________________
पञ्चमः सर्गः
एकादश सहस्राणि योजनानि तु मन्दरः । समरुन्द्रौ नन्दनादूर्ध्व वनात्सौमनसात्तथा ॥३१२॥ पञ्चमेषु प्रदेशेषु चूलिकैकेन हीयते । तथाऽङ्गलादिमानेषु योजनान्तेष्वयं क्रमः ॥३१३॥ साधिकैकादशांशाभ्यां लक्षस्यास्त्युत्तरं शतम् । दैव्यं योजनलक्षस्य मेरोः पार्श्वभुजाद्वयम् ॥३१४॥ पण्याख्यं दिशि पूर्वस्या दक्षिणस्यां च चारणम् । गन्धर्वमपरस्यां स्यादुत्तरस्यां च चित्रकम् ॥३१५॥ मवनं नन्दने तेषां त्रिंशत्स्यान्मुखविस्तृतिः । पञ्चाशद्योजनोच्छायः परिधिनवतिः स्मृता ॥१६॥ पण्याख्ये रमते सोमश्चारणाख्ये यमस्तथा। गान्धर्व वरुणश्चित्रे कुबेरः सपरिच्छदः ॥३१७।। चत्वारोऽपि ते दिक्षु लोकपाल' पृथक पृथक । साद्धामिस्तु त्रिकोटीभिः स्त्रीणां क्रीडन्ति संततम् ॥३१८॥ वज्र वज्रप्रभं नाम्ना सुवर्णभवनं भवेत् । सुवर्णप्रममप्येकं दिक्षु सौमनसे वने ॥३१९॥ भवनानां परिक्षेपमुखव्यासोच्छ्रया इह । त एवार्धाकृता बोध्या नन्दनस्थितसद्मनाम् ।।३२०॥ लोकपालास्त एवात्र देवाः सोमयमादयः । क्रोडन्ति स्वेच्छया स्त्रीभिस्तावतीभिर्यथायथम् ॥३२१॥ लोहिताअनहारिद्रपाण्डुराख्यानि पाण्डुके । वेश्मान्यूध्वस्वनामानि तावत्कन्यानि तान्यपि ॥३२॥ स्वयंप्रभविमानेशः सोमोऽसौ पूर्वदिक्प्रमुः । रक्तवाहननेपथ्यः सार्द्धपल्य दयस्थितिः !!३२३॥ स षटषष्टिसहस्राणां विमानानां प्रभावताम् । षट्षष्टिषट्शतानां च षड लक्षाणां च भोजकः ।।३२४॥ तथाऽरिष्टविमानेशो यमो दक्षिणदिप्रभुः । साईपल्यद्वयायुष्कः कृष्णनेपथ्यवाहनः ।।३२५॥
जाये तो वहाँ उसकी चौड़ाई वृद्धिंगत हो जाती है ॥३१०-३११॥ परन्तु विशेषता यह है कि यदि नन्दन वन और सौमनस वनसे ग्यारह योजन ऊंचा चढ़ा जाये तो वहाँ की चौड़ाई मूलभागकी चौड़ाईसे कम नहीं होती किन्तु बराबर रही आती है ॥३१२॥ चूलिकासे पाँच योजन ऊपर चढ़नेपर एक योजन चोड़ाई कम हो जातो है और पाँच अंगुल अथवा पांच हाथ चढ़नेपर एक अंगुल वा एक हाथ चौड़ाई घट जाती है ।।३१३॥ एक लाख योजन विस्तारवाले मेरु पर्वतकी दोनों पार्श्व भुजाओंको लम्बाई एक लाख सो योजन तथा ग्यारह भागोंमें दो भाग प्रमाण है ॥३१४॥ नन्दन वनको पूर्व दिशामें पण्य नामका, दक्षिण दिशामें चारण नामका, पश्चिम दिशामें गन्धर्व नामका और उत्तर दिशामें चित्रक नामका भवन है। इन भवनोंकी चौड़ाई तीस योजन, ऊँचाई पचास योजन और परिधि नब्बे योजन है ॥३१५-३१६।। इनमें पण्य नामक भवनमें सोम, चारण नामक भवनमें यम, गान्धर्व नामक भवनमें वरुण और चित्रक नामक भवन में कबेर सपरिवार कोड़ा करता है ॥३१७। ये चारों लोकपाल पथक -पथक दिशाओं में साढे तीन करोड साढे तीन करोड़ स्त्रियोंके साथ निरन्तर क्रीड़ा करते हैं ॥३१८॥
सौमनस वनकी चारों दिशाओंमें क्रमसे वज्र, वज्रप्रभ, सुवर्णभवन और सुवर्णप्रभ नामके चार भवन हैं ॥३१९।। इन भवनोंको परिधि तथा अग्रभागकी चौड़ाई और ऊंचाई नन्दनवनके भवनोंसे आधी समझनी चाहिए ॥३२०॥ इन भवनों में भी वे हो सोम, यम आदि लोकपाल अपनो इच्छानुसार उतनी ही स्त्रियोंके साथ यथायोग्य क्रोड़ा करते हैं ॥३२१॥ पाण्डुक वनको चारों दिशाओंमें लोहित, अंजन, हारिद्र और पाण्डु नामके चार भवन हैं। इन भवनोंकी ऊँचाई आदि सौमनस वनके भवनोंके समान है तथा इनमें वे ही लोकपाल उतनी ही स्त्रियोंके साथ क्रीड़ा करते हैं ॥३२२।। इन लोकपालोंमें सोम नामका लोकपाल पूर्व दिशाका स्वामी तथा स्वयम्प्रभ विमानका अधिपति है । इसके वाहन तथा वस्त्राभूषण आदि सब लाल रंगके हैं और इसकी आयु अढ़ाई पल्य प्रमाण है। यह छह लाख छयासठ हजार छह सौ छयासठ देदीप्यमान भवनोंका भोग करनेवाला है अर्थात् इतने भवनोंका यह स्वामी है ।।३२३-३२४॥ यम दक्षिण दिशाका राजा तथा अरिष्ट
.१.वारणं म.।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org