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पञ्चमः सर्गः हैरण्यवतमित्यन्यत् स्यादैरावतमुत्तरम् । विस्तारणाविदेहान्तं क्षेत्रं क्षेत्राच्चतुर्गुणम् ॥११॥ प्रथमो हिमवानन्यो महाहिमवदाह्वयः । पर्वतो निषधो नीलो रुक्मी च शिखरी गिरि ॥१५॥ पूर्वस्मादुत्तरो भूभृद् विस्तारेण चतुर्गुणः । निषधं यावदाख्याता दक्षिणरुत्तराः समाः ॥१६॥ क्षेत्रस्याद्यस्य विस्तारः सपञ्चशतयोजनः । षडविंशतिस्तथा मागः षड् चाप्येकोनविंशतः ॥१७॥ जम्बूद्वीपस्य विष्कम्भे नवस्या च शतेन च । विभक्त भारतस्यायं विस्तारो भवति स्फुटः ॥१०॥ क्षेत्राद् द्विगुणविस्तारः पर्वतः क्षेत्रमप्यतः । आविदेहमतस्तस्य वृद्धिवच्च परिक्षयः ॥१९॥ मध्येमारतमन्योऽदिरन्तप्राप्ताम्बुधिद्वयः । भाति विद्याधरावासो विजयाई इति श्रुतः ॥२०॥ पञ्चविंशतिरुत्सेधः षट् सपादान्यधः स्थितः । योजनान्यस्य पञ्चाशद्विस्तारो रजतात्मनः ॥२१॥
है ॥८-१२॥ जम्बू द्वीपमें भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत ये सात क्षेत्र हैं। इनमें भरत क्षेत्र सबसे दक्षिणमें है और ऐरावत क्षेत्र उत्तरमें है। प्रारम्भसे लेकर विदेह क्षेत्र तकके क्षेत्र विस्तारको अपेक्षा पूर्व क्षेत्रसे चौगुने-चौगुने विस्तारवाले हैं। भावार्थभरत क्षेत्रसे चौगुना विस्तार हैमवत क्षेत्रका है, हैमवत क्षेत्रसे चौगुना विस्तार हरि क्षेत्रका है और हरि क्षेत्रसे चौगुना विस्तार विदेह क्षेत्रका है। विदेह क्षेत्रसे आगेके क्षेत्रोंका विस्तार चौथा भाग है अर्थात् विदेह क्षेत्रके विस्तारसे चौथा भाग विस्तार रम्यक क्षेत्रका है, रम्यक क्षेत्रसे चौथा भाग विस्तार हैरण्यवतका है और उससे चौथा भाग विस्तार ऐरावत क्षेत्रका है ।।१३-१४॥ हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी ये छह कुलाचल हैं। इनमें आगे-आगेका कुलाचल पूर्व-पूर्व कुलाचलसे चौगुने-चौगुने विस्तार वाला है। यह क्रम निषध कुलाचल तक ही चलता है। इसके आगे उत्तरके तीन कुलाचल दक्षिणके कुलाचलोंके समान कहे गये हैं ॥१५-१६।। प्रथम भरत क्षेत्रका विस्तार पांच सौ छब्बीस योजन तथा एक योजनके उन्नीस भागोंमें छह भाग प्रमाण है ।।१७।। जम्बू द्वीपकी चौड़ाई एक लाख योजनमें यदि एक सौ नब्बे योजनका भाग दिया जाय तो भरत क्षेत्रका उक्त विस्तार स्पष्ट हो जाता है। भावार्थ-भरत क्षेत्रका जो विस्तार ५२६४ योजन बतलाया है। वह जम्बू द्वीपके विस्तारका एक सौ नब्बेवाँ भाग है ॥१८॥ क्षेत्रसे पर्वत दूने विस्तारवाला है। और पर्वतसे क्षेत्र दूने विस्तारवाला है। दूने विस्तारका यह क्रम विदेह क्षेत्र तक चलता है। उसके आगेके क्षेत्र और पर्वतोंका विस्तार ह्रासको लिये हुए है अर्थात् आगेके क्षेत्र और पर्वत अर्ध-अर्ध विस्तारवाले हैं ॥१९।। * भरत क्षेत्रके ठीक मध्य भागमें विजया नामसे प्रसिद्ध एक दूसरा पर्वत सुशोभित है। इसके दोनों अन्तभाग पूर्व और पश्चिमके दोनों समुद्रोंको प्राप्त हैं तथा इसपर विद्याधरोंका निवास है ।।२०।। यह पर्वत पृथिवीसे पचीस योजन ऊँचा है, सवा छह योजन पृथिवीके नीचे स्थित है, पचास योजन चौड़ा है और
१. मुत्तमं म.। २. निषधो म. ।
* क्षेत्र और पर्वतों का विस्तार निम्नलिखित है१ भरत क्षेत्र ५२६६ योजन
२ हिमवत् पर्वत ३ हैमवत क्षेत्र २१०५५ योजन ४ महाहिमवत् पर्वत ५ हरिक्षेत्र ८४२११३ योजन ६ निषध पर्वत ७ विदेह क्षेत्र ३३६८४३४ योजन ८ नील पर्वत ९ रम्यक क्षेत्र ८४२११३ योजन १. रुक्मी पर्वत ११ हैरण्यवत क्षेत्र २१०५३ योजन १२ शिखरी पर्वत १३ ऐरावत क्षेत्र ५२६६ योजन
१०१२१२ योजन ४२१०१२ योजन १६८४२६३ योजन १६८४२४ योजन
४२१०११ योजन १०५२,३ योजन
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