीके सोलह उपवास एक पारणा, पन्द्रह उपवास एक पारणा, इस क्रमसे एक उपवास एक
१. द्विकं श्येककं म.। २. एकः द्वौ, नववारं त्रयः, एकः द्वौ त्रयः इत्यादि षोडशपर्यन्ताः, ततः चतुस्त्रिशद्वार उपवासत्रिक ( तेला) ततः षोडश पञ्चदश इत्याद्यकपर्यन्ताः, ततः नववार उपवासत्रिकं ततो द्वावेकश्च इति कनकावली। ३. पारणादिवसः। ४. कनकावलीसमयः एको वर्षः पञ्चमासाः द्वादशदिनानि । ५. गिरि क., म.। ६. अन्तं।
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