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षड्विंशः सर्गः
'शौरमंदनवेगायां मदनप्रतिमोऽभवत् । अनावृष्टिरिति ख्यातस्तनयो नयविबली ॥१॥ सस्त्रीकाः खेचरा याताः सिद्धकूटजिनालयम् । एकदा वन्दितुं सोऽपि शौरिः मदनवेगया ॥२॥ कृत्वा जिनमहं खेटाः प्रवन्ध प्रतिमागृहम् । तस्थुः स्तम्भानुपाश्रित्य बहुवेषा यथायथम् ॥३॥ विद्यद्वेगोऽपि गौरीणां विद्यानां स्तम्भमाश्रितः । कृतपूजास्थितिः श्रीमान् स्वनिकायपरिष्कृतः ॥४॥ पृष्टया वसुदेवेन ततो मदनवेगया। विद्याधरनिकायास्ते यथास्वमिति कीत्तिताः ॥५॥ अस्मदीयं विमो स्तम्भं ये श्रिताः पद्मपाणयः । पद्ममालाधरास्तेऽमी गौरिकाख्या नभश्चराः ॥६॥ रक्तमालाधराश्चैते रक्तकम्बलवाससः। गान्धारस्तम्भमाश्रित्य गान्धाराः खेचराः स्थिताः ॥७॥ नानावर्णमयस्वर्णपीतकौशेयवाससः । मानवस्तम्भमेत्यामी स्थिता मानवपुत्रकाः ॥८॥ किंचिदारक्तवस्त्रा ये लसन्मणिविभूषणाः । मानस्तम्ममिता ह्येते खेचरा मनुपुत्रकाः ॥९॥ विचित्रौषधिहस्तास्तु विचित्राभरणस्रजः । ओषधिस्तम्भमायाता मूलवीर्या नभश्चराः ॥१०॥ सर्वत्र्तुकुसुमामोदकाञ्चनामरणस्त्रजः । अन्तभूमिचरा ह्येते ये स्तम्भे भूमिमण्डके ।।११॥ विचित्रकुण्डलाटोपा ये नामाङ्गदभूषणाः । शङ्कुस्तम्माश्रितास्तेऽमी शङ्ककाः खचराः प्रभो ॥१२॥ आबद्धमुकुटापीडविलसन्मणिकुण्डलाः । ये तेऽमी कौशिकाः खेटाः कौशिकस्तम्ममाश्रिताः ॥१३॥
अथानन्तर कुमार वसुदेवसे मदनवेगामें कामदेवके समान सुन्दर अनावृष्टि नामका नीतिज्ञ और बलवान् पुत्र उत्पन्न हुआ ॥१॥ एक दिन अपनी-अपनी स्त्रियोंके साथ विद्याधर सिद्धकूट जिनालयको वन्दना करनेके लिए गये सो कुमार वसुदेव भी मदनवेगाके साथ वहां पहुंचे ॥२।। नाना प्रकारके वेषोंको धारण करनेवाले विद्याधर जिनेन्द्र भगवानकी पूजा कर तथा प्रतिमा-गहोंकी वन्दना कर यथायोग्य स्तम्भोंका आश्रय ले बैठ गये ॥३।। शोभासम्पन्न विद्युद्वेग भी भगवान्की पूजा कर अपने निकायके लोगोंके साथ गौरो विद्याओंके स्तम्भका सहारा ले बैठ गया ।।४।। तदनन्तर वसुदेवने मदनवेगासे विद्याधर निकायोंका परिचय पूछा सो वह यथायोग्य इस प्रकार उनका वर्णन करने लगी ॥५॥
उसने कहा कि हे नाथ ! जो ये हाथमें कमल लिये तथा कमलोंकी माला धारण किये हमारे खम्भाके आश्रय बैठे हैं वे गौरिक नामके विद्याधर हैं ॥६॥ ये लाल मालाएं धारण किये तथा लाल कम्बलके वस्त्रोंको पहने हुए गान्धार खम्भाका आश्रय ले गान्धार जातिके विद्याधर बैठे हैं ||७|| ये जो नाना वर्णों से युक्त एवं सुवर्णके समान पीले वस्त्रोंको धारण कर मानव स्तम्भके सहारे बैठे हैं वे मानवपुत्रक विद्याधर हैं ॥८॥ जो कुछ-कुछ लाल वस्त्रोंसे युक्त एवं मणियोंके देदीप्यमान आभूषणोंसे सुसज्जित हो मानस्तम्भके सहारे बैठे हैं वे मनुपुत्रक विद्याधर हैं ॥९॥ नाना प्रकारकी ओषधियां जिनके हाथमें हैं तथा जो नाना प्रकारके आभूषण और मालाएं पहनकर ओषधि स्तम्भके सहारे बैठे हैं वे मूलवीर्य विद्याधर हैं ॥१०॥ सब ऋतुओंके फूलोंकी सुगन्धिसे युक्त स्वर्णमय आभरण और मालाओंको धारण कर जो भूमिमण्डक स्तम्भके समीप बैठे हैं वे अन्तर्भूमिचर विद्याधर हैं ॥११॥ हे प्रभो ! जो चित्र-विचित्र कुण्डल पहने तथा सर्पाकार बाजू-बन्दोंसे सुशोभित हो शंकु स्तम्भके समीप बैठे हैं वे शंकुक नामक विद्याधर हैं ॥१२॥ जिनके मुकुटोंपर सेहरा बंधा हुआ है तथा जिनके मणिमय कुण्डल देदीप्यमान हो रहे हैं ऐसे ये कौशिक स्तम्भके आश्रय कौशिक १. शौरिमंदन -म.। २. विद्याधराः।
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