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द्वात्रिंशः सर्गः
देव ! वेगवती पत्नी बालचन्द्रा च मे सुता । पादयोस्तव संपत्य वान्छति प्रियदर्शनम् ॥१३॥ कुमारी स्वद्गतप्राणा बालचन्द्रावतिष्ठते । गत्वा तां त्वं विवाह्याशु कुरु तच्चित्तनिर्वृतिम् ॥ १४ ॥ तदाकर्ण्य वचस्तेन दृष्टिज्येष्ठे समर्पिता । अभिप्रायविदा तेन लध्वेहीति' विसर्जितः ॥ १५ ॥ तमादाय गता सापि पुरं गगनवल्लभम् । समुद्र विजयाद्याश्च ययुः शौर्य पुरं नृपाः ॥ १६॥ भार्यां वेगवतीं दृष्ट्वा शौरिर्गगनबल्लभे । बाल चन्द्रामुवाहात्र पूर्णचन्द्रसमाननाम् ॥ १७ ॥ नववध्वा तया सार्धं वेगवत्या च हृद्यया । रममाणोऽवसत्तत्र दिनानि कतिचित्सुखी ॥१८॥ ताभ्यां जिगमिषोस्तस्य शीघ्रं शौर्यपुरं पुरम् । चक्रे वनवती देवी विमानं रत्नभास्वरम् ॥ १९ ॥ पिता का दंष्ट्रोऽथ परिवारं ददौ परम् । समस्तं बालचन्द्राया वेगवत्याश्च सोऽग्रजः ॥ २० ॥ कामगेन विमानेन सोऽनेन वनितासखः । अरिंजयपुरं गत्वा विद्युद्वेगं निरैक्षत ॥२१॥ प्रियां मदनवेगां तामनावृष्णि च देहजम् । आदायाशु विमानेन तेनैव वियदुद्ययौ ॥२२॥ पुरं गन्धसमृद्धं द्राक् श्रीसमृद्धमवाप्य सः । सुतां गान्धारराजस्य पश्यति स्म प्रभावतीम् ॥२३॥ समारोप्य विमाने तां परिवारसमन्विताम् । प्राप्तः प्राप्त महाहर्पः सहसासितपर्वतम् ॥२४॥ सिंहदंष्ट्रात्मजां दृष्ट्वा स नीलयशसं प्रियाम् । तत्रारमत्तया चित्रं प्रवियुक्तसमेतया ॥ २५ ॥ तामध्यादाय संप्राप्तः किन्नरोद्गीतमत्र च । नीलोत्पलदलश्यामां कामं श्यामाममानयत् ॥ २६ ॥
सबको अभिनन्दनकर सुखदायक आसनपर बैठ गयी। कुछ समय बाद उसने वसुदेवको लक्ष्य कर कहा कि हे देव ! आपकी पत्नी वेगवती तथा हमारी पुत्री बालचन्द्रा आपके चरणोंमें गिरकर आपका प्रिय दर्शन करना चाहती हैं ॥११- १३|| कुमारी बालचन्द्राके प्राण एक आपमें ही अटक रहे हैं इसलिए शीघ्र जाकर उसे विवाहो और उसका चित्त सन्तुष्ट करो || १४ || विद्याधरीके वचन सुनकर कुमार वसुदेवने अपनी दृष्टि बड़े भाई समुद्रविजयपर डाली और अभिप्रायको जाननेवाले बड़े भाई भी 'जल्दी जाओ' कहकर उन्हें छोड़ दिया - विद्याधरीके साथ जानेकी अनुमति दे दी ||१५|| तदनन्तर विद्याधरी वसुदेवको लेकर गगनवल्लभपुर गयी और समुद्रविजय आदि राजा शौर्यपुर चले गये ||१६|| वसुदेवने गगनवल्लभ नगरमें अपनी प्रिया वेगवती से मिलकर पूर्णचन्द्रके समान मुखवाली बालचन्द्राको विवाहा ||१७|| और विवाह के बाद वे नयी वधू बालचन्द्रा तथा हृदयको अत्यन्त प्रिय लगनेवाली वेगवतीके साथ क्रीड़ा करते हुए कुछ दिन तक वहीं सुखसे रहे आये ||१८|| कुछ दिन बाद कुमार वमुदेवने उन दोनों स्त्रियों के साथ शीघ्र ही शोयंपुर लोटने की इच्छा प्रकट की जिससे एणीपुत्रकी पूर्वं भत्रकी माँ वनवतो देवीने रत्नोंसे देदीप्यमान एक विमान रचकर उन्हें दे दिया || १९|| यह देख बालचन्द्राके पिता कांचनदंष्ट्र तथा वेगवतीके बड़े भाई मानसवेगने समस्त परिवार के साथ बालचन्द्रा और वेगवतीको कुमार के लिए सौंप दिया ||२०|| कुमार, दोनों स्त्रियोंको साथ ले इच्छानुसार चलनेवाले विमानके द्वारा अरिंजयपुर नगर गये और वहां जाकर विद्युद्वेगसे मिले ||२१|| वहाँसे प्रिया मदनवेगा और अनावृष्णि नामक उसके पुत्रको लेकर वे शीघ्र ही उसी विमानसे आकाशमें उड़ गये ||२२|| तदनन्तर शीघ्र ही लक्ष्मीसे समृद्ध गन्धसमृद्ध नामक नगरमें जाकर वे गान्धार राजाकी पुत्री प्रभावती से मिले ||२३|| तत्पश्चात् परिवार सहित उसे विमानमें बैठाकर महान् हर्षको प्राप्त होते हुए वे असितपर्वत नामक नगर में पहुँचे ||२४|| वहाँ राजा सिंहदंष्ट्र की पुत्री प्रिया नीलंयशासे मिले और बियोगके बाद मिली हुई उस नीलंयशाके साथ नाना प्रकारकी क्रोड़ा करने लगे ||२५|| तत्पश्चात् उसे साथ ले किन्नरोद्गीत नामक नगर पहुँचे और वहाँ नील कमलकी कलिकाओंके समान श्यामवर्णं श्यामा नामक स्त्रीको उन्होंने अच्छी तरह
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१. शीघ्रमागच्छेत्युक्त्वा विसर्जितः । २ सार्द्धं म । ३. या नागदेवता पूर्वं प्रोक्ता सैव वनवतीत्यपरनामधेया । ४. निरीक्ष्यत म. क. । ५. चित्तं प्रवियुक्तं समेतया म. 1
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