________________
हरिवंश पुराणे
स्थूला धनविमुक्तानां चिपिटाः प्रेष्यकारिणाम् । आढ्याः कपिकरा मर्त्याः क्रूरा व्याघ्रकराः स्मृताः ॥ ८८ ॥ निगूढ गूढ सुश्लिष्टसंधिसंमणिबन्धनैः । भूपः दारिद्र्ययुक्तास्तैः सशब्दैश्च श्लथैस्तथा ॥ ८९ ॥ निम्नैः करतलैः क्लीबाः पितृवित्तविवर्जिताः । धनिनः संभृतैर्निम्नैः प्रोत्तानैस्तु प्रदायकाः ॥ ९० ॥ लाक्षाभैरीश्वरा निस्स्वा विषमैर्विषमाश्च तैः । अगम्यगामिनः पीतैरूक्षै रूपविवर्जिताः ॥९१॥ तुषच्छविनखैः क्लीबाः स्फुटितैर्वित्तवर्जिताः । आताम्रैश्च चमूनाथाः कुनखैः परितर्किणः ॥९२॥ अङ्गुष्ठजैर्यवैराढ्याः पुत्रिणोऽङ्गुष्ठमूलजैः । निम्नाति स्निग्धरेखामिर्धनिनो व्यत्ययेऽन्यथा ॥ ९३ ॥ सुघनाङ्गुलयोऽर्थाढ्या विरलाङ्गुलयोऽन्यथा । तिस्रः करमिता रेखा नृपतेर्मणिबन्धनात् ॥९४॥ प्रदेशिनीं सृता रेखा लक्षणं परमायुषः । छिन्नाभिस्ताभिरूनामिरायुरूनं निरूपितम् ॥ ९५ ॥ असिशक्तिगदा कुन्तचक्रतोमरपूर्विकाः । कथयन्ति चमूनाथं कररेखाः परिस्फुटम् ॥ ९६ ॥ कृशैस्तु चिबुकैदीर्घे निस्स्वा धन्यास्तु मांसलैः । ओष्ठैरस्फुटितात्रक्रर्भूपा बिम्बफलोपमैः ॥९७॥ तीक्ष्णदंष्ट्राः समाः स्निग्धा विशदा दशना घनाः । जिह्वा रक्ता च दीर्घा च श्लक्ष्णा मोगवतां नृणाम् ॥ ९८ ॥ आननं संभृतं सौम्यं समं राज्ञामवक्रकम् । दुर्भगानां बृहद्वक्त्रं शठानां परिमण्डलम् ||१९||
३३८
लम्बी तथा अत्यन्त कोमल होती हैं, भाग्यशाली मनुष्योंकी बलिरहित और बुद्धिमान् मनुष्यों की छोटी-छोटी होती हैं ||८७|| निर्धन मनुष्योंके हाथ स्थूल रहते हैं, सेवकों के हाथ चिपटे होते हैं, वानरोंके समान हाथवाले मनुष्य धनाढ्य होते हैं और व्याघ्रके समान हाथवाले मनुष्य शूर-वीर होते हैं ||८८|| जिनकी कलाइयाँ अत्यन्त गूढ़ एवं सुश्लिष्ट सन्धियोंसे युक्त होती हैं वे राजा होते हैं और जिनकी कलाइयां ढोली तथा शब्दोंसे सहित हैं वे दरिद्रतासे युक्त होते हैं ||८९ || जिनकी हथेलियाँ गहरी - भीतरको दबी हुई हों वे नपुंसक तथा पिताके धनसे रहित होते हैं, जिनकी हथेलियां भरी हुईं तथा गहरी हों वे धनाढ्य होते हैं और जिनकी हथेलियाँ ऊपरको उठी हुई हों वे दानी होते हैं ||१०|| जिनकी हथेलियाँ लाखके समान लाल हों वे धनाढ्य होते हैं, जिनकी विषम होती हैं वे दरिद्र तथा विषस होते हैं, जिनकी पीली हों वे अगम्यगामी होते हैं और जिनकी रूक्ष होती हैं वे सौन्दर्य से रहित कुरूप होते हैं ॥ ९१ ॥ जिनके नख तुषके समान हों वे नपुंसक, जिनके फटे हों वे निर्धन, जिनके कुछ-कुछ लाल हों वे सेनापति और जिनके भद्दे हों वे तर्क-वितर्क करनेवाले होते हैं ||१२|| जिनके अँगूठेपर यवका चिह्न हो वे धनाढ्य होते हैं, जिनके अंगूठेके मूलमें यवका चिह्न हो वे अधिक पुत्रवाले होते हैं, जिनके अंगूठेमें गहरी तथा चिकनी रेखाएँ होती हैं वे धनाढ्य होते हैं और जिनके इससे विपरीत रेखाएँ हैं वे निर्धन होते हैं ॥९३॥ | जिनकी अँगुलियाँ अत्यन्त सघन होती हैं वे धन-सम्पन्न होते हैं और जिनको अंगुलियाँ विषम होती हैं वे निर्धन होते हैं । जिनकी कलाई से लेकर हाथ तक तीन रेखाएँ होती हैं वे राजा होते हैं ||१४|| प्रदेशिनी अँगुली तक लम्बी रेखा दीर्घायुका चिह्न है अर्थात् जिसकी रेखा कनिष्ठासे लेकर प्रदेशिनी तक लम्बी चली जाती है वह दीर्घायु होता है और जिसकी रेखाएँ कटी तथा छोटी होती हैं वह अल्प आयुका धारक होता है || ९५ ॥ तलवार, शक्ति, गदा, भाला, चक्र और तोमर आदि रेखाएँ हाथमें हों तो वे स्पष्ट कहती हैं कि यह व्यक्ति सेनापति होगा || ९६ || जिनकी दाढ़ी पतली और लम्बी होती है वे दरिद्र होते हैं तथा जिनको पुष्ट होती है वे धनी होते हैं । जिनके ओठ बिना फटे, सीधे और बिम्बीफलके समान लाल होते हैं वे राजा होते हैं ||२७|| जिनकी डाढ़े तीक्ष्ण, सम और स्निग्ध होती हैं, दांत सफेद और सघन रहते हैं एवं जीभ लाल, लम्बी और कोमल होती है वे भोगी होते हैं ||१८|| जिनका मुख भरा हुआ, सौम्य, सम और कुटिलता रहित होता है वे राजा होते हैं । जिनका मुख बहुत बड़ा होता है वे अभागे होते हैं और जिनका मुख गोलाकार होता है वे मूर्ख १. संवृत - म., ग. । २. प्रदेशिनी स्मृता म । ३. उष्टैरस्फुटिता वक्त्रैर्भूपा म ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org