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सप्तमः सर्गः
१३३ जायते मिसजातीयो हेतुर्यत्रापि कार्यकृत् । तत्राऽसौ सहकारी स्यात् मुख्योपादानकारणः ॥१४॥ 'युक्त्यागमबलादेवमनतीन्द्रियदर्शिनः । सद्भावं मुख्यकालस्य अतिपद्य व्यवस्थितः ॥१५॥ समयावलिकोच्छ्वासप्राणस्तोकलवादिकः । व्यवहारस्तु विज्ञेयः कालः कालज्ञवर्णितः ॥१६॥ परिणाम प्रपमस्य गत्या सर्वजघन्यया । परमाणोनिजागाढस्वप्रदेशव्यतिक्रमः ॥१७॥ कालेन यावतैव स्थादविभागः स भाषितः । समयः समयामि निरुद्ध परमान्यतः ॥१८॥ तैरेवावलिकासंख्यैः संख्यातामिस्तु भाषितौ । ताभिरुच्छ्वासनिश्वासौ तावुभौ प्राण इष्यते ॥१९॥ प्राणाः सप्त पुनः स्तोकः सप्तस्तोका मवेल्लवः । ते सप्त सप्ततिः सन्तो मुहर्तास्त्रिंशदेव ते ॥२०॥ भहोरात्रं भवेत्पक्षस्तानि पञ्चदशैव तौ । मासो मासावृतुस्तेषां त्रितयं त्वयनं तथा ॥२१॥ अयनद्वयमब्दं स्थात् पञ्चाब्दानि युगं पुनः । युगद्वयं दशाब्दानि शतं तानि दशाहतौ ॥२२॥ भवेद्वर्षसहस्रं तु शतं चापि दशाहतम् । दशवर्षसहस्राणि तदेव दशताडितम् ॥२३॥ ज्ञेयं वर्षसहस्रं तु तच्चापि दश संगुणम् । पूर्वाङ्गं तु तदभ्यस्तमशीत्या चतुराया ॥२४॥ तत्तद्गुणं च पूर्वाह्न पूर्व भवति निश्चितम् । पूर्वाङ्गं तद्गुणं तच्च पूर्वसंज्ञतु तद्गुणम् ॥२५॥ नियुता परं तस्माग्नियुतं च ततः परम् । कुमुदाङ्गं ततश्च स्याद् कुमुदं तु ततः परम् ॥२६॥ पन्नाज पनमप्यस्माद् नलिनाङ्गं तथैव च । नलिनं कमलाङ्गं च कमलं चाप्यतः परम् ।।२७॥ तुव्यातुव्यमप्यस्मादटटानं ततोऽपि च । अरटं चाममाङ्गं स्यादममं चाप्यतः परम् ॥२८॥
उत्पन्न नहीं होता ।।१३।। जहाँ कहीं भिन्न जातीय कारण कार्य उत्पादक होता है वहां वह सहकारी कारण ही होता है। कार्यकी उत्पत्तिमें मुख्य कारण उपादान है और सहकारी कारण उसका सहायक होता है ॥१४॥ इस प्रकार जो अतीन्द्रियदर्शी नहीं हैं अर्थात् स्थूल पदार्थको ही जानते हैं उनके लिए युक्ति और आगमके बलसे मुख्यकालका सद्भाव बताकर उसे व्यवस्थित किया है ॥१५॥ समय, आवलि, उच्छ्वास, प्राण, स्तोक और लव आदिको व्यवहार-काल जानना चाहिए ऐसा समयके ज्ञाता आचार्योंने वर्णन किया है ॥१६॥ सर्वजघन्य गतिसे परिणामको प्राप्त हुआ परमाणु जितने समयमें अपने द्वारा प्राप्त स्वर्गीय प्रदेशका उल्लंघन करता है उतने समयको
शाखके ज्ञाता आचार्योने समय कहा है। यह समय अविभागी होता है तथा परकी मान्यताको रोकनेवाला है ॥१७-१८॥ असंख्यात समयको एक आवली होती है, संख्यात आवलियोंका एक उच्छ्वास निश्वास होता है, दो उच्छ्वास निश्वासोंका एक प्राण होता है। सात प्राणोंका एक स्तोक होता है, सात स्तोकोंका एक लव होता है, सत्तर लवोंका एक मुहूर्त होता है, तीस मुहूत्र्तीका एक दिन-रात होता है, पन्द्रह दिन-रातका एक पक्ष होता है, दो पक्षका एक मास होता है, दो मासकी एक ऋतु होती है, तीन ऋतुओंका एक अयन होता है, दो अयनोंका एक वर्ष होता है, पांच वर्षोंका एक युग होता है, दो युगोंके दश वर्ष होते हैं, इसमें दशका गुणा करनेपर सौ वर्ष होते हैं, इसमें दशका गुणा करनेपर हजार वर्ष होते हैं, इसमें दशका गुणा करनेपर दश हजार वर्ष होते हैं, इसमें दशका गणा करनेपर एक लाख वर्ष होते हैं. इसमें चौरासीका गणा करनेपर ए होता है, चौरासी लाख पूर्वांगोंका एक पूर्व, चौरासी लाख पूर्वोका एक नियुतांग, चौरासी लाख नियुतांगोंका एक नियुत, चौरासी लाख नियुतोंका एक कुमुदांग, चौरासी लाख कुमुदांगोंका एक कुमुद, चौरासी लाख कुमुदोंका एक पद्मांग, चौरासी लाख पद्मांगोंका एक पद्म, चौरासो लाख पमोंका एक नलिनांग, चौरासी लाख नलिनांगोंका एक नलिन, चौरासी लाख नलिनोंका एक कमलांग, चौरासी लाख कमलांगोंका एक कमल, चौरासी लाख कमलोंका एक तुटयांग, चौरासी लाख तुटयांगोंका एक तुटय, चौरासी लाख तुटयोंका एक अटटांग, चौरासी लाख १. युक्तागम- म., क.। २. -कोच्छ्वासः प्राश म.। ३. निरुद्धः परमास्थितः म. ।
पवाग
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