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कवल १ उपवास ...
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आर्या
एकादयः प्रणीता विधयोऽमी शातकुम्भपर्यन्ताः । पञ्चनवषोडशान्ता भवन्त्यपि प्रथममध्यमोत्कृष्टाः ॥ ८८ ॥ उपजातिवृत्तम्
यथोक्तमेषां हि तपोविधीनां विधेरशक्तरुपवाससंख्या । यथात्मशक्ति स्वहितप्रवृत्तैश्चतुर्थषष्ठाष्टमतोऽपि पूर्या ॥ ८९ ॥ स्रग्धरा
योऽमावस्योपवासी प्रतिपदि कवलाहारमात्रः पुरस्ता
सद्वृद्धया पौर्णमास्यामुपवसनयुतोद्धासयन् ग्रासमध्रे । साभावस्योपवासः स मजति तपसश्चन्द्रगत्यानुपूर्या
पोंकी विधि कही है परन्तु जो मनुष्य इनके करनेमें असमर्थ हैं वे अपनी शक्तिके अनुसार आत्महित में प्रवृत्त होते हुए उपवास, बेला तथा तेलाके द्वारा भी उपवासोंकी निश्चित संख्या पूरी कर सकते हैं ||८७-८९ ।।
कवल २
चान्द्रायणविधि - चान्द्रायण व्रत चन्द्रमाकी सुन्दर गतिके अनुसार होता है। इस व्रतका करनेवाला अमावस्या के दिन उपवास करता है फिर प्रतिपदाको एक कवल - एक ग्रास मात्र आहार लेता है । तदनन्तर द्वितीयादि तिथियों में एक-एक ग्रास बढ़ाता हुआ चतुर्दशीको चौदह कवलका आहार करता है। पूर्णिमाके दिन उपवास करता है फिर चन्द्रमाकी कलाओंके अनुसार
कवलचान्द्रायणविधियन्त्र -
कयल 2
कथल ४
चाय चान्द्रायणस्य प्रविततयशसः कर्तृणः कर्तृभावम् ॥ ९० ॥
कथल ५
कवल ५
कवल ७
कवल ८
चतुस्त्रिंशः सर्गः
A
कवल ९
केवल १०
कवल ११
कवल १३
कवल १२
कवल १४
उपवास
१४ केवल
१३ कवल
१२ कवल
११ कवल
१५ कवल
कवल
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कंवल
७ कवल
६ कवल
५ केवल
४ कवल
३ कवल
४३७
कवस
1 कवल
१. १५३ उपवासाः ३३ पारणाः । २. ४९६ उपवासाः ६१ पारणाः । ३. अमावस्यायामुपवास: प्रतिपदि एककवलाहारः एवं क्रमेण चतुर्दश्यां चतुर्दशकवलाहारः तत उपवासः कृष्णप्रतिपदि चतुर्दशकवलाहारः एवमूनक्रमेण पुनरमावस्यायामुपवासः । ★ एक हजार चावलोंका एक कवल होता है । अतः एक हजार चावलों का जितना परिमाण हो उतना कवल बनाना चाहिए ।
....... उपवास
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