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हरिवंशपुराणे
चक्रच्छत्रासिदण्डास्ते काकिणीमणिचर्मणी । सेनागृहपती माइत्राः पुरोधः स्थपतिस्त्रियः ॥ १०८ ॥ चतुर्दश महारत्ननिचयाइचक्रवर्तिनः । प्रत्येकं रक्षिता देवैः सहस्रगणनैर्बभुः || १०९ || कालश्चापि महाकालः पाण्डुको मानवस्तथा । नैः सर्पः सर्वरत्नाश्च शङ्खः पद्मश्च पिङ्गलः ॥ ११० ॥ अमी पुण्यवतस्तस्य निधयोऽनिधना' नव । पालिता निधिपालाख्यैः सुरैर्लोकोपयोगिनः ॥ १११ ॥ शकटाकृतयः सर्वे चतुरक्षाष्टचक्रका: । नवयोजनविस्तीर्णा द्वादशायामसंमिताः ॥ ११२ ॥ ते चाष्टयोजनागाधा बहुवक्षारकुक्षयः । नित्यं यक्षसहस्रेण प्रत्येकं रक्षितेक्षिताः ||११३ ॥ ज्योतिर्निमित्तशास्त्राणि हेतुवादकलागुणाः । शब्दशास्त्रपुराणायाः सर्वे कालनिधौ मताः ॥ ११४ ॥ पञ्चलोहादयो लोहा नानाभेदाः प्रवर्तिताः । लब्धवर्णैर्विनिर्णेया महाकालनिधौ पुनः ॥ ११५ ॥ धान्यानां सकला भेदाः शालिब्रीहियवादयः । कटुतिक्तादिभिर्द्रव्यैः प्रणीताः पाण्डुके निधी ॥ ११६ ॥ कवचैः खेटकैः खड्गैः शरैः शक्तिशरासनैः । चक्राद्यैरायुधैर्दिव्यैः पूर्णो माणवको निधिः ॥ ११७ ॥ शयनासनवस्तूनां विविधानां महानिधिः । सर्पो गृहोपयोग्यानां भाजनानां च भाजनम् ॥ ११८ ॥ इन्द्रनील महानी वज्रवैडूर्य पूर्वकैः । सर्वरत्ननिधि पूर्णः सुरत्नैः सुमहाशिखैः ॥ ११९ ॥ भेरीशङ्खानकैणालरीमुरजादिभिः । आतोद्यैश्चोद्यसंपूर्णैः पूर्णः शङ्ख निधिर्महान् ॥ १२० ॥
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द्वारा आदरको प्राप्त हुए वे व्रती ब्राह्मण कहे जाने लगे । इस तरह पहले कहे हुए तीन वर्णोंके साथ मिलकर अब ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वणं हो गये ॥१०७॥ १ चक्र, २ छत्र, ३ खड्ग, ४ दण्ड, ५ काकिणी, ६ मणि, ७ चर्म, ८ सेनापति, ९ गृहपति, १० हस्ती, ११ अश्व, १२ पुरोहित, १३ स्थपति और १४ स्त्री चक्रवर्तीके ये चौदह रत्न थे, इनमें प्रत्येककी एक-एक हजार देव रक्षा करते थे तथा ये अत्यधिक सुशोभित थे ।। १०८ - १०९ | १ काल, २ महाकाल, ३ पाण्डुक, ४ माणव, ५ नैः सर्प, ६ सर्वरत्न, ७ शंख, ८ पद्म और ९ पिंगल....ये पुण्यशाली चक्रवर्तीकी नौ निधियाँ थीं। ये सभी निधियाँ अविनाशी थीं, निधिपाल नामक देवोंके द्वारा सुरक्षित थीं और निरन्तर लोगोंके उपकार में आती थीं ॥ ११०-१११ ॥ ये गाड़ीके आकार की थीं, चार-चार भौरों और आठ-आठ पहियोंसे सहित थीं । नो योजन चौड़ी, बारह योजन लम्बी, आठ योजन गहरी और वक्षार गिरिके समान विशाल कुक्षिसे सहित थीं । प्रत्येककी एक-एक हजार यक्ष निरन्तर देख-रेख रखते थे |११२-११३॥
इनमें से पहली कालनिधिमें ज्योतिषशास्त्र, निमित्तशास्त्र, न्यायशास्त्र, कलाशास्त्र, व्याकरणशास्त्र एवं पुराण आदिका सद्भाव था अर्थात् कालनिधिसे इन सबकी प्राप्ति होती थी ॥११४॥ दूसरी महाकाल निधि में विद्वानोंके द्वारा निर्णय करने योग्य पंचलोह आदि नाना प्रकार के लोहोंका सद्भाव था अर्थात् उससे इन सबकी प्राप्ति होती थी ||११५ || तीसरी पाण्डुक निधि में शालि, ब्रीहि, जो आदि समस्त प्रकारकी धान्य तथा कडुए चिरपरे आदि पदार्थों का सद्भाव था ||११६|| चौथी माणवक निधि, कवच, ढाल, तलवार, बाण, शक्ति, धनुष तथा चक्र आदि नाना प्रकारके दिव्य शस्त्रोंसे परिपूर्ण थी ॥ ११७ ॥ पांचवीं सर्प-निधि, शय्या, आसन आदि नाना प्रकारकी वस्तुओं तथा घरमें उपयोग आनेवाले नाना प्रकारके भाजनोंकी पात्र थी ॥ ११८ ॥ छठी सर्वरत्न निधि इन्द्रनील मणि, महानील मणि, वज्रमणि आदि बड़ी-बड़ी शिखाके धारक उत्तमोत्तम रत्नोंसे परिपूर्ण थी ॥ १२९ ॥ सातवीं शंखनिधि, भेरी, शंख, नगाड़े, वीणा, झल्लरी और मृदंग आदि आघातसे तथा फूंककर बजाने योग्य नाना प्रकार के बाजोंसे
१. नाशरहिताः, निधनानि च ङ. । २. पुराणाढ्याः म । ३. भोजनानां म ।
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