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षष्ठः सर्गः शतानि सप्त गत्वोध्वं योजनानि भुवस्तलात् । नवतिं च स्थितास्ताराः सर्वाधस्तान्नमस्तले ॥१॥ शतानि नव गत्वोर्ध्व योजनानि धरातलात् । स्थितं व्योमतले ज्योतिः सर्वेषामुपरि स्थितम् ॥२॥ ज्योतिःपटलमेतद्धि बहलं दशभिः सह । योजनानि शतं प्राप्तं सर्वतश्च घनोदधिम् ॥३॥ तारकापटलाद् गत्वा योजनानि दशोपरि । सूर्याणां पटलं तस्मादशीतिं शीतरोचिषाम् ॥४॥ चत्वारि च ततो गत्वा नक्षत्रपटलं स्थितम् । चत्वार्येव ततो गत्वा पटलं बुधगोचरम् ॥५॥ त्रीणि त्रीणि तु शुक्राणां गुर्वङ्गारकसंज्ञिनाम् । ग्रहाणां तद्यथासंख्यं स्यात् शनैश्चरसङ्गिनाम् ॥६॥ सूर्याश्चन्द्राश्च तत्रस्था नक्षत्रग्रहतारकाः । ज्योतिष्काः पञ्चधा देवाः स्वस्थानसमनामकाः ॥७॥ पल्यं जीवन्ति चन्द्राख्यास्तेऽधिकं वर्षलक्षया । सूर्या वर्षसहस्रेण शुकदेवाः शतेन तत् ॥८॥ पल्यमूनं तु जीवन्ति गुरवोऽद्ध ग्रहाः परे । पल्यं पादं तु ताराख्याः पादा, ते जघन्यतः ॥९॥ एकषष्टिकृता भागा शुद्धया ये योजनस्य ते । षट्पञ्चाशत्त विष्कम्भश्चन्द्रमण्डलगोचरः ॥१०॥ ते चत्वारिंशदष्टाभिः सूर्यमण्डलविस्तृतिः । क्रोशः शुक्रस्य विस्तारो देशोनः स बृहस्पतेः ॥११॥ अर्द्धगव्यूतिविस्तारः सर्वतः परिभाषितः । ग्रहाणां परिशेषाणां सर्वेषामपि मण्डलम् ॥१२॥ 'तारामण्डलमत्यल्पं पादं क्रोशस्य विस्तृतम् । मध्यमं साधिकं पादं क्रोधाद्ध तु बृहत्तरम् ॥१३॥
पृथिवीतलसे सात सौ नब्बे योजन ऊपर चलकर आकाशमें सबसे नीचे तारा स्थित है ।।१।।
तलसे नौ सौ योजन ऊपर चलकर आकाशमें सबसे ऊपर ज्योतिष्पटल स्थित है। भावार्थ-आकाशमें ज्योतिष्पटल सात सौ नब्बे योजनकी ऊँचाईमें शुरू होकर नौ सौ योजन तक है ॥२॥ यह ज्योतिष्पटल एक सौ दश योजन मोटा है तथा आकाशमें घनोदधिवातवलय पर्यन्त सब ओर फैला है ।।३।। ताराओंके पटलसे दश योजन ऊपर जाकर सूर्योंका पटल है और उससे अस्सो योजन ऊपर जाकर चन्द्रमाओंका पटल है ।।४|| उससे चार योजन ऊपर जाकर नक्षत्रोंका पटल है और उससे चार योजन ऊपर चलकर बुधका पटल है ॥५॥ उससे तीन-तीन योजन ऊपर चलकर क्रमसे शुक्र, गुरु, मंगल और शनैश्चर ग्रहोंके पटल हैं ॥६|| सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र, ग्रह और तारा ये पाँच प्रकारके ज्योतिर्विमान हैं। इनमें रहनेवाले देव भी इन्होंके समान नामवाले हैं तथा इन्हींके समान पाँच प्रकारके हैं ॥७॥ इनमें चन्द्र एक लाख वर्ष अधिक एक पल्य तक, सूर्य एक हजार वर्ष अधिक एक पल्य तक, शुक्र सौ वर्ष अधिक एक पल्य तक, वृहस्पति पौन पल्य तक, मंगल, बुध और शनैश्चर आधा पल्य तक और तारा चौथाई पल्य तक, जीवित रहते हैं । यह सबको उत्कृष्ट आयु है । जघन्य आयु पल्यके आठवें भाग प्रमाण है ।।८-९|| बुद्धि द्वारा योजनके जो इकसठ भाग किये जाते हैं उनमें छप्पन भाग प्रमाण चन्द्र मण्डलका विस्तार है ||१०|| और अड़तालीस भाग प्रमाण सूर्यका विस्तार है । शुक्रका विस्तार एक कोश, बृहस्पतिका कुछ कम एक कोश, और शेष समस्त ग्रहोंका विस्तार आधा कोश प्रमाण है। जघन्य तारा मण्डल पाव कोश, मध्यम तारा मण्डल कुछ अधिक पाव कोश और उत्कृष्ट तारामण्डल आधाकोश १. "उदुत्तर सत्तसए दस सीदी चदुदुर्ग तियचउक्के । __ तारिण ससि रिक्ख बृहा सुक्क गुरूंगार मन्दगदी ॥३३२॥
-त्रिलोकसारस्य २. ५६ : ६१ योजनप्रमाणं चन्द्रविमानम् । ३. ४८ ६१ योजनप्रमाणं सूर्यविमानम् । ४. तारंतरं जहणं णायबा सत्त भाग गाउदियं । पण्णासा मज्झिमया उक्कस्सं जोयणसहस्सा ॥१०॥
--त्रै.प्र. सौ.
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