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पचत्रिशः सर्गः
प्रवर्धमानेष्वथ तत्र तेषु सुदृष्टिसुश्रावकभूतिवृद्धिः । अपूर्वनानाविधत्रस्तुलाभैस्तदात्यशेतापरभूपैभूतीः ॥९॥ इतोऽपि देवक्यपि भर्तृवाक्यादपाकृतापत्य वियोगदुःखा । शनैः प्रपेदे प्रतिपत्कलेव दिनोत्तरैः पूर्ववदेव कान्तिम् ॥१०॥ अथैकदा चन्द्रसिते निशान्ते निशान्तकान्ते शयने शयाना । ददर्श सप्तोदयशंसिनः सा पदार्थकान् स्वप्न इमान्निशान्ते ॥११॥ प्रदीप्तमुद्यन्तमिनं तमोऽन्तं समञ्चकान्तं शशिनं प्रपूर्णम् । श्रियं सदिग्नागमहाभिषेकां विमानमाकाशतलान्नमच्च ॥१२॥ ज्वलद्बृहज्ज्वालहुताशमुच्चैः सुरध्वजं रत्नमरीचिचक्रम् | मृगाधिपं चाननमाविशन्तं निशाम्य सौम्या बुबुधे सकम्पा ॥१३॥ अपूर्व सुस्वप्नविलोकनात्सा सविस्मया हृष्टतनूरुहा तानू ।
जगौ प्रभाते कृतमङ्गलाङ्गा समेत्य पत्येऽभिदधे स विद्वान् ॥१४॥ प्रतापविध्वस्तरिपुः सुतस्ते प्रियोऽतिसौभाग्ययुतोऽभिषेकी । दिवोऽवतीर्यातिरुचिः स्थिरोऽमीर्भविष्यति क्षिप्रमिनो' जगत्याः ॥१५॥
लिए अत्यन्त प्रिय थे, जिनके नृपदत्त, देवपाल, अनीकदत्त, अनीकपाल, शत्रुघ्न और जितशत्रु ये नाम पहले कहे जा चुके थे, जिनका सुखपूर्वक लालन-पालन हो रहा था, तथा जो अत्यन्त रूपवान् थे ऐसे वसुदेवके छहों पुत्र धीरे-धीरे वृद्धिको प्राप्त होने लगे ॥ ८ ॥ तदनन्तर उन पुत्रोंके वृद्धिगत होनेपर सुदृष्टि सेठको नाना प्रकारकी अपूर्वं अपूर्व वस्तुओं का लाभ होने लगा और उसके वैभवकी वृद्धि उस समय अन्य राजाओंके वैभवको भी अतिक्रान्त कर दिया ॥ ९ ॥ इधर पतिके कहने से जिसने सन्तान वियोगजन्य दुःखको दूर कर दिया था ऐसी देवकी भी धीरे-धीरे प्रतिपदकी चन्द्रकला के समान दिनोंदिन पहले की ही कान्तिको प्राप्त हो गयी ॥ १० ॥
तदनन्तर एक दिन देवकी, चन्द्रमाके समान सफेद भवनमें प्रातः कालके समान सुन्दर शय्या पर शयन कर रही थी कि उसने रात्रिके अन्तिम प्रहरमें अभ्युदयको सूचित करनेवाले निम्नलिखित सात पदार्थं स्वप्न में देखे || ११|| पहले स्वप्न में उसने अन्धकारको नष्ट करनेवाला उगता हुआ सूर्य देखा। दूसरे स्वप्न में उसीके साथ अत्यन्त सुन्दर पूर्ण चन्द्रमा देखा। तीसरे स्वप्नमें दिग्गज जिसका अभिषेक कर रहे थे ऐसी लक्ष्मी देखी। चौथे स्वप्न में आकाश तलसे नीचे उतरता हुआ विमान देखा। पांचवें स्वप्न में बड़ी-बड़ी ज्वालाओंसे युक्त अग्नि देखी । छठे स्वप्नमें ऊँचे आकाशमें रत्नोंकी किरणोंसे युक्त देवोंकी ध्वजा देखी और सातवें स्वप्न में अपने मुखमें प्रवेश करता हुआ एक सिंह देखा । इन स्वप्नोंको देखकर सौम्यवदना देवकी भय से काँपती हुई जाग उठी ||१२-१३ || अपूर्वं एवं उत्तम स्वप्न देखनेसे जिसे विस्मय उत्पन्न हो रहा था, जिसके शरीरमें रोमांच निकल आये थे, और जिसने प्रातःकालके समय शरीरपर मंगलमय अलंकार धारण कर रखे थे ऐसी देवकीने जाकर पतिसे सब स्वप्न कहे और विद्वान् पति - राजा वसुदेवने इस प्रकार उनका फल कहा ॥ १४ ॥
"हे प्रिये ! तुम्हारे शीघ्र ही एक ऐसा पुत्र होगा जो समस्त पृथिवीका स्वामी होगा। तुमने.. पहले स्वप्न में सूर्य को देखा है इससे सूचित होता है कि वह अपने प्रतापसे शत्रुओं को नष्ट करनेवाला होगा। दूसरे स्वप्न में पूर्ण चन्द्रमा देखा है उसके फलस्वरूप वह सबको प्रिय होगा। तीसरे
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१. भूपभूमि: म. । २. सूर्यम् । ३. समन्तकान्तं म । ४. इन: स्वामी । 'राजाधिपः पतिः स्वामी भर्तेन्द्र इन ईशिता' इति धनञ्जयः ।
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