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हरिवंशपुराणे वनात् पूर्वापरान्तस्था वेदिका योजनोच्छितिः । क्रोशावगाहिनी ज्ञेया विस्तृता क्रोशयोयम् ॥२३८॥ नीलाद् प्राहवती सीतां वाहिनी हृदवस्यपि । पङ्कवत्यपि यान्तीमा वक्षाराभ्यन्तरे स्थिताः ॥२३९॥ नदी तप्तजला पूर्वा सीतामेवैति नैषधी । ततो मत्तजला नाम्ना तथोन्मत्तजलाऽपरा ॥२४॥ क्षीरोदान्या च सीतोदा स्रोतोऽन्तर्वाहिनी नदी। विशन्ति नैषधोपनाः सीतोदा सुमहानदीम् ॥२४१॥ तामुत्तरविदेहेषु पश्चिमा गन्धमादिनी । सा फेनमालिनी नीलात् संप्राप्ता चोमिमालिनी ॥२४२॥ नाम्ना विमङ्गनद्यस्ताः प्रमाणे रोह्यया समाः। तोरणेषु वसन्त्यासां संगमे दिक्कुमारिकाः ॥२४३॥ वक्षाराणां च तासां च मध्ये नयोस्तटद्वये । स्युः पूर्वापरयोमरोर्विदेहाश्चतुरष्टकाः ॥२४॥ कच्छा सुकच्छा महाकच्छा चतुर्थी कच्छकावती । भावर्त्ता लागलावर्ता पुष्कला पुष्कलावती ॥२४५॥ अपराधास्वमी वेद्याः षट्खण्डा विषयाः स्थिताः । सीतानीलान्तराले स्युःप्रादक्षिण्येन वर्णिताः ॥२४६॥ वत्सा सुवस्सा महावस्सा चतुर्थी वस्सकावती । रम्या रम्यका रमणीयाष्टमी मङ्गलावती ॥२४७॥ पूर्वादयस्त्वमी वेद्या विषयाश्चक्रवर्तिनाम् । सीतानिषधयोर्मध्ये व्यायता दक्षिणोत्तराः ॥२४८॥ पद्मा सुपद्मा महापद्मा चतुर्थी पद्मकावती । शङ्खा च नकिनी चैव कुमुदा सरिता तथा ॥२४९॥ पूर्वतः प्रभृति प्रोक्ताः दक्षिणोत्तरमायताः । अष्टाविमे निविष्टास्तु सीतोदानिषधान्तरे ॥२५०॥ वप्रा सुवप्रा महावप्रा चतुर्थी वप्रकावती । गन्धा चापि सुगन्धा च गन्धिला गन्धमालिनी ॥२५१॥ अपराद्यास्त्विमे प्रोक्ताः विषयाश्चक्रपाणिनाम्। नोलसोतोदयोर्मध्ये निविष्टास्तावदायताः ॥२५२॥
पूर्व-पश्चिम भागमें एक वेदिका है । यह वेदिका एक योजन ऊँचो, एक कोश गहरी और दो कोश चौड़ी जानना चाहिए ॥२३८॥ १ ग्राहवती. २ हदवती और ३ पंकवती ये तीन नदियां नील पर्वतसे निकलकर सीता नदीकी ओर जाती हैं तथा वक्षार पर्वतोंके मध्यमें स्थित हैं ॥२३९।। १ तप्तजला, २ मत्तजला, ३ उन्मत्तजला ये तोन नदियाँ निषध पर्वतसे निकलकर सोता नदोको ओर जाती हैं ॥२४०॥ १ क्षीरोदा, २ सीतोदा और ३ स्रोतोऽन्तर्वाहिनी ये तीन नदियां निषध पर्वतसे निकलकर सीतोदा नामक महानदीमें प्रवेश करती हैं ॥२४१॥ उत्तर विदेह क्षेत्रमें १ गन्धमादिनी, २ फेनमालिनी और ऊमिमालिनी ये तीन नदियां नीलाचलसे निकलकर सीतोदा नदीमें मिली हैं ॥२४२॥ ऊपर कही हुईं बारह नदियां विभंगा नदी कहलाती हैं । ये प्रमाणमें रोह्या नदीके समान हैं तथा इनके संगम स्थानोंमें जो तोरण द्वार हैं उनमें दिक्कुमारी देवियां निवास करती हैं ॥२४३।।
वक्षारगिरि और विभंगा नदियोंके मध्यमें सीता-सोतोदा नदियोंके दोनों तटोंपर मेरुकी पूर्व और पश्चिम दिशामें बत्तीस विदेह हैं ।।२४४। उनमें १ कक्षा, २ सुकच्छा, ३ महाकच्छा, ४ कच्छकावती, ५ आवर्ता, ६ लांगलावर्ता, ७ पुष्कला और ८ पुष्कलावती ये आठ देश पश्चिम विदेह क्षेत्रमें सीता नदी और नोल कुलाचलके मध्य प्रदक्षिणा रूपसे स्थित हैं तथा प्रत्येक देशके छह खण्ड हैं ॥२४५-२४६॥ १ वत्सा, २ सुवत्सा, ३ महावत्सा, ४ वत्सकावती, ५ रम्या, ६ रम्यका, ७ रमणीया और ८ मंगलावती ये आठ देश पूर्व विदेह क्षेत्रमें सीता नदी और निषध पर्वतके मध्य स्थित हैं। ये चक्रवर्तियोंके देश हैं और दक्षिणोत्तर लम्बे हैं ॥२४७-२४८॥ १ पद्मा, २ सुपद्मा, ३ महापद्मा, ४ पद्मकावतो, ५ शंखा, ६ नलिनी, ७ कुमुदा और ८ सरिता ये आठ देश पूर्व विदेह क्षेत्रमें सीतोदा नदी और निषध पर्वतके मध्य स्थित हैं तथा दक्षिणोत्तर लम्बे हैं ॥२४९-२५०॥ १ वप्रा.२ सवप्रा.३ महावा. ४ वप्रकावतो.५ गन्धा, ६ सगन्धा.७ गन्धिका और ८ गन्धमालिनी ये आठ देश पश्चिम विदेह क्षेत्रमें नील पर्वत और सीतोदा नदीके मध्य स्थित हैं तथा दक्षिणोत्तर लम्बे हैं । ये चक्रवतियोंके क्षेत्र कहे गये हैं अर्थात् इनमें चक्रवतियोंका निवास रहता
१. चक्रपाणिनामिति प्रयोगश्चिन्त्यः 'चक्रपाणीना' मिति भवितव्यम्, तत्र च कृते छन्दोभङ्गः स्यात् ।
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