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हरिवंशपुराणे जिह्वाख्ये द्वादशैवोक्ता दण्डा हस्तास्त्रयस्तथा । अङ्गलानि च सत्रीणि त्रयश्चैकादशांशकाः ॥३१२॥ दण्डा हस्तोऽङ्गलान्येषु जिबिकाख्ये त्रयोदश । एकपञ्चोक्तभागैश्च त्रयोविंशतिरिष्यते ॥३३॥ लोले चतुर्दशेवासौ दण्डास्त्वेकोनविंशतिः । अङ्गलानि विनिर्दिष्टा सप्तकादशभागकैः ॥३१४।। वयो हस्ता धनूष्येष लोलुपे च चतुर्दश । नवैकादशभागश्च तथा पञ्चदशाङ्गली ॥३१५॥ दण्डाः पञ्चदशैवासौ हस्तौ च स्तनलोलुपे । द्वादशाङ्गलमानं च द्वितीयायां च इष्यते ॥३१६॥ तप्ते सप्तदशोत्लेधो दण्डा हस्तो दशाङ्गली । द्वित्रिभागसमेतोऽसौ नारकाणां समीरितः ।।३१७।। एकोनविंशतिर्दण्डास्तपितेऽसौ जवाङ्गली । त्रिभागश्च समादिष्टः स्पष्टज्ञानेष्टदृष्टिभिः ॥३१८।। तपने विंशतिदंण्डास्त्रयो हस्तास्तथैव सः । अङ्गलानि समुदिष्टः शिष्टैरष्टौ प्रकृष्टतः ॥३१९॥ द्वाविंशतिधन षि द्वौ हस्तावुनः षडङलैः । उत्सेधस्तापने त्र्यंशी नारकासमुद्भवः ॥३२॥ चतुर्विंशतिचापानि हस्तः पञ्चाङ्गलानि च । त्रिमागश्च निदाघेऽसावुत्सेधो बोधितो बुधैः ॥३२१॥ षडविंशतिधनूप्येष प्रोक्तः प्रोज्ज्वलितेन्द्रके। अङ्गलानि च चत्वारि ज्ञानप्रज्वलितात्मभिः ॥३२॥ सप्तविंशतिचापानि त्यो हस्ता स वर्णितः । आगमोज्ज्वलितप्रास्थ्यंशावुज्ज्वलितेऽङ्गली ॥३२३॥ एकात्रिंशदुत्सेधः कोदण्डा हस्तयोइयम् । अङगुलं च त्रिभागश्व बोध्यः संज्वलिते बुधैः ॥३२४॥
एकत्रिंशतु कोदण्डा हस्तश्चोत्सेध इष्यते । संप्रज्वलितसंज्ञे च तृतीये यः स भाष्यते ॥३२५॥ ग्यारह भागोंमें एक भाग प्रमाण कही गयी है ॥३११॥
जिह्वा नामक सातवें प्रस्तारमें बारह धनुष, तीन हाथ, तीन अंगुल और एक अंगुलके ग्यारह भागोंमें तीन भाग प्रमाण ऊंचाई है ॥३१२।। जिह्वक नामक आठवें प्रस्तारमें तेरह धनुष, एक हाथ, तेईस अंगुल और एक अंगुलके पांच भागोंमें एक भाग प्रमाण ऊंचाई इष्ट है ॥३१३॥ लोल नामक नौवें प्रस्तारमें चौदह धनुष, उन्नीस अंगुल और एक अंगुलके ग्यारह भागोंमें सात भाग प्रमाण ऊँचाई है ।।३१४|| लोलुप नामक दसवें प्रस्तारमें चौदह धनुष तीन हाथ पन्द्रह अंगुल और एक अंगुलके ग्यारह भागोंमें नौ भाग प्रमाण ऊंचाई है ॥३१५॥ और स्तनलोलुप नामक ग्यारहवें प्रस्तारमें पन्द्रह धनुष, दो हाथ और बारह अंगुल ऊंचाई इष्ट है। इस प्रकार दूसरी पृथिवीमें नारकियोंके शरीरकी ऊंचाईका वर्णन किया ।।३१६।।
तीसरी पथिवीके तप्त नामक प्रथम प्रस्तारमें नारकियोंके शरीरको ऊँचाई सत्रह धनुष, एक हाथ, दश अंगुल और एक अंगुलके तीन भागोंमें दो भाग प्रमाण कही गयी है ॥३१७॥ स्पष्ट ज्ञान रूपी इष्ट दृष्टिको धारण करनेवाले तपित नामक दूसरे प्रस्तारमें नारकियोंकी ऊँचाई उन्नीस धनुष नौ अंगुल और एक अंगुलके तीन भागोंमें एक भाग प्रमाण बतलायो है ॥३१८।। शिष्टजनोंने तपन नामक तीसरे प्रस्तारमें नारकियोंके शरीरका उत्सेध बोस धनुष तीन हाथ और आठ अंगुल प्रमाण बतलाया है ।।३१९।। तापन नामक चौथे प्रस्तारमें नारकियोंके शरीरकी ऊंचाई बाईस धनुष दो हाथ छ: अंगल और एक अंगलके तीन भागोंमें दो भाग प्रमाण कही गयी है॥ २०॥ निदाघ नामक पांचवें प्रस्तारमें चौबीस धनुष, एक हाथ, पांच अंगल और एक अंगलके तीन भागोंमें एक भाग प्रमाण ऊंचाई विद्वानोंने बतलायी है ॥३२१।। जिनकी आत्मा ज्ञानके द्वारा देदीप्यमान है ऐसे आचार्योंने प्रोज्ज्वलिन नामक छठवें प्रस्तारमें नारकियोंकी ऊँचाई छब्बीस धनुष और चार अंगुल प्रमाण बतलायी है ।।३२२।। आगमज्ञानसे सुशोभित विद्वज्जनोंने उज्ज्वलित नामक सातवें प्रस्तारमें नारकियोंका शरीर सत्ताईस धनुष, तीन हाथ, दो अंगुल और एक अंगुल के तीन भागोंमें दो भाग प्रमाण ऊँचा कहा है ॥३२३।। विद्वानोंको संज्वलित नामक आठवें प्रस्तारमें नारकियोंकी ऊँचाई उन्तीस धनुष, दो हाथ एक अंगुलके तीन भागोंमें एक भाग प्रमाण जानना चाहिए ॥३२४॥ और संप्रज्वलित नामक नौवें प्रस्तारमें ऊँचाईका प्रमाण एकतीस धनुष तथा
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