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हरिवंशपुराणे
चलच्चामरसंघातहंसमालांशुकोज्ज्वला । आदर्शमण्डलाखण्डदीप्ति दिङ्मुखमण्डला ॥७९॥ बुबुदापाण्डुगण्डान्ता मूर्धचन्द्रालिकाकृतिः । संध्याभ्रखण्डसंरक्तविस्फुरद्विद्रुमाधरा ॥८०॥ पतज्जललवस्वच्छमुक्तादशनशोभिता । शुभकेतुपताकालीलीला भुजलतोज्ज्वला ॥ ८१ ॥ दिङ्नागनासिका जङ्घारम्भास्तम्भोरुशोभिनी | चित्रवीतारकालोका जगतीजघनस्थला ||८२॥
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( मण्डलाकृतिशुभ्राभ्र-धवलातपवारणा ) मण्डलाकार सफेद मेघोंसे उज्ज्वल तथा सन्तापको दूर करनेवाला होता है और उत्तम स्त्री मण्डलाकार सफेद मेघावलीके समान उज्ज्वल और सन्तापको हरनेवाली होती है; उसी प्रकार वह पालकी भी मण्डलाकार सफेद मेघके समान उज्ज्वल छत्रसे युक्त थी ||७८ || जिस प्रकार आकाश ( चलच्चामरसंघात - हंसमालांशुकोज्ज्वला ) चंचल चमरोंके समूह के समान उड़ती हुई हंसमालासे देदीप्यमान तथा उज्ज्वल होता है, और उत्तम स्त्री चंचल चमरोंके समूह तथा हंसपंक्तिके समान सफेद वस्त्रोंसे युक्त होती है, उसी प्रकार वह पालकी भी हंसमाला के समान चंचल चमर और वस्त्रोंसे उज्ज्वल थी । जिस प्रकार आकाश ( आदर्शमण्डलाखण्डदीप्तिदिङ्मुखमण्डला ) दर्पण तलके समान अखण्ड दीप्ति से युक्त दिशाओंसे सहित होता है, और उत्तम स्त्रीका मुखमण्डल दर्पण तलकी अखण्ड दीप्तिसे देदीप्यमान दिशाके समान भास्वर होता है उसी प्रकार वह पालकी भी दर्पणों के समूहसे समस्त दिशाओंको अखंण्ड प्रतिभासित करनेवाली थी ||७९ || जिस प्रकार आकाश ( बुदबुदापाण्डुगण्डान्ता ) जलके बबूलोंके समान सफेद प्रदेशों से युक्त होता है, और उत्तम स्त्रीके कपोल चन्दनकी बिन्दुओंसे सफेद होते हैं उसी प्रकार उस पालकीके छज्जोंका चौगिर्द प्रदेश भी बुदबुदाकार मणिमय गोलकोंसे सफेद था । जिस प्रकार आकाश ( मूर्धचन्द्रालिकाकृति : ) ऊपर विद्यमान चन्द्रमासे युक्त होता है और उत्तम स्त्री मस्तक तथा चन्द्राकार ललाटसे युक्त होती है उसी प्रकार वह पालकी भी ऊपर तनी हुई चाँदनी से सहित थी। जिस प्रकार आकाश ( संध्याभ्रखण्ड संरक्त-विस्फुरद्विद्रुमाधरा ) लाल-लाल चमकते हुए मूंगोंके समान सन्ध्याके लाल-लाल मेघखण्डोंको धारण करता है और उत्तम स्त्रीका अधरोष्ठ सन्ध्याकालीन मेघखण्ड तथा चमकते हुए लाल मूँगेके समान होता है, उसी प्रकार वह पालकी भी सन्ध्याकालीन मेघखण्ड के समान लाल चमकदार मूँगाको धारण कर रही थी ||८०|| जिस प्रकार आकाश ( पतज्जललवस्वच्छ मुक्ता दशनशोभिता ) स्वच्छ मोतियों तथा दाँतोंके समान उज्ज्वल पड़ती हुई जलकी बूँदोंसे शोभित होता है और उत्तम स्त्री पड़ते हुए जलकण तथा उज्ज्वल मोतियोंके समान दाँतोंसे सुशोभित होती है उसी प्रकार वह पालकी भी पड़ते हुए जलकणोंके समान स्वच्छ मोतियोंके जड़ावसे सुशोभित थी। जिस प्रकार आकाश ( शुभ्र केतुपताकाली लीलाभुजलतोज्ज्वला ) सुन्दर भुजलताओंके समान केतुके शुभ विमानपर फहराती हुई पताकाओं की पंक्तिसे सुशोभित होती है और उत्तम स्त्री शुभध्वजदण्डसे युक्त पताकाओं की पंक्ति के समान चंचल भुजलताओंसे उज्ज्वल होती है, उसी प्रकार वह पालकी भी उत्तम ध्वजापताकाओं और सुन्दर भुजाओंकी तुलना करनेवाली लताओंसे सुशोभित थी ||२१|| जिस प्रकार आकाश ( दिग्नागनासिकाजङ्घारम्भास्तम्भोरुशालिनी ) दिग्गजों की सूँड़ों और केलाके स्तम्भोंके समान सुशोभित उनकी मोटी-मोटी जंघोंसे अत्यधिक शोभित होता है और उत्तम स्त्री दिग्गजों की सूँड़के समान जंघाओं और केलाके स्तम्भोंके समान सुन्दर ऊरुओंसे सुशोभित होती है उसी प्रकार वह पालकी भी दिग्गजोंको सूँड़ों और स्त्रियोंकी जंघाओंकी समानता करनेवाले के लेके स्तम्भोंसे अत्यधिक सुशोभित थी। जिस प्रकार आकाश (चित्रस्त्रीतारकालोका) चित्रा नक्षत्रके आलोकसे युक्त होता है, और उत्तम स्त्री चित्रा नक्षत्र तथा ताराके समान १. दीप्त म. । २. वासिता म. ।
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