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विंशतितमः सर्गः
अथापृच्छत्पृथुश्रीकः श्रेणिकोऽत्र गणेश्वरम् । कथं विष्णुकुमारेण विभो वलिरबध्यत ॥१॥ अभणीद्गणमुख्यश्च शृणु श्रेणिक ! वैष्णवीम् । दृष्टिशुद्धिकरीं श्रब्यां सस्कथा कथयामि ते ॥२॥ उज्जयिन्यामभूद्राजा श्रीधर्मा नाम विश्रुतः । श्रीमती श्रीमती तस्य महादेवी महागुणा ॥३॥ चत्वारो मन्त्रिणश्चास्य मन्त्रमागविदो बलिः । बृहस्पतिश्च नमुचिः प्रह्लाद इति चाञ्चितः ॥४॥ अन्यदा तपारस्थः ससप्तशतसंयतः । आगस्याकम्पनस्तस्थौ बाह्योद्याने महामुनिः ॥५॥ वन्दनार्थ नृपो लोकं निर्यान्तमिव सागरम् । प्रासादस्थस्तदालोक्य मन्त्रिणोऽच्छदित्यसौ ॥६॥ अकालयात्रया लोकः क यातीति ततो बलिः । राजनज्ञानिनो द्रष्टुं श्रमणानित्यवेदयत् ॥७॥ ततो जिगमिषू राजा निषिद्धोऽपि बलाद् ययौ । मन्त्रिणोऽपि सहागस्य दृष्ट्वा किंचिदवीवदन् ॥८॥ गुर्वादेशाच्च सङ्घोऽपि स्थितो मौनमुपाश्रितः । यान्तः प्रतिनिवृत्यामी संमुखं वीक्ष्य योगिनम् ॥९॥ 'अनूनुदन्नृपाध्यक्षं मिथ्यामार्गविमोहिताः । प्रमाणमार्गतस्तान् स जिगाय श्रुतसागरः ॥१०॥ स्थितं प्रतिमया रात्री जिघांसूस्तांश्च तदिवा । देवतास्तम्भितान् दृष्ट्वा राजा देशादपाकरोत् ॥११॥ तदा नागपुरे चक्री महापद्म इतीरितः । अष्टौ च कन्यकास्तस्य ताश्च विद्याधरैहताः ॥१२॥
अथानन्तर विशाल लक्ष्मीके धारक राजा श्रेणिकने गौतम गणधरसे पूछा कि हे विभो ! विष्णु कुमार मुनिने बलिको क्यों बांधा था ? ||१|| इसके उत्तरमें गौतम गणपतिने कहा कि हे श्रेणिक ! तू सम्यग्दर्शनको शुद्ध करनेवाली विष्णुकुमार मुनिको मनोहारिणी कथा सुन, मैं तेरे लिए कहता हूँ ॥२॥
किसी समय उज्जयिनी नगरमें श्रीधर्मा नामका प्रसिद्ध राजा रहता था। उसकी श्रीमती नामको पटरानी थी। वह श्रीमती वास्तवमें श्रीमती-उत्तम शोभासे सम्पन्न और महा गुणवती थी ॥३॥ राजा श्रीधर्माके बलि, बृहस्पति, नमुचि और प्रह्लाद ये चार मन्त्री थे। ये सभी मन्त्री मन्त्र मार्गके जानकार थे ॥४॥ किसी समय श्रुतके पारगामो तथा सात सौ मुनियोंसे सहित महामुनि अकम्पन आकर उज्जयिनीके बाह्य उपवनमें विराजमान हुए ॥५॥ उन महामुनिकी वन्दनाके लिए नगरवासी लोग सागरकी तरह उमड़ पड़े। महलपर खड़े हुए राजाने नगरवासियोंको देख मन्त्रियोंसे पूछा कि ये लोग असमयको यात्रा द्वारा कहाँ जा रहे हैं ? तब बलिने उत्तर दिया कि हे राजन् ! ये लोग अज्ञानी दिगम्बर मुनियोंकी वन्दनाके लिए जा रहे हैं ॥६-७॥ तदनन्तर राजा श्रीधर्माने भी वहाँ जानेकी इच्छा प्रकट की। यद्यपि मन्त्रियोंने उसे बहुत रोका तथापि वह जबर्दस्ती चल ही पड़ा। अन्तमें विवश हो मन्त्री भी राजाके साथ गये और मुनियोंके दर्शन कर कुछ विवाद करने लगे ॥८-९|| उस समय गुरुको आज्ञासे सब मुनि संघ मौन लेकर बैठा था इसलिए ये चारों मन्त्री विवश होकर लौट आये। लौटकर आते समय उन्होंने सामने एक मुनिको देखकर राजाके समक्ष छेड़ा। सब मन्त्री मिथ्यामार्गमें मोहित तो थे ही इसलिए श्रुतसागर नामक उक्त मुनिराजने उन्हें जीत लिया ॥१०॥ उसी दिन रात्रिके समय उक्त मुनिराज प्रतिमा योगसे विराजमान थे कि सब मन्त्री उन्हें मारनेके लिए गये परन्तु देवने उन्हें कोलित कर दिया। यह देख राजाने उन्हें अपने देशसे निकाल दिया ॥११॥
___ उस समय हस्तिनापुरमें महापद्म नामक चक्रवर्ती रहता था। उसकी आठ कन्याएं थीं १. उज्जयिन्यां भवेद्राजा म. । २. श्रीधर्मो म. । ३. निर्यातमिव म. । ४. अनूनुदं म. ।
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