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एकत्रिंशत्तमः सर्गः अथ हय॑तले सुप्तः प्रभावत्या सहान्यदा । सूर्पकेण हृतः शौरिबुबुधे स चिरेण खे ॥१॥ जघान मुष्टिघातेन विद्विषं चामुचत् स खात् । गोदावर्याः पपातायं हृदे देहसुखावहे ॥२॥ तत्र कुण्डपुरे लेभे कन्या पद्मरथस्य सः । माल्यकौशलयोगेन कलाकौशलशालिनीम् ॥३॥ ततोऽपि नीलकण्ठेन नीत्वा मुक्तोऽपतद् यदुः । चम्पासरसि संप्राप्तस्तस्यां सोऽमात्यदेहजाम् ॥४॥ जलक्रीडारतस्तत्र स हृतः सूर्पकारिणा । विमुक्तश्च पपातासौ भागीरथ्यां मनोरथी ॥५॥ पर्यटन्नटवीं तत्र म्लेच्छराजेन वीक्षितः । परिणीय सुतां तस्य जराख्यां तत्र चावसत् ॥६॥ जरत्कुमारमुत्पाद्य तस्यामुन्नतविक्रमः । अवन्तिसुन्दरी प्राप शूरसेन च शंसिताम् ॥७॥ पुरुषान्वेषिणीमन्या कन्या जीवद्यशःश्रुतिम् । उपयम्यापराश्चासावरिष्टपुरमाययौ ॥८॥ राजा तत्र तदा धीरो रुधिरो युधि रोधनः । तस्य मित्रा महादेवी देवीव द्युतिसंपदा ॥९॥ ज्येष्ठो हिरण्यनाभाख्यस्तनयो नैयवित्तयोः । रणशौण्डो महासत्त्वः शस्त्रशास्त्रे कृतग्रहः ॥१०॥ . कलापारमिता रूपयौवनोदयधारिणी । तनया रोहिणीनाम्ना रोहिणीव यशस्विनी ॥११॥
___ अथानन्तर-किसी समय कुमार वसुदेव प्रभावतीके साथ महलमें सो रहे थे कि उसी समय उनका वैरी सूर्पक उन्हें हरकर आकाशमें ले गया । कुछ देर बाद जब उनकी नींद खुली तो मुक्कोंके प्रहारसे उन्होंने शत्रुको पीटना शुरू किया। मुक्कोंकी मारसे घबड़ाकर सूपंकने उन्हें आकाशसे छोड़ दिया जिससे वे शरीरको सुख पहुँचानेवाले गोदावरीके कुण्डमें गिरे ।।१-२॥ वहांसे निकलकर वे कुण्डपुर ग्राममें पहुँचे। वहाँका राजा पद्मरथ था। उसकी कला-कौशलसे सुशोभित एक सुन्दरी कन्या थी। उस कन्याको प्रतिज्ञा थी कि जो मुझे माला गूंथने में पराजित करेगा उसीके साथ मैं विवाह करूंगी। कुमार वसुदेवने उसे माला गूंथनेका कौशल दिखाकर प्राप्त किया-उसके साथ विवाह किया ॥३।। एक दिन कुमारका शत्रु नीलकण्ठ वहांसे भी उन्हें हरकर ले गया तथा आकाशमें ले जाकर उसने छोड़ दिया। भाग्यवश कुमार चम्पानगरीके तालाबमें गिरे । वहांसे निकलकर उन्होंने चम्पापुरीमें प्रवेश किया तथा वहाँके मन्त्रीको पुत्रीके साथ विवाह किया ॥४॥ एक दिन कुमार चम्पानगरीमें जलक्रीड़ा कर रहे थे कि वैरी सूर्पक फिर हर ले गया। अबकी बार उससे छटकर अनेक मनोरथोंको धारण करनेवाले कमार : नदीमें गिरे ॥५।। वहाँसे निकलकर वे अटवीमें घूमने लगे। वहां म्लेच्छोंके. राजाने उन्हें देखा जिससे वे म्लेच्छराजकी जरा नामक कन्याको विवाहकर वहीं रहने लगे ॥६॥ उन्नत पराक्रमको धारण करनेवाले वसुदेवने उस कन्यामें जरत्कुमार नामका पुत्र उत्पन्न किया। उसी समय कुमारने अवन्तिसुन्दरी और शूरसेना नामकी उत्तम कन्याको भी प्राप्त किया ॥७॥ तदनन्तर पुरुषको खोजनेवाली जीवद्यशा नामकी कन्याको एवं अनेक कन्याओंको विवाह कर कुमार वसुदेव अरिष्टपर नामक नगर आये ।।८॥ उस समय वहाँ युद्ध में शत्रुओंको रोकनेवाला धीर-वीर रुधिर नामका राजा था। उसकी मित्रा नामकी महारानी थी जो कान्तिरूपी सम्पदासे देवीके समान जान पड़ती थी ॥५॥ उन दोनोंके नीतिका वेत्ता, रण-निपुण, महापराक्रमी एवं शस्त्र और शास्त्रका अभ्यास करनेवाला हिरण्य नामका ज्येष्ठ पुत्र था ॥१०॥ और कलाओंकी पारगामिनी, रूप तथा यौवनके अभ्युदयको धारण करनेवाली, रोहिणी नामकी पुत्री थी। वह १. अपराः अन्याः कन्याः विवाह्य असो अरिष्टपुरम् आययो । २. नीतिज्ञः ।
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