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पञ्चत्रिंशः सर्गः
उपेन्द्रवज्रा अरिष्टनेमेश्चरितं निशम्य यदुः परं श्रेणिक संप्रहृष्टः । प्रणम्य मावादतिमुक्तकर्षि जगाम कान्तासहितो निशान्ते ।।१।। यथापुरा तौ मथुरासुपुर्या यथेष्टमाक्रीडनयातिसक्तौ । सुदम्पती तस्थतुरिष्टभोगी सशङ्ककंसेन समय॑मानौ ।।२।। बभार गर्भ युगलात्मकं सा सुदेवकी कंसमयस्य हेतुम् । सहायमावो हि विपक्षयोगान्महामयस्योपनिपातहेतुः ॥३॥ अथ प्रसूती सुतयुग्ममस्याः सुरेण संक्रामितमिन्द्र वाक्यात् । सुनैगमेतिश्रुतिना सुमद्रं सुभदिलोद्भूतपुरोक्तधाश्याः ॥४॥ प्रजातमात्रं खलु दैवयोगात सुदृष्टिजायाव्यसुपुत्रयुग्मम् । स देवकीसूतिगृहे निधाय जगाम देवो निजदेवलोकम् ॥५॥ प्रविश्य कंसः स्वसृसूतिगेहं निरीक्ष्य निर्जीवित जीवयुग्म । । प्रगृह्य पादेषु निराद सैद्रः शिलातले ताडितवान् सशङ्कः ॥६॥ क्रमेण स द्वन्द्वयुगं प्रयातं निनाय देवोऽप्यलका सुकामाम् । पुनश्च कंसोऽप्यसुविप्रयुक्तमताडयत्पूर्ववदेव पापी ॥७॥ पडप्य विघ्ना वसुदेवपुत्राः स्वपुण्यरक्ष्यास्त्वलकातिहृद्याः ।
पुरोक्तसंज्ञाः सुखलालितास्ते शनैरवर्धन्त ततोऽतिरूपाः ॥८॥ अथानन्तर गौतम स्वामी कहते हैं कि हे श्रेणिक ! इस प्रकार अतिमुक्तक मुनिराजसे भगवान् अरिष्टनेमिका चरित सुनकर वसुदेव बहुत प्रसन्न हुए और भावपूर्वक मुनिराजको नमस्कार कर स्त्री सहित अपने घर चले गये ॥१॥ जिन्हें भोग अत्यन्त इष्ट थे ऐसे दोनों दम्पति इच्छानुसार क्रीड़ामें आसक्त होते हुए मथुरापुरीमें पहलेके समान रहने लगे और मृत्युको शंकासे शंकित कंस इनकी निरन्तर सेवा-शुश्रूषा करने लगा ॥२॥ तदनन्तर देवकीने कंसके भयका कारण युगल सन्तानरूप गर्भ धारण किया सो ठीक ही है क्योंकि शत्रुओंमें परस्परके मिल जानेसे जो सहाय भाव उत्पन्न होता है, वह शत्रुके लिए महाभयकी प्राप्तिका कारण हो जाता है ।। ३ ।। तत्पश्चात् प्रसूति कालके आनेपर जब देवकीके यगल पुत्र उत्पन्न हए तब इन्द्रकी आज्ञासे सनैगम नामका देव उन उत्तम युगल पुत्रोंको उठाकर सुभदिल नगरके सेठ सुदृष्टि की स्त्री अलका ( पूर्वभवकी रेवती धायका जीव ) के यहां पहुंचा आया। उसी समय अलकाके भी युगालिया पुत्र हुए थे परन्तु भाग्यवश वे उत्पन्न होते ही मर गये थे। नैगम देव उन दोनों मृत पुत्रों को उठाकर देवकी के प्रसूति गृहमें रख आया और उसके बाद अपने स्वर्ग लोकको चला गया ।।४-५ ॥ शंकासे युक्त कंसने बहनके प्रसूतिका गृहमें प्रवेश कर उन दोनों मृतक पुत्रोंको देखा और भीलके समान रौद्रपरिणामी हो पैर पकड़कर उन्हें शिलातलपर पछाड़ दिया ।। ६ ।। तदनन्तर देवकीने क्रम क्रमसे दो युगल और उत्पन्न किये सो देवने उन्हें भी पुत्रोंकी इच्छा रखनेवाली अलका सेठानीके पास भेज दिया। इधर पापी कंसने भी उन निष्प्राण पुत्रोंको पहले के समान ही शिलापर पछाड़ दिया ।। ७ ।। तदनन्तर अपना पुण्य हो जिनकी रक्षा कर रहा था, जो अलका सेठानीके १. -दतिमुक्तिकर्षि म.। २. -तिशक्तो ग., घ., ङ,। ३. भृत ।
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