________________
२९२
हरिवंशपुराणे एवं तु द्वादशवेह वाः पञ्च स्वरे सदा । यास्तु नौडविता नित्यं कर्तव्या हि स्वराश्रयाः ॥१९५॥ सर्वस्वराणां नाशस्तु विहितस्त्वथ जातिषु । न मध्यमस्य नाशस्तु कर्तव्यो हि कदाचन ॥१९६॥ सर्वस्वराणां प्रवरो झनाशान्मध्यमः स्मृतः । गान्धर्वकल्पे विहिते समस्तेष्वपि मध्यमः ॥१९७॥ जातीनां लक्षणं तारो मन्द्रो न्यासादिरेव च । अल्पत्वं च बहुत्वं च षाडवौडविते तथा ॥५९८॥ एवमेता बुधैज्ञेया जातयो दशलक्षणाः । यथा यस्मिन् रसे यावदिति तत्प्रतिपाद्यते ॥१९९॥ यस्मिन् भवति रागश्च यस्माच्चैव प्रवर्तते । मन्द्रश्च तारमन्द्रश्च योऽत्यर्थमुपलभ्यते ॥२०॥ प्रहोपन्यासविन्याससंन्यासन्यासगोचरः । अनुवृत्तिश्च या चेह सोऽशः स्यादशलक्षणः ॥२०१॥ 'संसारोत्साचलस्थानमल्पत्वं दुर्बलासु च । द्विविधोत्तरमार्गस्तु जातीनां व्यक्तिकारकः ॥२०२॥ (?)
वं' पसरो नास्ति न्यासौ तु द्वाववस्थितौ । गान्धारो न्यासलिङ्ग तु दृष्टमार्षभमेव च ॥२०३॥(?) ग्रहस्तु सर्वजातीनामंशवत् परिकीर्तितः । यत्प्रवृत्ते भवेदंशः सोऽशो ग्रह विकल्पितः ॥२०४॥ 'द्वैनामिकीनां जातीनां सर्वासा चैव नित्यशः । अंशास्त्रिषष्टिविज्ञेयास्तासां वै षट सु संग्रहः ॥२०५॥ मध्यमोदीच्यवायास्तु नन्दयन्त्यास्तथैव च । ततो गान्धारपञ्चम्यां पञ्चमोऽशो ग्रहस्तथा २०६॥ धैवत्याश्च तथा वधशौ विज्ञ यो धैवतर्षमौ । पञ्चम्याश्च तथा ज्ञेयौ ग्रहांशी पञ्चमर्षमौ ॥२०७॥ गान्धारोदीच्यवायाश्च ग्रहांशी पड जमध्यमौ । आर्षभ्यास्तु तथा चैव विज्ञेया धैवतर्षमौ ॥२०८॥
चाहिए ॥१९४-१९५।। जातियोंमें समस्त स्वरोंका नाश किया जा सकता है परन्तु मध्यमस्वरका नाश कभी नहीं करना चाहिए ॥१२६॥ क्योंकि मध्यम स्वरका कभी नाश नहीं होता इसलिए । वह समस्त स्वरोंमें प्रधान स्वर माना गया है। साथ ही यह मध्यमस्वर गान्धर्व कल्पके समस्त भेदोंमें भी स्वीकृत किया गया है ।।१९७।। १ तार, २ मन्द्र, ३ न्यास आदि (४ उपन्यास, ५ ग्रह, ६ अंश) ७ अल्पत्व, ८ बहत्व, ९षाडव और १० औडवित ये जातियों के नाम हैं ॥१८॥ इस प्रकार विद्वानों द्वारा ये दश जातियां जानने योग्य हैं। उन जातियोंका जिस रसमें जितना प्रयोग होता है उसका कथन किया जाता है ॥१९९।। राग जिसमें रहता है, राग जिससे प्रवृत्त होता है, जो मन्द्र अथवा तारमन्द्र रूपसे अधिक उपलब्ध होता है, जो ग्रह उपन्यास, विन्यास, संन्यास और न्यासरूपसे अधिक उपलब्ध होता है, तथा जो अनुवृत्ति पाई जाती है वह दश प्रकारका अंश कहलाता है ।।२००-२०१।। संचार, अंश, बलस्थान, दुर्बल स्वरोंका अल्पता और नाना प्रकारका अन्तर मार्ग ये जातियोंको प्रकट करनेवाले हैं ।।२०२।। मन्द्रमें अंश नहीं होता परन्तु न्यासमें दो अंश होते हैं। गान्धार ग्रह तथा न्यासमें आर्षभ अंश देखा जाता है ।।२०३।। समस्त जातियोंमें जिस प्रकार अंश स्वीकार किया गया है उसी प्रकार ग्रह भी माना गया है। जिस ग्रहके प्रवृत्त होनेपर जो अंश होता है वह अंश उसी ग्रहसे विकल्पित माना जाता
योक सदा वेशठ अंश जानना चाहिए और जातियाका संग्रह छह स्वरोंमें माना गया है ॥२०५|| मध्यमोदीच्यवा, नन्दयन्ती और गान्धार पंचमीमें पंचम अंश तथा पंचम ही ग्रह रहता है॥२०६।। धैवतीमें धैवत और ऋषभ ये दो अंश तथा दो ग्रह और पंचमीमें पंचम तथा ऋषभ दो अंश और दो ग्रह जानना चाहिए ॥२०७।। गान्धारो१. संचारोंऽशबलस्थानमल्पत्वं दुर्बलेषु च । विविधोऽन्तरमार्गस्तु जातीनां व्यक्तिकारकः ॥९१॥ अ. २८ नाट्यशास्त्रे एवं पाठः । २. मन्द्रो ांशपरो नास्ति न्यार तु द्वौ व्यवस्थितौ । गान्धारे च ग्रहे न्यासे दृष्टमार्षभदैवतम् ॥९४।। नाट्य अ. २८ । ३. ग्रहस्तु सर्वजातीनामंश एव हि कीर्तितः। यत्प्रवृतं भवेद्गानं सोऽशो ग्रहविकल्पितः ॥७१। ना. शा. अ. २८ । ४. द्वेग्रामिकीना जातानां सर्वासामपि नित्यशः । अंशास्त्रिषष्टिविज्ञेयास्तासां चैव तथा ग्रहः ॥७५॥ ना. शा. अ. २८ । ५. नाट्यशास्त्रस्य अष्टाविंशतितमाघ्यायस्थ ७६-७८ श्लोकाः द्रष्टव्याः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org