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अष्टादशः सर्गः
अथ योऽसौ वसोः सूनुर्मथुरायां बृहद्ध्वजः। सुबाहुरभवत्तस्मात्तनयो विनयोद्यतः ॥१॥ लक्ष्मी स तत्र निक्षिप्य तपोलक्ष्मीमुपाश्रितः । सुबाहुदीर्घबाहौ च वज्रबाहौ नृपश्च सः ॥२॥ सोऽपि लब्धामिमानेऽपौ भानौ सोऽपि यवौ' सुते । सुभानी नयने सोऽपि भीमनामनि स प्रभुः ॥३॥ एवमाद्यास्तथाऽन्येऽपि शतशोऽथ सहस्रशः । मुनिसुव्रतनाथस्य तीर्थेऽतीयुः क्षितोश्वराः ॥४॥ आयुर्वर्षसहस्राणि यस्य पञ्चदशागमत् । नमेवहति तस्येह पञ्चलक्षाब्दके पथि ॥५॥ उदियाय यदुस्तत्र हरिवंशोदयाचले । यादवप्रभवो व्यापी भूमौ भूपविभाकरः ॥६॥ सुतो नरपतिस्तस्मादुदभूद् भूवधूपतिः । यदुस्तस्मिन् भुवं न्यस्य तपसा त्रिदिवं गतः ॥७॥ शूरश्चापि सुवीरश्च शूरौ वीरौ नरेश्वरी । स तौ नरपती राज्य स्थापयित्वा तपोऽभजत् ॥६॥ शूरः सुवीरमास्थाप्य मथुरायां स्वयं कृती। स चकार कुशग्रंपु परं शौर्यपुरं पुरम् ॥९॥ शूराश्चान्धकवृष्ण्याद्याः शूरादुदभवन् सुताः । वीरा भोजकवृष्ण्याद्याः सुवीरान्मथुरेश्वरात् ॥१०॥ ज्येष्ठ पुत्रे विनिक्षिप्तक्षितिमारो यथायथम् । सिद्धौ शूरसुवीरो तो सुप्रतिप्टेन दीक्षितौ ॥११॥ आपीदन्धकवृष्णेश्च सुभद्रा वनितोत्तमा । पुत्रास्तस्या दशोत्पन्नास्त्रिदशाभा दिवश्च्युताः ॥१६॥ समुद्र विजयोऽक्षोभ्यस्तथा स्तिमितसागरः । हिमवान् विजयश्चान्योऽचलो धारणपूरणौ ॥१३॥
अथानन्तर-राजा वसुका जो बृहद्ध्वज नामका पुत्र मथुरामें रहने लगा था उसके सुबाहु नामका विनयवान् पुत्र हुआ। राजा बृहद्ध्वज सुबाहु के लिए राज्यलक्ष्मी सौंप आप तपरूपी लक्ष्मीको प्राप्त हो गया । यथाक्रमसे सुबाहुके दीर्घबाहु, दोर्घबाहुके वज्रबाहु, वज्रबाहुके लब्धाभिमान, लब्धाभिमानके भानु, भानुके यवु, यवुके सुभानु और सुभानुके भीम पुत्र हुआ। इस प्रकार इन्हें आदि लेकर भगवान् मुनिसुव्रतनाथके तीर्थ में सैकड़ों-हजारों राजा उत्पन्न हए और सब अपने-अपने पुत्रोंपर राज्य-भार सौंपकर तप धारण किया ॥१-४॥ भगवान् मुनिसुव्रतके बाद नमिनाथ हुए। इनकी आयु पन्द्रह हजार वर्षकी थी तथा इनका तीथं पाँच लाख वर्ष तक प्रचलित रहा । इन्हींके तीर्थमें हरिवंशरूपी उदयाचलपर सूर्यके समान यदु नामका राजा हुआ। यही यदु राजा, यादवोंकी उत्पत्तिका कारण था तथा अपने प्रतापसे समस्त पृथ्वीपर फैला हुआ था ।।५-६॥ राजा यदुके नरपति नामका पुत्र हुआ। उसपर पृथिवीका भार सौंप राजा यदु तपकर स्वर्ग गया ।।७।। राजा नरपतिके शूर और सुवीर नामक दो पुत्र हुए सो नरपति उन्हें राज्य-सिंहासनपर बेठाकर तप करने लगा ||८|| अत्यन्त कुशल शरने छोटे भाई सुवीरको मथुराके राज्यपर अधिष्ठित किया और स्वयं कुशद्य देशमें एक उत्तम शौर्यपुर नामका नगर बसाया ॥९॥ शूरसे अन्धकवृष्णिको आदि लेकर अनेक शूरवीर उत्पन्न हुए, और मथुराके स्वामी सुवीरसे भोजकवृष्णिको आदि लेकर अनेक वीर पुत्र उत्पन्न हुए ॥१०॥ यथायोग्य अपने-अपने बड़े पुत्रोंपर पृथिवीका भार सौंपकर कृतकृत्यताको प्राप्त हुए शूर और सुवोर दोनों ही सुप्रतिष्ठ मुनिराजके पास दीक्षित हो गये ।।११।। अन्धकवृष्णिकी सुभद्रा नामक उत्तम स्त्रो थो उससे उनके दश पुत्र हुए जो देवोंके समान कान्तिवाले थे तथा स्वर्गसे च्युत होकर आये थे ।।१२।। उनके नाम इस प्रकार थे-१ समुद्रविजय, २ अक्षोभ्य, ३ स्तिमितसागर, ४ हिमवान् , ५ विजय, ६ अचल, ७ धारण, ८ पूरण,
१. यवुनाम्निपुत्रे । २. भूपतिभास्करः ( क. टि.) । ३. भोजनकवृष्ण्याद्याः म. ।
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