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हरिवंशपुराणे निजभुजबलशाली हेलयैवावगाह्य हृदमपि कुपितोत्थं कालियाहिं महोग्रम् । फणमणिकिरणौधोद्गीर्णवह्निस्फुलिङ्गव्यतिकरमतिकृष्णं मंभु कृष्णो ममर्द ॥७॥ तटरुहविटपाग्रव्यग्रगोपप्रणादस्फुटहलधरधीरध्वानसंहृष्टदेहः । भुजनिहतभुजङ्गः संसमुच्छित्य पद्मानुपतटमटतिस्म द्राक् मरुत्वानिवासी ॥४॥ प्रविलसदतिमास्वत्पीतवासा बलेन प्रमदमरवशेन प्रोल्लसन्मेचकेन । सरमसमुपगूढश्चोढतोऽमाद्भुजाभ्यामसितसितशिलाग्रेणेव सोऽब्दः सविद्युत् ॥९॥ निहितकमलमारान् गोपकैरप्रतोरिः परगुणमसहिष्णुः सोष्णमुच्छ्वस्य दृष्टा । सममणदिति शीघ्रं नन्दगोपात्मजायाः सरभसमिह गोपा मल्लयुद्धाय सन्तु ॥१०॥ इति विहितमहाज्ञो मल्लयुद्धाय मल्लानतिकठिनकनिष्ठज्येष्ठमध्यप्ररूढान् । द्रुततरमुपकण्ठे स्वस्य चक्रे स चक्रक्रकचनिशितचित्तः कर्तुकामस्तदानीम् ॥११॥ चरितमिदमकालक्षेपि विज्ञाय शत्रोः स्थिरमतिवसुदेवश्चाप्यनावृष्टियुक्तः । ज्ञपयितुमपि सर्व ज्येष्ठवर्ग स वार्तामगमयदिह शीघ्रं संनिधानाय तस्य ॥१२॥ विदितरिपुविचेष्टास्ते नव ज्येष्ठमुख्या रथतुरगपदातिप्रोन्मदेभैः स्वसैन्यैः ।
सरमसमभिजग्मुमतलं भूषयन्तः शठहृदयमकस्मात्सस्मयं दारयन्तः ॥१३॥ उस ह्रदके सम्मुख भेजा जो प्राणियोंके लिए अत्यन्त दुर्गम था और जहाँ विषम साँप लहलहाते रहते थे ॥६॥
अपनी भुजाओंके बलसे सुशोभित कृष्ण अनायास ही उस ह्रदमें घुस गये और जो कुपित होकर सामने आया था, महाभयंकर था, फणपर स्थित मणियोंकी किरणोंके समूहसे जो अग्निके तिलगोंकी शोभा प्रकट कर रहा था तथा अत्यन्त काला था ऐसे कालिय नामक नागका उन्होंने शीघ्र ही मर्दन कर डाला ||७|| किनारेके वृक्षकी शाखाओंपर चढ़े धबड़ाये हुए गोपोंकी जय-जयकार तथा बलभद्रके गम्भीर शब्दसे जिनका समस्त शरीर रोमांचित एवं हर्षित हो रहा था तथा भुजाओंसे जिन्होंने कालिय भुजंगको नष्ट किया था ऐसे श्रीकृष्ण कमल तोड़कर वायुके समान शोघ्र ही तटके समीप आ गये ॥८॥ देदीप्यमान पीताम्बरसे सुशोभित श्रीकृष्ण ज्यों ही ह्रदसे बाहर निकले त्यों ही आनन्दके समूहसे विवश, नीलाम्बरसे सुशोभित बलभद्रने दोनों भुजाओंसे उनका गाढालिंगन किया। उस समय नीलाम्बरधारी गौरवणं बलभद्रसे आलिंगित पीताम्बरधारी श्याम सलोने कृष्ण, ऐसे जान पड़ते थे जैसे बिजली सहित श्याम मेघ, काली और सफेद शिलाओंके अग्रभागसे आलिगित हो रहा हो ।।९।।
दूसरोंके गुणोंको सहन नहीं करनेवाला वैरी कंस, गोपालोंके द्वारा सामने रखे हुए कमलोंके समूहको देखकर गरम-गरम उच्छ्वास भरने लगा। तदनन्तर उसने शीघ्र ही यह आज्ञा दी। नन्द गोपके पुत्रको आदि लेकर समस्त गोप यहां मल्लयुद्धके लिए अविलम्ब तैयार हो जावें ॥१०॥ इस प्रकार मल्लयुद्ध के लिए कड़ी आज्ञा देकर चक्र और करोंतके समान तीक्ष्ण चित्तका धारक कंस मल्लयुद्ध के लिए इच्छुक हो शीघ्र ही अत्यन्त बलवान् छोटे-बड़े और मध्यम श्रेणीके मल्लोंको उसी समय बुलाकर अपने पास रख लिया ॥११॥ स्थिर बुद्धिके धारक वसुदेवने, अपने अनावृष्टि पुत्रके साथ सलाहकर शत्रुकी इस चेष्टाको तत्काल समझ लिया और अपने समस्त बड़े भाइयोंको बतलाने तथा उन्हें शीघ्र ही मथुरामें उपस्थित होनेके लिए खबर भेज दी ॥१२॥ जिन्होंने शत्रुकी चेष्टाको जान लिया था ऐसे वसुदेवके नौ ही बड़े भाई, रथ, घोडे. पदाति और
१. शीघ्रम् म.। २. भेदः म.। ३. वायुरिव ( ग- टि.)।
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