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हरिवंशपुराणे
रथोद्धता रूपमादिरधि यत्र पञ्च ते त्रिस्ततो भवति रूपमप्यतः । शातकुम्भविधिरेष संभवे शातकुम्मसुखदस्तृतीयके ॥४७॥
शातकुम्भ विधि-शातकुम्भ विधि जघन्य, मध्यम और उत्कृष्टके भेदसे तीन प्रकारको है उनमें जघन्य शातकुम्भ विधि इस प्रकार है । एक ऐसा प्रस्तार बनावे जिसमें एकसे लेकर पांच तकके अक्षर पांच, चार, तीन, दो, एकके क्रमसे लिखे। तदनन्तर प्रथम अंक अर्थात् पांच को छोड़कर अवशिष्ट अंकोंको चार, तीन, दो, एकके क्रमसे तीन बार लिखे। सब अंकोंका जितना जोड़ हो उतने उपवास और जितने स्थान हों उतनी पारणाएं जाने। इस विधिमें पैंतालीस उपवास और सत्तरह पारणाएं हैं, यह बासठ दिनमें पूर्ण होता है। प्रस्तारका आकार इस प्रकार है
५ ४ ३ २ १ ४ ३ २ १ ४ ३ २ १ ४ ३ २ १
मध्यमशातकुम्भ विधि-एक ऐसा प्रस्तार बनावे जिसमें एकसे लेकर नौ पर्यन्त तकके अंक नौ, आठ, सात, छह, पांच, चार, तीन, दो, एकके क्रमसे लिखे । तदनन्तर प्रथम अंक अर्थात् नोको छोड़कर आठ-सात आदिके क्रमसे अवशिष्ट अंकोंको तीन बार लिखे। सब अंकोंका जितना जोड़ हो उतने उपवास और जितने स्थान हों उतनी पारणाएं जाने। इस व्रतमें एक सौ त्रेपन उपवास और तैंतीस पारणाएं हैं। यह व्रत एक सौ छियासी दिन में पूर्ण होता है। इसका प्रस्तार इस प्रकार है
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८ ७ ६ ५ ४ ३ २ १ ८ ७ ६ ५ ४ ३ २ १
उत्कृष्ट शातकुम्भ विधि-एक ऐसा प्रस्तार बनावे जिसमें एकसे लेकर सोलह तकके अंक सोलह पन्द्रह चौदह आदिके क्रमसे एक तक लिखे फिर प्रथम अंकको छोड़कर अवशिष्ट अंकोंका जितना जोड़ हो उतने उपवास और जितने स्थान हों उतनी पारणाएं जाने। इस व्रतमें चार सौ छियानबे उपवास और इकसठ पारणाएँ हैं। यह विधि पांच सौ सन्तावन दिनमें पूर्ण होती है। इसका प्रस्तार इस प्रकार है
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१३
१२ ११
१० ९
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१४ १३
१२ ११ १० ९
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४ ६
३ ५
२ ४
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१४ १३ १२ ११
१० ९ ८७ ६५ ४ ३ २१
यह विधि सुवर्णमय कलशोंसे अभिषेक सम्बन्धी सुखको देनेवाली है। यह इन १. ४५ उपवासाः १७ पारणाः ।
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