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चतुस्त्रिशः सर्गः
आर्या मावोपमाव्यवहारप्रतीत्यसंभावनासुमाषाबाम् । जनपदसंवृतिनामस्थापनारूपा दश नवघ्नाः ॥१०॥
अनुष्टुप् षट्चत्वारिंशदोषानेषणासमिती मतान् । नवघ्नान् विनितुं कार्यास्तावन्त उपवासकाः ॥१०॥ प्रयोदशविधस्यैव चारित्रस्य विशुद्धये । विधौ चारित्रशुद्धौ स्युरुपवासाः प्रकीर्तिताः ॥१०॥
आयो निर्विकृतिपश्चिमार्धावकस्थान तथोपवासश्च । आचाम्ल-भुक्तमेकं तपोविधिस्स्वेककल्याणः ॥१०॥
अनुष्टुप पञ्चकृत्वः कृतावश्यः पञ्चकल्याण उच्यते । चतुर्विशतिसंख्यान् स कार्यस्तीर्थकरान् प्रति ॥११॥ तुर्यव्रतोपवासैस्तु शीलकल्याणको विधिः । पञ्चविंशतिसंख्यैस्तैर्भावनाविधिरिष्यते ॥१२॥
इस प्रकारके रात्रिभोजनका नौ कोटियोंसे त्याग करना चाहिए तथा अनिच्छा-दूसरेकी जबर्दस्तीसे भी रात्रिमें भोजन नहीं करना चाहिए। इस भावनाको लेकर रात्रिभोजन त्याग व्रतमें दश उपवास होते हैं और दश ही पारणाएँ होती हैं। मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति इन तीन गुप्तियों तथा ईर्या, आदान, निक्षेपण और प्रतिष्ठापन समिति इन तीन समितियोंमें प्रत्येकके नौ कोटियोंकी अपेक्षा नौ-नौ उपवास होते हैं अर्थान् तीन गुप्तियोंके सत्ताईस उपवास और सत्ताईस पारणाएं हैं तथा उपरिकथित तीन समितियोंके भी सत्ताईस उपवास और सत्ताईस पारणाएं जाननी चाहिए ॥१०६||
भाषा समितिमें १ भाव सत्य, २ उपमा सत्य, ३ व्यवहार सत्य, ४ प्रतीत सत्य, ५ सम्भावना सत्य, ६ जनपद सत्य, ७ संवृत्ति सत्य, ८ नाम सत्य, ९ स्थापना सत्य और १० रूप सत्य इन दश प्रकार सत्य वचनोंका नौ कोटियोंसे पालन करना पड़ता है। इस अभिप्रायको लेकर भाषासमितिमें नब्बे उपवास होते हैं तथा इतनी ही पारणाएं होती हैं ॥१०७॥
और एषणा समितिमें नो कोटियोंसे लगनेवाले छियालीस दोषोंको नष्ट करनेके लिए चार सौ चौदह उपवास होते हैं तथा उतनी ही पारणाएं होती हैं ॥१०८॥ इस प्रकार तेरह प्रकारके चारित्रको शुद्ध रखनेके लिए चारित्र शुद्धि व्रतमें सब मिलाकर एक हजार दो सौ चौंतीस उपवास कहे हैं तथा इतनी हो पारणाएं कही गयी हैं। इस व्रतमें छह वर्ष दश माह आठ दिन लगते हैं ॥१०९||
एककल्याण विधि-पहले दिन नीरस आहार लेना; दूसरे दिन, दिनके पिछले भागमें अर्ध आहार लेना, तीसरे दिन एकस्थान-इक्काट्ठाना करना अर्थात् भोजनके लिए बैठनेपर एक बार जो भोजन सामने आवे उसे ही ग्रहण करना, चौथे दिन उपवास करना और पांचवें दिन आचाम्लइमलीके साथ केवल भात ग्रहण करना, यह एककल्याणककी विधि है ॥११०॥
चकल्याण विधि-जो विधि एककल्याण व्रतमें कही गयी है उसे समता, वन्दना आदि आवश्यक कार्य करते हुए पांच बार करना सो पंचकल्याणक विधि है। यह पंचकल्याणक विधि चौबीस तीथंकरोंको लक्ष्य करके करना चाहिए ।।११।।
शील कल्याणक विधि-चतुर्थ ब्रह्मचर्य महाव्रतमें जो एक सो अस्सी उपवास बतलाये हैं उनमें उपवास कर लेनेपर शील कल्याणक विधि-व्रत पूर्ण होता है। एक उपवास एक पारणा, दूसरा उपवास दूसरी पारणा, इस क्रमसे करनेपर इस व्रतमें ३६० दिन लगते हैं।
भावनाविधि-अहिंसादि महाव्रतोंमें प्रत्येक व्रतकी पांच-पांच भावनाएं हैं। एकत्रित करने
१. पश्चिमाद्वारकस्थानं म.। पश्चिमाहारकस्थानं ङ.। २. कृतावश्या म., ग.।
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