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सप्तदशः सर्गः
तद् यत्तव स्थितं चित्ते समस्ते वसुधातले । स्वाकरेषु समुत्पन्नं तद्रत्नं क्रियतां करे ॥ १३ ॥ एवं दक्षः प्रजावाक्यमाकर्ण्य विपरीतधीः । प्रजानुमतिकारित्वं प्रकाश्य विससर्ज ताः ॥ १४ ॥ ततः स दुहितुस्तस्य स्वयमेवाग्रहीत् करम् । कामग्रहगृहीतस्य का मर्यादा क्रमोऽपि कः ॥१५॥ इला देवी ततो रुष्टा पत्युः पुत्रमभेदयत् । तावद्भार्यादयो यावन्मर्यादासंस्थितः प्रभुः ॥ १६ ॥ इला चैलेयमावृत्य महासामन्तसंवृता । प्रत्यवस्थानमकरोदुर्ग देशमुपाश्रिता ॥ १७ ॥ त्रिविष्टपपुराकारं संनिविष्टं पुरं तथा । इलायां वर्धमानायामिला वर्धनसंज्ञया ॥ १८ ॥ ऐलेयः स्थापितो राजा रेजे तत्र प्रजावृतः । वीर्यधैर्यनयाधारो हरिवंश विशेषकः ॥ १९ ॥ पार्थिवेन सता तेन तामर्लि प्तिप्रसिद्धिकाम् । निवेशितं पुरं कान्तमङ्गदेशनिवासिना ॥२०॥ जिगीपता परान् देशान् नर्मदातटमीयुषा । मह्यां माहिष्मती ख्याता नगरी विनिवेशिता ॥२१॥ तत्र स्थितश्चिरं राज्यं कृत्वा प्रणतपार्थिवम् । पुत्रं कुणिमनामानं संस्थाप्य तपसे ययौ ॥ २२॥ कुणिमश्च विदर्भेषु विजिगीषुर्द्विषंतपः । कुण्डिनाख्यं पुरं चक्रे वरदायास्तटे वरे ॥ २३ ॥ कुणिमः क्षणिकं मत्वा जीवितं निजवैभवम् । 'पुलोमाख्ये सुते न्यस्य तपोवनमयात् स्वयम् ॥२४॥ पुलोमपुरमेतेन विनिवेशितमीशिना । श्रियं न्यस्य तपस्यागात् पौलोमचरमाख्ययोः ॥२५॥
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नदियों और उत्तम रत्नोंकी खान है उसी प्रकार राजा भी इस लोक में अनर्घ्य वस्तुओंकी खान है || १२ || इसलिए समस्त पृथिवीतल और उत्तमोत्तम खानोंमें उत्पन्न हुआ जो भी रत्न आपके चित्तमें है - जिसे आप प्राप्त करना चाहते हैं उसे हाथमें कीजिए || १३ || इस प्रकार विपरीत बुद्धधारक राजा दक्षने प्रजाके वचन सुन प्रकट किया कि जैसी आप लोगोंकी अनुमति है वैसा ही कार्य करूंगा - यह कहकर उसने प्रजाके लोगोंको विदा किया || १४ ||
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तदनन्तर उसने पुत्री मनोहरीका कर ग्रहण स्वयं ही कर लिया सो ठीक ही है क्योंकि कामरूपी पिशाचसे गृहीत मनुष्यकी मर्यादा क्या है ? और क्रम क्या है ? भावार्थ - कामी मनुष्य सब मर्यादाओं और क्रमोंको छोड़ देता है || १५ || राजा दक्षकी रानी इला देवी, पतिके इस कुकृत्य से बहुत ही रुष्ट हुई इसलिए उसने पुत्रको पितासे फोड़ लिया - अलग कर लिया सो ठीक ही है क्योंकि स्त्री आदि तभी तक है जब तक स्वामी मर्यादा में रहता है-मर्यादाका पालन करता है || १६|| बड़े-बड़े सामन्तोंसे घिरी इला देवी अपने ऐलेय पुत्रको लेकर दुर्गम स्थानमें चली गयी और वहीं उसने निवास करनेका निश्चय किया ||१७|| उसने स्वर्गपुरी के समान एक नगर बसाया जो बढ़ती हुई पृथिवीपर स्थित होनेके कारण इलावर्धन नामसे प्रसिद्ध था || १८ || ऐलेयको उसने उसका राजा बनाया सो प्रजासे सहित, वीर्य, धैर्य और नीतिका आधार तथा हरिवंश का तिलकस्वरूप राजा ऐलेय वहां अत्यधिक सुशोभित होने लगा ||१९|| राजा होनेपर अंग देशमें निवास करनेवाले ऐलेयने तामलिप्ति नामसे प्रसिद्ध एक सुन्दर नगर बसाया ||२०|| जब ऐलेय नाना देशको जीतने की इच्छा करता हुआ नर्मदा नदीके तटपर आया तो उसने पृथिवीपर प्रसिद्ध माहिष्मती नामकी नगरी बसायी ॥ २१ ॥ उस नगरी में रहकर राजा ऐलेयने चिरकाल तक नम्रीभूत राजाओंसे युक्त राज्य किया । तदनन्तर वह कुणिम नामक पुत्रके लिए राज्य सौंपकर तपके लिए चला गया ||२२|| विजयके अभिलाषी एवं शत्रुओंको सन्ताप देनेवाले कुणिमने विदर्भ देशमें वरदा नदी के किनारे कुण्डिन नामका सुन्दर नगर बसाया ||२३|| कुछ समय बाद कुणिमको जीवन क्षणभंगुर जान पड़ा इसलिए वह अपना वैभव पुलोम नामक पुत्रके लिए सौंपकर स्वयं तपोवनको चला गया ||२४|| राजा पुलोमने भी पुलोमपुर नामका नगर बसाया । अन्तमें वह पौलोम और
१. पतिः । २ मावृत्ता म., ख, ग, ड. । ३. इलया वर्धमानं यदि म
५. सुलोमाख्ये घ. ।
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। ४ -मलिप्तप्रसिद्धकम् घ ।
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