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एकोनविंशः सर्गः कर्मारवी च संपूर्णा तथा गान्धारपञ्चमी । षड्जान्ध्री नन्दयन्ती च गान्धारोदीच्यवा तथा ॥१८२॥ चतस्रः षट्स्वरा ह्येताः शेषाः पञ्चस्वरा दश । नैषादो वार्षमी चैव धैवती षड्जमध्यमा ॥१८३॥ षड्जौदीच्यवती चैव पञ्च षड जाश्रया स्मृताः । गान्धारी रक्तगान्धारी मध्यमा पञ्चमी तथा ॥१८॥ कैशिकी चेति विज्ञेया पञ्चैता मध्यमाश्रयाः । यास्ताः पञ्चस्वरा ज्ञेया याश्चैताः षट्स्वराः स्मृताः।।१८५॥ कदाचित् पाडवीभूनाः कदाचिच्चौडवीकृताः । षड् जग्रामेऽपि संपूर्णा विज्ञेया बहु[षड ज] कैशिकी॥१८६॥ षट्स्वराश्चैव विज्ञे या षडजे ता गानयोगतः। संपूर्णा मध्यमग्रामे ज्ञेया कर्मारवी तथा ॥१८७॥ गान्धारपञ्चमी चैव मध्यमोदीच्यवा तथा । पुनश्च षट्स्वरोपेता गान्धारोदीच्यवा तथा ॥१८॥ आन्ध्री च नन्दयन्ती च मध्यमग्रामसंश्रयाः । एवमेता बुधैज्ञेया द्वैग्रामिक्यो हि जातयः ॥१८॥ 'षट्स्वरे सप्तमस्वंशो नेष्यते षड जमध्यमः । संवादिलोपा गान्धारस्तत्रैव न विशिष्यते ॥१९०॥ गान्धारी रक्तगान्धारी कैशिकीनां च पञ्चमः । षड जायाश्चैव गान्धारी मानसं विद्धि षाडवम् ॥१९॥ षाडवे धैवतो नास्ति षड जोदीच्या वियोगतः । संवादिलोपात्सप्तैताः षट्स्वरेण विवर्जिताः ।। १५२।। आसां तु रक्तगान्धार्याः षड जमध्यमपञ्चमाः । सप्तमश्चैव विज्ञेयो येषु नौडवितं मवेत् ॥१९३॥ द्वौ षडजमध्यमावंशौ गान्धारोऽथ निषादवान् । ऋषभश्चैव पञ्चम्याः कैशिक्याश्चैव धैवतः ॥१९४॥
षड्जा, आन्ध्री, नन्दयन्ती और गान्धारोदीच्यवा ये चार जातियां छह स्वरवाली हैं और शेष दश जातियाँ पाँच स्वरवाली हैं। नैषादी, आर्षभी, धैवती, षड्जमध्यमा और षड्जोदीच्यवती ये पांच जातियाँ षडजग्रामके आश्रित हैं और गान्धारी, रक्तगान्धारी. मध्यमा. पचमी तथा कै ये पाँच मध्यमग्रामके आश्रित हैं । इन जातियों में जो पांच स्वरवाली ( ओडव) और छह स्वरवाली ( षाडव ) जातियाँ कही गयी हैं वे कदाचित् क्रमसे षाडव ( छह स्वरवाली ) और ओडव ( पनि स्वरवाली ) हो जाती हैं । षड्जग्राममें सात स्वरवाली षड्जकैशिकी जाति होती है और गानके योगसे छह स्वरवाली भी होती है। मध्यमग्राममें सात स्वरवाली कर्मारवी, गान्धारपंचमी और मध्यमोदीच्यवा होतो हैं और छह स्वरवाली गान्धारोदीच्यवा, आन्ध्री एवं नन्दयन्ती जातियां होती हैं। इस तरह विद्वानोंके द्वारा ये दोनों ग्रामोंकी जातियाँ जानने योग्य हैं ॥१७९-१८९।। जहाँ छह स्वर होते हैं वहां षड्जमध्यम स्वर उसका सप्तांश नहीं होता और संवादीका लोप हो जानेसे वहाँ गान्धारस्वर विशेषताको प्राप्त नहीं होता ||१९०॥ गान्धारी. रक्तगान्धारी. कै और षड्जामें पंच स्वर नहीं होता तथा षाडवको गान्धारीका हृदय जानना चाहिए ।।१९१।। षाडवमें धैवत स्वर नहीं रहता क्योंकि वहां षड्जोदीच्यवा जातिका वियोग हो जाता है । एवं ये सात जातियां संवादोका अभाव होनेसे छह स्वरोंसे वजित रहती हैं ॥१९२॥ इनमें-से रक्तगान्धारी जातिमें षड्ज, मध्यम और पंचमस्वर सप्तमस्वर रूप हो जाते हैं तथा इनमें औडवित नहीं रहता ।।१९३।। षड्ज, मध्यम, गान्धार, निषाद और ऋषभ ये पांच अंश पंचमी जातिमें रहते हैं और कैशिकीमें धैवतके साथ छह रहते हैं। ये बारहों जातियाँ पंचस्वरमें सदा वर्जनीय मानी गयी हैं। किन्तु इनमें जो औडवितसे रहित हैं उनका स्वरके आश्रय निरन्तर प्रयोग करना १. निषादवृषभी म. । २. षोडशीभूता कदाचित् षाडवोकृताः म.। 'कदाचित् षाडवीभूता कदाचिच्वौडवीकृता' ना. शा. अ. २८। ३. षड्जग्रामे तु विज्ञेया सम्पूर्ण षड्जकैशिका ॥६१॥ ना. शा. अ. २८ । ४. ग्रामे च. म.। ५. षड्जग्रामे तु विज्ञ या षाडव्येका षट्स्वराश्रया ॥५९॥ ना. शा. अ. २८ । ६. सम्पूर्णा मध्यमग्रामे ज्ञ या कारवी तथा ॥६॥ मध्यमोदीच्यवा चैव तथा गान्धारपञ्चमी । ना. शा. न. २८ । ७. एवमेता बुधै या द्वैग्रामिक्यश्च जातयः ॥६२।। ना. शा. अ. २८ । ८. षट्स्वयें सप्तमांशा तु नेष्यते षड्जमध्यमा। संवादिलोपाद् गान्धारस्तत्रैव न भविष्यति ॥६३।। ना. शा. अ. २८ ।
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