________________
त्रयोविंशः सर्गः
३३७ 'शास्त्रार्थी स्त्रीप्रियो नित्यमाचार्यो बह्वपत्यकः । एकद्वित्रिचतुर्मिः स्याद् बलिमिः क्षितिपोऽवलिः॥५॥ ज्ञयाः स्वदारसंतष्टा ऋमिलिमिनराः। अगम्यगामिनः पापा विषमलिमिः पुनः ॥७॥ "मांसलैम दुमिः पादक्षिणावर्तरोमभिः । भूपास्तद्विपरीतैस्तु परप्रेष्यकरा नराः ॥७॥ सुमगाः स्युरनुख़्तैश्चूचुकैः पीचरैर्नराः । दीर्घेश्च विषमैमा जायन्ते धनवर्जिताः ॥७॥ मांसल हृदयं राज्ञां पृथूनतमवेपनम् । विपरीतमपुण्यानां खररोममिराचितम् ॥७९॥ वक्षोभिश्च समैरान्याः पीनैः शूरास्त्वकिंचनाः। तनुभिर्विषमैनिःस्वास्तथा शस्त्रान्तजीविताः ॥८॥ पीनेन जानुना ह्याढ्यो भोगवानुन्नतेन तु । निःस्वो निम्नास्थिनद्धेन विषमो विषमेण ना ॥८॥ नित्यमस्वेदनाः कक्षाः पीनोलतसुगन्धयः । निश्चेतव्या धनेशानां संकुलाः समरोमभिः ॥४२॥ निःस्वस्य चिपिटा प्रीवा संशुष्का च सिराचिता । कम्बुग्रीवो नृपः शूरो महिषग्रीवमानवः ॥४३॥ अरोमशममग्नं च पृष्टं शुमकरं मतम् । रोमशं चातिभुग्नं च न शुभावहमिष्यते ॥४॥ अल्पावमांसलौ भुग्नी रोमशावधनस्य तु । सुश्लिष्टौ मांसलावंसौ शौर्यवित्तवतां नृणाम् ॥४५॥ पीनौ समौ प्रलम्बी च करौ करिफरोपमौ । नृपाणामधनानां तु नृणां हस्वौ च रोमशौ॥८६॥ दीर्घा दीर्घायुषां पुंसां करशाखाः सुकोमलाः । सुमगानामवलिताः सूक्ष्मा मेधाविना पुनः ॥८॥
गोमान् और दीर्घजीवी करती है ।।७४।। जिसके एक वलि होती है वह शास्त्रार्थी होता है, जिसके दो वलि होती हैं वह निरन्तर स्त्रीका प्रेमी होता है, जिसके तीन वलि होती हैं वह आचार्य होता है और जिसके चार वलि होती हैं वह बहुत सन्तानवाला होता है और जिसके एक भी वलि नहीं होती वह राजा होता है ।।७५।। जिन मनुष्योंकी वलि सीधी होती हैं वे स्वदार-सन्तोषी होते हैं और जिनको वलि विषम होती हैं वे अगम्यगामी एवं पापी होते हैं ॥७६।। जिन मनुष्योंके पसवाड़े पुष्ट, कोमल एवं दाहिनी ओर आवर्ताकार रोमोंसे सहित होते हैं वे राजा होते हैं और जिनके इनसे विपरीत होते हैं वे दूसरोंके आज्ञाकारी किंकर होते हैं ।।७७|| जिन मनुष्योंके स्तनोंके अग्रभाग छोटे
और स्थूल हों वे उत्तम भाग्यशाली होते हैं और जिनके दीर्घ अथवा विषम होते हैं वे निर्धन होते हैं ।।७८॥ राजाओंका हृदय पुष्ट, चौड़ा, ऊँचा और कम्पनसे रहित होता है तथा पुण्यहीन मनुष्योंका हृदय इससे विपरीत तीक्ष्ण रोगोंसे व्याप्त होता है ।।७९|| जिनके वक्षःस्थल सम हों वे सम्पत्तिशाली होते हैं, जिनके स्थूल हों वे शूर-वीर किन्तु निर्धन होते हैं और जिनके कृश तथा विषम हों वे निर्धन एवं शस्त्रसे मरनेवाले होते हैं ।।८०।। जो मनुष्य स्थूल घुटनेसे सहित होता है वह धनाढ्य होता है, जिसका घुटना ऊँचा उठा होता है वह भोगी होता है, जिसका गहरा तथा हड्डियोंसे बद्ध रहता है वह निर्धन होता है और जिसका विषम होता है वह विषम ही रहता है ।।८।। धनाढय मनुष्योंको बगले निरन्तर पसीनासे रहित, पुष्ट, ऊंची, सुगन्धित और समान रोमोंसे व्याप्त रहती हैं ।।८।। निर्धन मनुष्यको गरदन चपटी, सूखी एवं नसोंसे व्याप्त रहती है। इसके विपरीत शंखके समान गरदनवाला मनुष्य राजा होता है और भैसेके समान गरदनवाला मनुष्य शूरवीर होता है ।।८३।। जो पोठ रोमरहित एवं सीधी हो वह शुभ मानी गयी है तथा जो रोमोंसे व्याप्त और अत्यन्त झुको हुई हो वह अच्छी नही मानी गयी है ।।८४॥ निर्धन मनुष्यके कन्धे छोटे, अपुष्ट, नीचेकी ओर झके हए और रोमोंसे व्याप्त होते हैं तथा पराक्रमी और धनवान मनुष्योंके कन्धे सटे हुए एवं पुष्ट होते हैं ।।८५।। राजाओंके हाथ स्थूल, सम, लम्बे और हाथीको सूंड़के समान होते हैं परन्तु निर्धन मनुष्योंके हाथ छोटे और रोमोंसे युक्त रहते हैं ।।८।। दीर्घायु मनुष्योंकी अंगुलियां १. शास्त्रार्थस्त्रीप्रियो म.। २. बलिरहितः । ३. अन्यदाररता नीचा वजिता विषमनराः ख.। ४. अस्य श्लोकस्य स्थाने 'ख' पुस्तके इत्थं पाठः 'स्थूलश्च मृदुभिः पादक्षिणावर्तरोमभिः । राजा भवति मोऽसावन्यथा किंकरो भवेत ॥ ७७॥ ५. -जीविनः म.। ६. चातिभग्नं म. । ७. भग्नौ म.।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org