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चतुस्त्रिशः सर्गः
उपजातिः
चतुश्चतुर्थान्वितषष्ठकेन त्रिषष्टितावेष्टनभागषष्ठे ।
विमानपङ्क्तिर्विधिरस्य कर्ता विमान पङ्क्तीश्वर भावकर्ता ॥ ८६ ॥
चैत्यालयोंको लक्ष्य कर उपवास करने पड़ते हैं। इस प्रकार इस व्रतमें पाँचों मेरु सम्बन्धी अस्सी चैत्यालयोंके अस्सी उपवास और बीस वन सम्बन्धी बीस बेला करने पड़ते हैं तथा सो स्थानोंकी सौ पारणाएँ होती हैं। इसमें दो सौ बीस दिन लगते हैं । व्रत, जम्बूद्वीपके मेरुसे शुरू होता है । इसमें प्रथम ही भद्रशाल वनके चार चैत्यालयोंके चार उपवास; चार पारणाएँ और वनसम्बन्धी एक बेला, एक पारणा होती है । फिर नन्दन वनके चार चैत्यालयोंके चार उपवास, चार पारणाएँ और वन सम्बन्धी एक बेला एक पारणा होती है । फिर सोमनस वनके चार चैत्यालयोंके चार उपवास चार पारणाएँ और वन सम्बन्धी एक बेला एक पारणा होती है । तदनन्तर पाण्डुक वनके चार चैत्यालयोंके चार उपवास चार पारणाएँ और वन सम्बन्धी एक बेला एक पारणा होती है । इसी क्रमसे धातकीखण्ड द्वीपके पूर्व और पश्चिम मेह तथा पुष्करार्धं द्वीपके पूर्व और पश्चिम मेरु सम्बन्धी उपवास बेला और पारणाएँ जानना चाहिए। यह मेरुपंक्तिव्रत, मेरु पर्वतपर महाभिषेकको प्राप्त कराता है अर्थात् इस व्रतका पालन करनेवाला पुरुष तीर्थंकर होता है ||८५॥ विमानपंक्ति विधि - इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णकके भेदसे विमान तीन प्रकारके हैं । इन्द्रक विमान बीचमें है और श्रेणीबद्ध विमान चारों दिशाओं में श्रेणीरूपसे स्थित हैं । ऋतु विमानको आदि लेकर इन्द्रक विमानोंकी संख्या त्रेसठ है । विमानपंक्तिव्रतमें इनकी चारों दिशाओं में श्रेणीबद्ध विमानोंकी अपेक्षा चार उपवास, चार पारणाएँ और इन्द्रककी अपेक्षा एक बेला एक पारणा होती है । इस तरह त्रेसठ इन्द्रक विमानोंकी चार-चार श्रेणियोंकी अपेक्षा चार-चार उपवास होनेसे ये दो सौ बावन उपवास तथा त्रेसठ इन्द्रक सम्बन्धी त्रेसठ बेला होते हैं । त्रेसठ बेलाके बाद एक तेला होता है इस प्रकार उपवास २५२ बेला ६३ और तेला १ सब मिलाकर तीन सौ सोलह स्थान होते हैं अत: इतनी ही पारणाएँ होती हैं। यह व्रत पूर्व, दक्षिण पश्चिम और उत्तर दिशाके क्रमसे होता है । चारों दिशाओंके चार उपवासके बाद बेला होता है । इसमें कुल छह सौ सत्तानबे दिन लगते हैं । यह व्रत विमानोंकी ईश्वरता प्राप्त करानेवाला है अर्थात् इस व्रतका करनेवाला मनुष्य विमानोंका स्वामी होता है || ८६ ॥
विमानपंक्तियन्त्र --
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श्रेणी
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१. ६८७ दिनेषु समाप्यते अत्र ३१६ स्थानानि ।
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. ६३ x ४ = २५२ उपवास ६३x १.
६३ वेला
१ तेला
३१६ ३१६ पारणा
४३५
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