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द्वात्रिंशः सर्गः
अथ सा रोहिणी मत्र विचित्रे शयनेऽन्यदा । प्रसुप्ता चतुरः स्वप्नान् ददर्श शुभसूचिनः ॥ १ ॥ रुन्द्र' चन्द्रसमच्छायं गजेन्द्रं मन्द्रगर्जितम् । समुद्रं सान्द्रनिर्घोषं ' महोधोच्चैर्महोर्मिकम् ॥२॥ चन्द्र चन्द्रमुखी पूर्णं दृष्ट्वा पूर्णमनोरथा । कुन्दशुभ्रं मृगेन्द्रं सा ददर्शास्यप्रवेशिनम् ॥३॥ विबुद्धा च प्रभाते तान् विबुद्धाम्बुजलोचना । पत्ये न्यवेदयत्सोऽस्या इति स्वप्नफलं जगी ॥ ४ ॥ उत्पत्स्यते सुतः क्षिप्रं धीरोऽलङ्ध्यः शशिप्रभः । एकवीरो भुवो भर्त्ता प्रिये ! ते जनताप्रियः ॥ ५ ॥ इति पत्या समादिष्टं श्रुत्वा स्वप्नफलं शुभम् | हारिणी रोहिणी हृष्टा शिश्रिये श्रियमैन्दवीम् ॥६॥ च्युत्वा कल्पान्महाशुक्रान्महासामानिकः सुरः । गर्भेऽभूदिह रोहिण्या धरण्या इव सन्मणिः ॥७॥ ततः पूर्णेषु मासेषु सुखं संपूर्णदोहला । सासूत सुतमृक्षेषु शुभेपु शशिसंनिभम् ||८|| तस्य जन्मोत्सवं दृष्ट्वा जरासन्धपुरःसराः । यथास्थानं ययुः प्रीताः पार्थिवाः कृतपूजनाः || ९ || अमिरामः स रामाख्यां प्रख्याप्य पृथिवीतले । वर्द्धते वर्द्धयन् प्रीतिं पित्रोर्बन्धुजनस्य च ॥१०॥ श्रीमण्डपस्थितान् सर्वानेकदा रौधियपदे । समुद्र विजयाद्यांस्तान् वसुदेवहितोद्यतान् ॥ ११ ॥ खावतीर्णाभिनन्द्यैका दिव्या विद्याधरी श्रिता । वसुदेवमितः प्राह सुखासनकृतासना ।।१२।।
अथानन्तर किसी समय वह रोहिणी अपने भर्ता - वसुदेवके साथ विचित्र शय्यापर शयन कर रही थी कि उसने शुभको सूचित करनेवाले चार स्वप्न देखे || १ || पहले स्वप्न में उसने गम्भीर गर्जन करता हुआ चन्द्रमाके समान सफेद विशाल हाथी देखा। दूसरे स्वप्न में पर्वत के समान ऊँची एवं बड़ी-बड़ी लहरोंसे युक्त अत्यधिक शब्द करनेवाला समुद्र देखा। तीसरे स्वप्न में पूर्ण चन्द्रमाको देखकर चन्द्रमुखी रोहिणीका मनोरथ पूर्ण हो गया और चौथे स्वप्न में उसने मुखमें प्रवेश करता हुआ कुन्दके समान सफेद सिंह देखा || २ - ३ || प्रातः कालके समय जागनेपर जिसके नेत्र खिले हुए कमल के समान सुशोभित थे ऐसी रोहिणीने वे स्वप्न पति के लिए बतलाये और पतिने उनका यह फल बताया कि हे प्रिये ! तुम्हारे शीघ्र ही ऐसा पुत्र होगा जो धीर, वीर, अलंघ्य, चन्द्रमाके समान कान्तिवाला, अद्वितीय वीर, पृथिवीका स्वामी और जनताका प्यारा होगा ||४-५ || इस प्रकार पतिके द्वारा बताये हुए स्वप्नोंका शुभ फल सुनकर सुन्दरी रोहिणी हर्षित हो उठी तथा चन्द्रमाको शोभा धारण करने लगी || ६ || उसी समय महासामानिक देव महाशुक्र स्वर्गसे च्युत होकर रोहिणी के गर्भ में उस तरह स्थित हो गया जिस तरह कि पृथिवीके गर्भ में उत्तम मणि स्थित होता है ||७||
तदनन्तर जिसके समस्त दोहला पूर्ण किये गये थे ऐसी रोहिणीने सुखसे नौ माह पूर्ण होनेपर शुभ नक्षत्रों में चन्द्रमाके समान सुन्दर पुत्र उत्पन्न किया ||८|| जो जरासन्ध आदि राजा एक वर्षसे राजा रुधिरके यहाँ रह रहे थे उस पुत्रका जन्मोत्सव देखकर प्रसन्न होते हुए अपनेअपने स्थानपर गये । जाते समय राजा रुधिरने उन सबका खूब सत्कार किया ||२|| वह बालक अत्यन्त सुन्दर था इसलिए पृथिवीतलपर अपना 'राम' नाम प्रसिद्ध कर माता-पिता और बन्धुजनोंकी प्रीतिको बढ़ाता हुआ दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगा ||१०||
तदनन्तर एक समय कुमार वसुदेवके हित में उद्यत समुद्रविजय आदि सभी भाई राजा रुधिरके घर श्रीमण्डपमें बैठे थे कि एक दिव्य विद्याधरी आकाशसे उतरकर वहाँ आयी और १. रुद्रं ग म । २. चन्द्रं म । ३ महीन्द्रोच्चै म । ४. विकसितकमलनयना ।
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